महामृत्युंजय मंत्र का जाप क्यों करते हैं, क्या लाभ है , Why do we chant Mahamrityunjaya Mantra, what are the benefits

महामृत्युंजय मंत्र का जाप क्यों करते हैं, क्या लाभ है

  1. महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव प्रसन्न(Mahamrityunjaya Mantra)
  2. इस मंत्र के जाप से ये फ़ायदे मिलते हैं:-
  3. महामृत्युंजय मंत्र का जाप क्यों करते हैं
  4. महामृत्युंजय मंत्र का शरीर में स्थान
  5. महामृत्युंजय मंत्र पदों की शक्तियाँ
  6. महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ क्या है?
  7. महामृत्युंजय मंत्र का 108 बार जाप करने से क्या होता है?
इस ब्लॉग में ऊपर दिये गए 7 शीर्षक के बारे में है

महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव प्रसन्न(Mahamrityunjaya Mantra)

महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और हर तरह के भय, रोग, और दोषों से मुक्ति मिलती है. माना जाता है कि यह मंत्र मोक्ष दिलाता है
महामृत्युंजय मंत्र का जाप, भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है. संस्कृत में महामृत्युंजय का मतलब है मृत्यु को जीतने वाला. इस मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद से लेकर यजुर्वेद तक में मिलता है.
महामृत्युंजय मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है. इस मंत्र का जाप प्रात:काल में ही करना चाहिए. दोपहर के समय इस मंत्र का जाप नहीं करना चाहिए
महामृत्युंजय मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद से लेकर यजुर्वेद तक में मिलता है. संस्कृत में महामृत्युंजय का मतलब है मृत्यु को जीतने वाला. इसलिए इस मंत्र से भगवान शिव की अराधना की जाती है.
Why do we chant Mahamrityunjaya Mantra, what are the benefits

इस मंत्र के जाप से ये फ़ायदे मिलते हैं:-

  • अकाल मृत्यु का भय दूर होता है
  • मांगलिक दोष, नाड़ी दोष, कालसर्प दोष, भूत-प्रेत दोष, रोग, दुःस्वप्न, गर्भनाश, संतानबाधा जैसे कई दोषों का नाश होता है
  • भोलेनाथ प्रसन्न होकर हर तरह के भय, रोग, और दोषों से मुक्त करते हैं
  • सुख-समृद्धि का वरदान मिलता है
  • कष्टों से मुक्ति मिलती है
  • बड़ा से बड़ा रोग भी सही हो जाता है
  • स्नान करते समय इस मंत्र को बोलने से आरोग्यता प्राप्त होती है 
  • महामृत्युंजय मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है. आम तौर पर, इस मंत्र का जाप कम से कम 45 और ज़्यादा से ज़्यादा 84 दिनों में पूरा हो जाना चाहिए. 

महामृत्युंजय मंत्र का जाप क्यों करते हैं

महामृत्युंजय मंत्र का जाप अकाल मृत्यु, पुत्र की प्राप्ति के लिए, उन्नति के लिए सवा लाख की संख्या में मंत्र जप करना अनिवार्य है। महारोग धन-हानि, गृह क्लेश, ग्रहबाधा, ग्रहपीड़ा, सजा का भय, प्रॉपर्टी विवाद, समस्त पापों से मुक्ति, भय से छुटकारा पाने आदि जैसे स्थितियों के लिए 1100 मंत्र का जप किया जाता है।

महामृत्युंजय मंत्र का शरीर में स्थान

  • त्रि - ध्रुववसु प्राण का घोतक है जो सिर में स्थित है।
  • यम - अध्ववरसु प्राण का घोतक है, जो मुख में स्थित है।
  • ब - सोम वसु शक्ति का घोतक है, जो दक्षिण कर्ण में स्थित है।
  • कम - जल वसु देवता का घोतक है, जो वाम कर्ण में स्थित है।
  • य - वायु वसु का घोतक है, जो दक्षिण बाहु में स्थित है।
  • जा - अग्नि वसु का घोतक है, जो बाम बाहु में स्थित है।
  • म - प्रत्युवष वसु शक्ति का घोतक है, जो दक्षिण बाहु के मध्य में स्थित है।
  • हे - प्रयास वसु मणिबन्धत में स्थित है।
  • सु - वीरभद्र रुद्र प्राण का बोधक है। दक्षिण हस्त के अंगुलि के मुल में स्थित है। ग - शुम्भ रुद्र का घोतक है दक्षिणहस्त् अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है।
  • न्धिम् - गिरीश रुद्र शक्ति का मुल घोतक है। बायें हाथ के मूल में स्थित है।
  • पु - अजैक पात रुद्र शक्ति का घोतक है। बाम हस्तह के मध्य भाग में स्थित है।
  • ष्टि - अहर्बुध्यत् रुद्र का घोतक है, बाम हस्त के मणिबन्धा में स्थित है।
  • व - पिनाकी रुद्र प्राण का घोतक है। बायें हाथ की अंगुलि के मुल में स्थित है। र्ध - भवानीश्वपर रुद्र का घोतक है, बाम हस्त अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है।
  • नम् - कपाली रुद्र का घोतक है। उरु मूल में स्थित है।
  • उ - दिक्पति रुद्र का घोतक है। यक्ष जानु में स्थित है।
  • उ - दिक्पति रुद्र का घोतक है। यक्ष जानु में स्थित है। र्वा - स्था णु रुद्र का घोतक है जो यक्ष गुल्फ् में स्थित है।
  • रु - भर्ग रुद्र का घोतक है, जो चक्ष पादांगुलि मूल में स्थित है।
  • क - धाता आदित्यद का घोतक है जो यक्ष पादांगुलियों के अग्र भाग में स्थित है।
  • मि - अर्यमा आदित्यद का घोतक है जो वाम उरु मूल में स्थित है। व - मित्र आदित्यद का घोतक है जो वाम जानु में स्थित है।
  • ब - वरुणादित्या का बोधक है जो वाम गुल्फा में स्थित है।
  • न्धा - अंशु आदित्यद का घोतक है। वाम पादंगुलि के मुल में स्थित है।
  • नात् - भगादित्यअ का बोधक है। वाम पैर की अंगुलियों के अग्रभाग में स्थित है। मृ - विवस्न (सुर्य) का घोतक है जो दक्ष पार्श्वि में स्थित है।
  • र्यो - दन्दाददित्य् का बोधक है। वाम पार्श्वि भाग में स्थित है।
  • मु - पूषादित्यं का बोधक है। पृष्ठे भगा में स्थित है।
  • क्षी - पर्जन्य् आदित्यय का घोतक है। नाभि स्थिल में स्थित है।
  • य - त्वणष्टान आदित्यध का बोधक है। गुहय भाग में स्थित है।
  • मां - विष्णुय आदित्यय का घोतक है यह शक्ति स्तुप दोनों भुजाओं में स्थित है। मृ - प्रजापति का घोतक है जो कंठ भाग में स्थित है।
  • तात् - अमित वषट्कार का घोतक है जो हदय प्रदेश में स्थित है।

महामृत्युंजय मंत्र पदों की शक्तियाँ

मंत्रगत पदों की शक्तियाँ जिस प्रकार मंत्रा में अलग अलग वर्णों (अक्षरों) की शक्तियाँ हैं। उसी प्रकार अलग- अलग पदों की भी शक्तियाँ है।
  • त्र्यम्बकम् - त्रैलोक्यक शक्ति का बोध कराता है जो सिर में स्थित है।
  • यजा - सुगन्धात शक्ति का घोतक है जो ललाट में स्थित है।
  • महे - माया शक्ति का द्योतक है जो कानों में स्थित है।
  • सुगन्धिम् - सुगन्धि शक्ति का द्योतक है जो नासिका (नाक) में स्थित है।
  • पुष्टि - पुरन्दिरी शक्ति का द्योतक है जो मुख में स्थित है।
  • वर्धनम - वंशकरी शक्ति का द्योतक है जो कंठ में स्थित है।
  • उर्वा - ऊर्द्धक शक्ति का द्योतक है जो हृदय में स्थित है।
  • रुक - रुक्तदवती शक्ति का द्योतक है जो नाभि में स्थित है। मिव रुक्मावती शक्ति का बोध कराता है जो कटि भाग में स्थित है।
  • बन्धानात् - बर्बरी शक्ति का द्योतक है जो गुह्य भाग में स्थित है।
  • मृत्योः - मन्त्र्वती शक्ति का द्योतक है जो उरुदंय में स्थित है।
  • मुक्षीय - मुक्तिकरी शक्तिक का द्योतक है जो जानुव्दओय में स्थित है।
  • मा - माशकिक्तत सहित महाकालेश का बोधक है जो दोंनों जंघाओ में स्थित है।
  • अमृतात - अमृतवती शक्तिका द्योतक है जो पैरो के तलुओं में स्थित है।
महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ क्या है?

महा मृत्युंजय एक शक्तिशाली और प्राचीन संस्कृत मंत्र है जिसका जप सुरक्षा, उपचार और मृत्यु के भय पर काबू पाने के लिए किया जाता है। "महा" शब्द का अर्थ है महान, "मृत्यु" का अर्थ है मृत्यु, और "जया" का अर्थ है विजय या जीत। इसलिए, महा मृत्युंजय को "महान मृत्यु-विजय मंत्र" के रूप में जाना जाता है।

महामृत्युंजय मंत्र का 108 बार जाप करने से क्या होता है?

यदि आप भयमुक्त, रोगमुक्त जिंदगी चाहते हैं और अकाल मृत्यु के डर से खुद को दूर करना चाहते हैं, तो आपको भगवान शिव के सबसे प्रिय 'महामृत्युंजय मंत्र' का जाप करना चाहिए. इसका 108 बार रोजाना जाप करने से मनुष्य की सभी बाधाएं और परेशानियां खत्म हो जाती हैं और अधिक से अधिक लाभ प्राप्त होता है. माना जाता है कि ये मोक्ष मंत्र है.

अगले ब्लॉग में
  1. महामृत्युंजय 
  2. महामृत्युंजय मंत्र के फायदे
  3. महामृत्युंजय मंत्र का सरल अनुवाद
  4. महामृत्युंजय मंत्र जप की विधि
  5. ऋग्वेद महामृत्युंजय मंत्र
  6. सम्पूर्ण महामृत्युंजय मंत्र सम्पुट विधि से है। इसमें कुल 52 अक्षर होते हैं।
  7. महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ
  8. जाप करते समय रखें इन नियमों का ध्यान
यहाँ 8 शीर्षक के बारे में अगले ब्लॉग में  हैं लिंक पर क्लिक करें-महामृत्युंजय

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🙏नमस्ते दोस्तों आपका स्वागत है हमारे ब्लॉग पर और हमारे ब्लॉग पोस्ट पर हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं से सम्बंधित है और मुझे खुशी है कि मेरा जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ और मुझे अपने देवी-देवताओं के बारे में पढ़ने की रुचि बहुत है और दोस्तों मुझे लगता है कि मैं अपने हिंदू भाइयों और बहनों के लिए हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं से सम्बंधि ब्लॉग पोस्ट करूंगा और हिन्दू धर्म में देवताओं का ज्ञान एक महत्वपूर्ण और उच्चतम स्तर का ज्ञान है। हिन्दू धर्म में अनंत संख्या में देवी-देवताओं की पूजा और आराधना की जाती है, जो सभी विभिन्न गुणों, शक्तियों, और प्रतिष्ठाओं के साथ सम्मानित हैं। विभिन्न पुराणों, ग्रंथों, और धार्मिक ग्रंथों के माध्यम से, हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं के गुण, विशेषताएं, और महत्व का अध्ययन किया जाता है अगर आपको हमारा ब्लॉग पोस्ट पसंद आया हो तो आप इसे सोशल मीडिया फेसबुक व्हाट्सएप आदि पर जरूर शेयर करें। और कृपया हमें कमेंट करके बताएं कि आपको हमारे ब्लॉग पोस्ट की जान कारी कैसे लगी ! "सनातन अमर था अमर हे अमर रहेगा" !!सनातन_धर्म_ही_सर्वश्रेष्ठ_है!!

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