पंचमुखी शिव मंत्र त्रिगुण आरती भगवान शिव के पंचमुख स्वरूप का क्या है रहस्य जानिए Panchmukhi Shiva Mantra Trigun Aarti Know the secret of the five faced form of Lord Shiva
पंचमुखी शिव मंत्र त्रिगुण आरती भगवान शिव के पंचमुख स्वरूप का क्या है रहस्य जानिए
Panchmukhi Shiva Mantra Trigun Aarti Know the secret of the five faced form |
भगवान शिव के पांच मुख:
- भगवान शिव के पश्चिम दिशा का मुख सद्योजात है।
- यह बालक के समान स्वच्छ, शुद्ध व निर्विकार हैं।
- उत्तर दिशा का मुख वामदेव है।
- वामदेव अर्थात् विकारों का नाश करने वाला।
- दक्षिण मुख अघोर है।
पंचमुखी शिव मंत्र
- ॐ नमो: भगवते पंचमुखी महारुद्राय नमः।
- ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।
- ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्यं मेधा प्रयच्छ स्वाहा।
- ॐ शर्वाय नम:।
- ॐ विरूपाक्षाय नम:।
- करचरणकृतं वाक् कायजं कर्मजं श्रावण वाणंजं वा मानसंवापराधं ।
- विहितं विहितं वा सर्व मेतत् क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो ॥
भगवान शिव के पूर्व मुख का नाम
- ब्रह्मा जब सृष्टि रचना के लिए चिन्तित हुए, तब भगवान ने उन्हें ‘अघोर रूप’ में दर्शन दिए। भगवान शिव का अघोर रूप महाभयंकर है जिसमें वे कृष्ण पिंगल वर्ण वाले, काला वस्त्र, काली पगड़ी, काला यज्ञोपवीत और काला मुकुट धारण किये हैं तथा मस्तक पर चंदन भी काले रंग का है। भगवान शंकर ने ब्रह्माजी को ‘अघोर मन्त्र’ दिया जिससे वे सृष्टि रचना में समर्थ हुए। विश्वरूप नामक कल्प में भगवान शिव का ‘ईशान’ नामक पांचवा अवतार हुआ। ब्रह्माजी पुत्र की कामना से मन ही मन शिवजी का ध्यान कर रहे थे, उसी समय सिंहनाद करती हुईं सरस्वती सहित भगवान ‘ईशान’ प्रकट हुए जिनका स्फटिक के समान उज्ज्वल वर्ण था। भगवान ईशान ने सरस्वती सहित ब्रह्माजी को सन्मार्ग का उपदेश देकर कृतार्थ किया।
त्रिगुण शिवजी की आरती
जय शिव ओंकारा, हर जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव...॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥
ॐ जय शिव...॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥
ॐ जय शिव...॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥
ॐ जय शिव...॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
ॐ जय शिव...॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥
ॐ जय शिव...॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ
जय शिव...॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥
ॐ जय शिव...॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥
ॐ जय शिव...॥
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा|
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा...॥
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