क्यों शांता के माता-पिता नहीं बने दशरथ और कौशल्या,जानिए और देवी शांता का विवाह राम की सौतेली माता कैकेयी

क्यों शांता के माता-पिता

नहीं बने दशरथ और कौशल्या,जानिए और देवी शांता का विवाह राम की सौतेली माता कैकेयी 

शांता के माता-पिता नहीं बने दशरथ और कौशल्या

देवी शांता को लेकर अलग-अलग मान्यताएं और कथाएं प्रचलित है. लेकिन एक मान्यता के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि, एक बार अंगदेश के राजा रोमपद अपनी पत्नी रानी वर्षिणी के साथअयोध्या आए हुए थे. राजा रोमपद और वर्षिणी को कोई संतान नहीं थी. बातचीत के दौरान जब राजा दशरथ को इस बात का पता चला तो उन्होंने कहा, आप मेरी पुत्री शांता को संतान के रूप गोद ले लीजिए. राजा दशरथ की यह बात सुनकर रोमपद और वर्षिणी बहुत खुश हो गए. उन्होंने शांता को गोद लेकर बहुत ही स्नेहपूर्वक उसका पालन-पोषण किया और माता-पिता के सारे कर्तव्य निभाए.
एक दिन राजा रोमपद अपनी पुत्री शांता से कुछ बात कर रहे थे. तभी उनके द्वार पर एक ब्राह्मण आए. ब्राह्मण ने राजा रोमपद से प्रार्थना करते हुए कहा कि, वर्षा के दिनों में वे खेतों की जुताई में राज दरबार की ओर से कुछ मदद करने की कृपा करें. लेकिन राजा शांता के साथ बातचीत में इतने व्यस्त थे कि उन्होंने ब्राह्मण की बात नहीं सुनी. ऐसे में द्वार पर आए हुए जरूरतमंद ब्राह्मण की याचना न सुनने पर उसे बहुत दुख हुआ. वह ब्राह्मण राजा रोमपद का राज्य छोड़कर चला गया. वह ब्राह्मण इंद्रदेव का भक्त था. इंद्रदेव अपने भक्त का दुख देख राजा रोमपद पर क्रोधित हो गए और उन्होंने उनके राज्य में पर्याप्त वर्षा नहीं की. इससे खेतों में खड़ी फसलें मुरझा गई.

राजा दशरथ और रानी कौशल्या से वर्षिणी और रोमपद का दुःख देखा न गया और उन्होंने निर्णय लिया कि वह शांता को उन्हें गोद दे देंगे  आगे पढ़ने के लिए क्लिक करें- कथा के अनुसार 

ऋष्यशृंग ऋषि से हुआ देवी शांता का विवाह

इस संकट की समस्या के लिए राजा रोमपद ऋष्यशृंग ऋषि के पास गए और उनसे उपाय पूछा. तब ऋषि ने बताया कि, उन्हें इन्द्रदेव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ कराना चाहिए. इसके बाद राजा रोमपद ने ऋष्यशृंग ऋषि से यज्ञ कराया और इसके बाद राज्य के खेत-खलिहान पानी से भर गए. राजा रोमपद ने ऋष्यशृंग ऋषि के साथ अपनी पुत्री शांता का विवाह कराया और इसके बाद दोनों सुखपूर्वक दांपत्य जीवन बिताने लगे.
पौराणिक कथाओं के अनुसार ऋष्यशृंग ऋषि ने ही राजा दशरथ को वंश चलाने के लिए पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराने का आदेश दिया था. इस यज्ञ के बाद राम, भरत और जुड़वां लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ. कहा जाता है कि अयोध्या से लगभग 39 कि.मी. पूर्व में आज भी ऋष्यशृंग ऋषि आश्रम है और यहां उनकी और देवी शांता की समाधी है. हिमाचल में कुल्लू से करीब 50 किलोमीटर दूर देवी शांता एक प्राचीन मंदिर है, जहां नियमित रूप से उनकी पूजा होती है.

कैकेयी राम की सौतेली माता

कैकेई सामान्य अर्थ में 'केकय देश की राजकुमारी'। तदनुसार महाभारत में सार्वभौम की पत्नी, जयत्सेन की माता सुनंदा को कैकेई कहा गया है। इसी प्रकार परीक्षित के पुत्र भीमसेन की पत्नी, प्रतिश्रवा की माता कुमारी को भी कैकेयी नाम दिया गया है।
किन्तु रूढ़ एवं अति प्रचलित रूप में ' कैकेई ' केकेय देश के राजा अश्वपति और शुभलक्षणा की कन्या एवं कोसलनरेश दशरथ की कनिष्ठ किंतु अत्यंत प्रिय पत्नी का नाम है। इसके गर्भ से भरत का जन्म हुआ था। जब राजा दशरथ देवदानव युद्ध में देवताओं के सहायतार्थ गए थे तब कैकेई भी उनके साथ गई थी। युद्ध में दशरथ के रथ का धुरा टूट गया उस समय कैकेई ने धुरे में अपना हाथ लगाकर रथ को टूटने से बचाया और दशरथ युद्ध करते रहे। युद्ध समाप्त होने पर जब दशरथ को इस बात का पता लगा, तो प्रसन्न होकर कैकेई को दो वर माँगने के लिए कहा। कैकेयी ने उसे यथासमय माँगने के लिए रख छोड़ा। जब राम को युवराज बनाने की चर्चा उठी तब मंथरा नाम की दासी के बहकावे मे आकर कैकेई ने दशरथ से अपने उन दो वरों के रूप में राम के लिए १४ वर्ष का वनवास और भरत के लिए राज्य की माँग की। कैकेई के वरदान माँगने से श्री राम की मृत्यु टली,क्योंकि वह जानती थी कि राजा दशरथ की मृत्यु पुत्र विलाप में होगी और उसके सिर्फ़ दो ही तरीके है या तो राम जी की मृत्यु या उनका वनवास। तदनुसार राम वन को गए पर भरत ने राज्य ग्रहण करना स्वीकार नहीं किया, माता की भर्त्सना की और राम को लौटा लाने के लिए वन गए। उस समय कैकेई भी उनके साथ गई।

कौशल्या’कौशल प्रदेश (छत्तीसगढ़) की राजकुमारी तथा अयोध्या के राजा दशरथ की पत्नी और देव माता अदिति का अवतार थीं। आगे पढ़ने के लिए क्लिक करेंकौशल्या,सुमित्रा,कैकेयी के बारे में
सुमित्रा अयोध्या के राजा दशरथ की पत्नी तथा लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न की माता थीं। महारानी कौशल्या पट्टमहिषी थीं।

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