शिव महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ सम्पूर्ण मंत्र जप की विधि और नियमों लाभ,Meaning of Shiv Mahamrityunjaya Mantra, method and rules of chanting the complete mantra, benefits

शिव महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ सम्पूर्ण मंत्र जप की विधि और नियमों लाभ

  1. महामृत्युंजय 
  2. महामृत्युंजय मंत्र के फायदे
  3. महामृत्युंजय मंत्र का सरल अनुवाद
  4. महामृत्युंजय मंत्र जप की विधि
  5. ऋग्वेद महामृत्युंजय मंत्र
  6. सम्पूर्ण महामृत्युंजय मंत्र सम्पुट विधि से है। इसमें कुल 52 अक्षर होते हैं।
  7. महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ
  8. जाप करते समय रखें इन नियमों का ध्यान
इस ब्लॉग में ऊपर दिये गए 8 शीर्षक के बारे में है

महामृत्युंजय 

महामृत्युंजय मंत्र के विधि विधान के साथ में जाप करने से अकाल मृत्यु तो टलती ही हैं, रोग, शोक, भय इत्यादि का नाश होकर व्यक्ति को स्वस्थ आरोग्यता की प्राप्ति होती हैं। यदि स्नान करते समय शरीर पर पानी डालते समय महामृत्युन्जय मंत्र का जप करने से त्वचा सम्बन्धित समस्याए दूर होकर स्वास्थ्य लाभ होता हैं। यदि किसी भी प्रकार के अरिष्ट की आशंका हो, तो उसके निवारण एवं शान्ति के लिये शास्त्रों में सम्पूर्ण विधि-विधान से महामृत्युंजय मंत्र के जप करने का उल्लेख किया गया हैं। जिस्से व्यक्ति मृत्यु पर विजय प्राप्ति का वरदान देने वाले देवो के देव महादेव प्रसन्‍न होकर अपने भक्त के समस्त रोगो का हरण कर व्यक्ति को रोगमुक्त कर उसे दीर्घायु प्रदान करते हैं। मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के कारण ही इस मंत्र को मृत्युंजय कहा जाता है। महामृत्यंजय मंत्र की महिमा का वर्णन शिव पुराण, काशीखंड और महापुराण में किया गया हैं। आयुर्वेद के ग्रंथों में भी मृत्युंजय मंत्र का उल्लेख है। मृत्यु को जीत लेने के कारण ही इस मंत्र को मृत्युंजय कहा जाता है।

महामृत्युंजय मंत्र के फायदे

रोगों से मुक्ति के लिए 11000 मंत्रों का जाप करें. - वहीं, पुत्र प्राप्ति के लिए, जीवन में उन्नति और अकाल मृत्यु से बचने के लिए सवा लाख की संख्या में मंत्र जप करना शुभ माना गया है. - अगर इतनी संख्या में मंत्र जाप करना संभव नहीं है, तो 108 बार मंत्र जाप भी किया जा सकता है.

महामृत्युंजय मंत्र का सरल अनुवाद

महामृत्युंजय मंत्र का मतलब है कि हम भगवान रूद्र (शिव) की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो हर श्वास में जीवन की मधुर परिपूर्णता को पोषित करते हैं, वृद्धि करते हैं और पूरे जगत का पालन-पोषण करते हैं। ककड़ी की तरह हम इसके तने से (मृत्यु से) अलग (मुक्त) हों।

महामृत्युंजय मंत्र जप की विधि

महामृत्युंजय मंत्र का जाप आपको सवा लाख बार करना चाहिए। वहीं, भोलेनाथ के लघु मृत्युंजय मंत्र का जाप 11 लाख बार किया जाता है। सावन माह में इस मंत्र का जाप अत्यंत ही कल्याणकारी माना जाता है। वैसे आप यदि अन्य माह में इस मंत्र का जाप करना चाहते हैं तो सोमवार के दिन से इसका प्रारंभ कराना चाहिए। इस मंत्र के जाप में रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करें। इस बात का ध्यान रखें कि दोपहर 12 बजे के बाद महामृत्युंजय मंत्र का जाप न करें। मंत्र का जाप पूर्ण होने के बाद हवन करन उत्तम माना जाता है।

ऋग्वेद महामृत्युंजय मंत्र

महामृत्युंजय मंत्र ऋग्वेद में मिलता है जिसे त्रयंबकम मंत्र भी कहा जाता है। त्रयंबक रुद्र का विशेषण है। ऋग्वेद में शिव की चर्चा रूद्र के रूप में हीं है जो सर्वशक्तिमान है। इसी कारण महामृत्युंजय मंत्र रुद्र मंत्र भी कहते हैं। यह श्लोक यजुर्वेद में भी आता है। वहीं शिवपुराण सहित अन्य ग्रंथो में भी इसका महत्व बताया गया है। ऋषि-मुनियों ने महा मृत्युंजय मंत्र को वेद का हृदय कहा है। महामृत्युंजय मंत्र में कुल 33 अक्षर हैं जिसे महर्षि वशिष्ठ ने 33 कोटि (प्रकार) देवताओं का द्योतक बताया है। उन तैंतीस देवताओं में तेंतीस कोटी (प्रकार) देवता में 8 वसु, 12 आदित्य, 11 रुद्र एवं 2 अश्वनी कुमार हैं। इन तैंतीस कोटि देवताओं की सम्पूर्ण शक्तियाँ महामृत्युंजय मंत्र से निहीत होती है। संस्कृत में महामृत्युंजय उस व्यक्ति को कहते हैं जो मृत्यु को जीतने वाला हो। इसलिए भगवान शिव की स्तुति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप किया जाता है। इसके जप से संसार के सभी कष्ट से मुक्ति मिलती हैं। ये मंत्र जीवन देने वाला है। इससे जीवनी शक्ति तो बढ़ती ही है साथ ही सकारात्मकता बढ़ती है। ऋषि शुक्राचार्य जिस मंत्र के सहयोग से असुरों को पुनर्जीवित कर देते थे उस मंत्र का यह एक घटक है और इसीलिए इसे मृत-संजीवनी मंत्र के रूप में भी जाना जाता है।

ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् 
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ ॥

सम्पूर्ण महामृत्युंजय मंत्र सम्पुट विधि से है। इसमें कुल 52 अक्षर होते हैं।

लघु मृत्युंजय मंत्र -ॐ जूं स माम् पालय पालय सः जूं ॐ।

महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ
  • त्रयंबकम: त्रि-नेत्रों वाला (कर्मकारक)
  • यजामहे: हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्देय।
  • सुगंधिमः मीठी महक वाला, सुगंधित (कर्मकारक)
  • पुष्टिः एक सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता।
  • वर्धनमः वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है, (स्वास्थ्य, धन, सुख में) वृद्धिकारक; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है, एक अच्छा माली।
  • उर्वारुकमः ककड़ी (कर्मकारक)।
  • इव: जैसे, इस तरह।
  • बंधना: तना (लौकी का); ("तने से" पंचम विभक्ति वास्तव में समाप्ति-द से अधिक लंबी है जो संधि के माध्यम से न/अनुस्वार में परिवर्तित होती है)।
  • मृत्युरः मृत्यु से।
  • मुक्षियाः हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें।
  • माः न।
  • अमृतात- अमरता, मोक्ष।

जाप करते समय रखें इन नियमों का ध्यान 

  1. शास्त्रों में मंत्र जाप करते समय स्पष्ट रुप से उच्चारण का बहुत महत्व बताया गया है। इसलिए जाप करते समय उच्चारण की शुद्धता का ध्यान रखें।
  2. जाप करते समय माला से ही जाप करें क्योंकि संख्याहीन जाप का फल प्राप्त नहीं होता है। प्रतिदिन कम से कम एक माला जाप पूरा करके ही उठे।
  3. अगर आप दूसरे दिन जाप करने जा रहे है तो पहले दिन से कम जाप न करें। अधिक से अधिक कितना भी जाप किया जा सकता है।
  4. मंत्र का उच्चारण करते समय स्वर होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। धीमे स्वर में आराम से मंत्र जाप करें। मंहमृत्युंजय मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से ही करें।
  5. जाप करते समय माला को गौमुखी में ढककर रखें।
  6. जाप से पहले भगवान के समक्ष धूप दीप जलाएं। जाप के दौरान दीपक जलता रहे।
  7. इस मंत्र का जाप करते समय शिवजी की प्रतिमा, तस्वीर, शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र पास में से कोई एक को अपने पास अवश्य रखें।
  8. मंत्र जाप हमेशा कुशा के आसन पर किया जाता है। इसलिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी कुशा के आसन पर करें। महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते समय एवं सभी सभी पूजा-पाठ करते समय अपना मुख पूर्व दिशा की ओर ही रखें।
  9. अगर आप शिवलिंग के पास बैठकर जाप कर रहे हैं तो जल या दूध से अभिषेक करते रहें। जाप करने के लिए एक शांत स्थान का चुनाव करें, जिससे जाप के समय मन इधर-उधर न भटके। जाप के समय उबासी न लें और न ही आलस्य करें। अपना पूरा ध्यान भगवान के चरणों में लगाएं।
  10. जाप करने के दिनों में पूर्णतया ब्रह्मचार्य का पालन करें।
  11. जितने दिन जाप करना हो उतने दिनों तक तामसिक चीजों जैसे मांस, मदिरा लहसुन, प्याज या अन्य किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थ आदि से दूर रहें।
  12. जिस स्थान पर प्रथम दिन जप किया हो प्रतिदिन उसी स्थान पर बैठकर जप करें।
  13. जाप के दौरान बीच में किसी से बात न करें। सांसारिक बातों से दूर रहें।
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  1. महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव प्रसन्न(Mahamrityunjaya Mantra)
  2. इस मंत्र के जाप से ये फ़ायदे मिलते हैं:-
  3. महामृत्युंजय मंत्र का जाप क्यों करते हैं
  4. महामृत्युंजय मंत्र का शरीर में स्थान
  5. महामृत्युंजय मंत्र पदों की शक्तियाँ
  6. महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ क्या है?
  7. महामृत्युंजय मंत्र का 108 बार जाप करने से क्या होता है?
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🙏नमस्ते दोस्तों आपका स्वागत है हमारे ब्लॉग पर और हमारे ब्लॉग पोस्ट पर हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं से सम्बंधित है और मुझे खुशी है कि मेरा जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ और मुझे अपने देवी-देवताओं के बारे में पढ़ने की रुचि बहुत है और दोस्तों मुझे लगता है कि मैं अपने हिंदू भाइयों और बहनों के लिए हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं से सम्बंधि ब्लॉग पोस्ट करूंगा और हिन्दू धर्म में देवताओं का ज्ञान एक महत्वपूर्ण और उच्चतम स्तर का ज्ञान है। हिन्दू धर्म में अनंत संख्या में देवी-देवताओं की पूजा और आराधना की जाती है, जो सभी विभिन्न गुणों, शक्तियों, और प्रतिष्ठाओं के साथ सम्मानित हैं। विभिन्न पुराणों, ग्रंथों, और धार्मिक ग्रंथों के माध्यम से, हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं के गुण, विशेषताएं, और महत्व का अध्ययन किया जाता है अगर आपको हमारा ब्लॉग पोस्ट पसंद आया हो तो आप इसे सोशल मीडिया फेसबुक व्हाट्सएप आदि पर जरूर शेयर करें। और कृपया हमें कमेंट करके बताएं कि आपको हमारे ब्लॉग पोस्ट की जान कारी कैसे लगी ! "सनातन अमर था अमर हे अमर रहेगा" !!सनातन_धर्म_ही_सर्वश्रेष्ठ_है!!

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