गणेश का वाहन मूशक कैसे बना जानिए कथा अनुसार और कुछ बातें

गणेश का वाहन मूशक कैसे बना जानिए कथा अनुसार और  कुछ बातें

  • गणेश जी के चूहे का नाम क्या है
इसके पीछे भी एक कथा हैं जो गणेश उत्सव के उपलक्ष्य में जानते हैं गणेश पुराण के अनुसार प्रथम पूज्य भगवान गणेश का चूहा पूर्व जन्म में एक गंधर्व था जिसका नाम क्रोंच था। एक बार देवराज इंद्र की सभा में गलती से क्रोंच का पैर मुनि वामदेव के ऊपर पड़ गया।
  • गणेश जी पूर्व जन्म में कौन थे
उनका वाहन मूषक था, जो कि अपने पूर्व जन्म में एक गंधर्व था। इस गंधर्व ने सौभरि ऋषि की पत्नी पर कुदृष्टि डाली थी जिसके चलते इसको मूषक योनि में रहने का श्राप मिला था। इस मूषक का नाम डिंक है। प्रथम लेखक : गणेशजी को पौराणिक पत्रकार या लेखक भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने ही 'महाभारत' का लेखन किया था।

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Know how to make Ganesh's vehicle 'Mooshak' and some other things according to the story

गणेश जी के बारे में कुछ बातें

  • गणेश जी का असली नाम विनायक था.
  • गणेश जी का मस्तक कटने के बाद, उसे हाथी का मस्तक लगा दिया गया.
  • मस्तक बदलने के बाद, गणेश जी को गजानन कहा जाने लगा.
  • गणों का प्रमुख बनने के बाद, गणेश जी को गणपति और गणेश कहा जाने लगा.
  • गणेश जी की बहन का नाम अशोकसुंदरी है.
  • गणेश जी की बहन का नाम ज्योति है.
  • गणेश जी की बहन का नाम मनसा देवी है.
  • गणेश जी के बेटे का नाम शुभ है.
  • गणेश जी के बेटे का नाम लाभ है.
  • गणेश जी की बेटी का नाम मां संतोषी है. 
  • गणेश जी का वाहन मूषक कौन था?
उस युद्ध में श्री गणेश का एक दांत टूट गया. तब क्रोधित होकर श्री गणेश ने टूटे दांत से गजमुखासुर पर ऐसा प्रहार किया कि वह घबराकर चूहा बनकर भागा लेकिन गणेशजी ने उसे पकड़ लिया. मृत्यु के भय से वह क्षमा मांगने लगा तब श्री गणेश ने मूषक रूप में ही उसे अपना वाहन बना लिया.
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गणेश का वाहन मूशक कैसे बना?

इस बारे में अलग अलग कहानियां, प्रकरण है 2 कथाएं है जो कुछ ऐसी है
पौराणिक कथाओं के अनुसार गजमुख बहुत ही भयंकर असुरों का राजा था। वह बहुत ही शक्तिशाली और धनवान बनन चाहता था। वह साथ ही सभी देवी-देवताओं को अपने वश में करना चाहता था इसलिए हमेशा भगवान शिव से वरदान के लिए तपस्या करता था। शिव जी से वरदान पाने के लिए वह अपना राज्य छोड़ कर जंगल में जाकर रहने लगा और शिव जी से वरदान प्राप्त करने के लिए, बिना पानी और भोजन के रात दिन तपस्या करने लगा। कुछ साल बीत गए, शिव जी उसके अपार तप को देखकर प्रभावित हो गए और उसके सामने प्रकट हुए। शिव जी ने खुश होकर उसे दैविक शक्तियां प्रदान की जिससे वह बहुत शक्तिशाली बन गया। शिवजी ने उसे सबसे बड़ी ताकत प्रदान कर उसे किसी भी शस्त्र से नहीं मारा जा सकता। असुर गजमुख को अपनी शक्तियों पर गर्व हो गया और वह अपने शक्तियों का दुर्पयोग कर देवी-देवताओं पर आक्रमण करने लगा। मात्र शिव, विष्णु, ब्रह्मा और गणेश ही उसके आतंक से बचे हुए थे। गजमुख चाहता था कि हर कोई देवता उसकी पूजा करे। सभी देवता शिव, विष्णु और ब्रह्मा जी के शरण में पहुंचे और अपनी जीवन की रक्षा के लिए गुहार करने लगे। यह सब देखकर शिवजी ने गणेश को असुर गजमुख को यह सब करने से रोकने के लिए भेजा। गणेश जी ने गजमुख के साथ युद्ध किया और असुर गजमुख को बुरी तरह से घायल कर दिया। लेकिन तब भी वह नहीं माना। उस राक्षस ने स्वयं को एक मूषक के रूप में बदल लिया और गणेश जी की और आक्रमण करने के लिए दौड़ा। जैसे ही वह गणेश जी के पास पहुंचा गणेश जी कूद कर उसके ऊपर बैठ गए और गणेश जी ने गजमुख को जीवन भर के लिए मुषक में बदल दिया और अपने वाहन के रूप में जीवन भर के लिए रख लिया।
गणेश का वाहन मूशक कैसे बना इस बारे में अलग अलग कहानियां, प्रकरण है, इसलिए निश्चित तौर से नहीं कह सकते कि कौनसी कहानी सच है जो हमे निश्चित करे कि इस यही सच्ची कहानी है। ऐसी 2 कथाएं है जो कुछ ऐसी है.
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गणेश का वाहन मूशक कैसे बना दूसरी कथा अनुसार

एक बार देवराज इन्द्र अपनी सभा में सभी देव गणों के साथ किसी गंभीर विषय पर चर्चा कर रहे थे। उस सभा में गन्धर्व और अप्सराएं भी मौजूद थी। सारे देवगन इंद्र की बातों को बड़े ही ध्यान से सुन रहे थे एवं अपना अपना मत भी बता रहे थे लेकिन सभा में एक क्रौंच नाम का गन्धर्व था जो देवराज की बातें न सुनकर अप्सराओं के साथ हंसी ठिठोली कर रहा था। कुछ समय तक देवराज इंद्र ने उसकी हरकतों को नज़रंदाज़ किया और उसे इशारे में समझाया। किन्तु क्रौंच पर इसका कुछ भी असर नहीं हुआ क्योंकि उस समय वह उन्माद में डूबा हुआ था। उसकी इस हरकत से देवराज क्रोधित हो उठे और उसे श्राप दे दिया की वह एक मूषक बन जाए। देवराज के श्राप से वह तुरंत ही गन्धर्व से मूषक बन गया और पूरे इंद्र लोग में इधर उधर भागने लगा। उसके उत्पात से परेशान होकर इंद्र ने उसे देवलोक के बाहर फ़ेंक देने का आदेश दिया जिसके पश्चात द्वारपालों ने क्रौंच को स्वर्ग लोक के बहार फ़ेंक दिया। स्वर्ग लोग से क्रौंच सीधा ऋषि पराशर के आश्रम में जा गिरा। वहां उसने क्रोध में आकर सारे पात्रों को छिन्न भिन्न कर दिया था और सारा भोजन चट कर गया। यही नहीं उसने ऋषियों के वस्त्र और उनकी धार्मिक पुस्तकें भी कुतर डाली।
मूषक के उत्पात से ऋषि पराशर के आश्रम में चारों तरफ हाहाकार मच गया तब उन्होंने परेशान होकर श्री गणेश का आवाहन किया और उसके आतंक से बचाने का आग्रह किया। तब भगवान गणेश ने अपने पाश को फ़ौरन आदेश दिया कि वह उस मूषक को पकड़ कर लाए। जब पाश मूषक को पाताल लोक से ढूंढ कर गणेश जी के पास लाया तो भगवान के सम्मुख आते ही मूषक भय से कांपने लगा। उसकी यह दशा देख कर गणेश जी को हंसी आ गयी जिसके पश्चात मूषक भी सामान्य हो गया और गजानन से कहने लगा की आप जो चाहे मुझसे माँग लें। ऐसा सुनते ही भगवान ने उसे अपना वाहन बनने को कहा और वह उसके ऊपर विराजमान हो गए। चूँकि गणेश जी का शरीर काफी भारी था इसलिए वह उनका भार उठाने में सक्षम नहीं था। इसलिए उसने भगवान से प्रार्थना कि की वह उसे इतनी शक्ति प्रदान करें कि वो उनका भार उठा सके तब गणेश जी ने तथास्तु कहा और इस प्रकार मूषक उनका वाहन बन गया।
  • गणेश जी चूहे पर क्यों बैठते हैं
चूहा अहंकार का प्रतिनिधित्व करता है । भगवान गणेश चूहे का उपयोग अहंकार को नियंत्रित करने की आवश्यकता को दर्शाते हैं और इसलिए ऐसा कहा जाता है कि जो अपने अहंकार को नियंत्रित करता है उसके पास गणेश चेतना होती है। गणेश चतुर्थी ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाले भगवान का उत्सव है। भटकता चूहा मनुष्य के डगमगाते मन का भी प्रतीक है।
  • गणेश जी का किसका अवतार है
शुक्राचार्य के कहने पर लोभासुर ने भगवान शिव से वरदान पाने के लिए कठोर साधना की। साधना से प्रसन्न होकर लोभासुर को निर्भय होने का वरदान दे दिया। वरदान पाकर लोभासुर ने सभी लोकों पर कब्जा जमा लिया। तब सभी ने गणेशजी की प्रार्थना की और भगवान गणेश ने गजानन के रूप में अवतार लिया।

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