श्री शिवाष्टक ! Shri Shivashtak

 श्री शिवाष्टक, आदि अनादि क्या है

भगवान शंकर को आदि और अनादि माना गया है। हिन्दू धर्म में वे सर्वोच्च हैं। उनका किसी भी तरह से जाने और अनजाने अपमान करने वाले का जीवन सही नहीं रहता। हम यहां बात करेंगे त्रिदेवों में (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) से एक महेश की जो माता पार्वती के पति हैं जिन्हें शंकर कहा जाता है और जिनको भक्तलोग शिव भी कहते हैं।
आदि :- जिसका प्रारंभ न हो. अनादिकाल - इतना प्राचीन समय जिसके आरंभ का अनुमान नहीं लगाया जा सकता हो  आदि अनादि काल  कहते हैं? 
What is Shri Shivashtak, Aadi Aadi

क्या शिव स्वयंभू हैं

एक तरह से भगवान शंकर स्वयंभू हैं क्योंकि उनकी उत्पत्ति निराकार रूप से हुई थी। स्कंद पुराण में कहा गया है- ब्रह्मा, विष्णु, महेश (त्रिमूर्ति) की उत्पत्ति महेश्वर अंश से ही होती है। भगवान शिव स्वयंभू हैं इस तथ्य को जानने के लिए वेद और पुराण पढ़ाना होंगे। दरअसल, शिव को ही ब्रह्मरूप, रुद्र, महेश, महाकाल, सदाशिव आदि संज्ञा दी जाने के कारण  उन्हें स्वंभू माना गया। यद‍ि हम पार्वती के पति शंकर की बात कर रहे हैं तो वे भगवान तो हैं लेकिन परब्रह्म नहीं। परमेश्वर स्वरूप तो हैं लेकिन परमेश्वर नहीं। वे परमेश्वर के निराकर रूप से उत्पन्न हैं।

सप्तऋषि गण शिव के शिष्य हैं

शिव ने अपने ज्ञान के विस्तार के लिए 7 ऋषियों को चुना और उनको योग के अलग-अलग पहलुओं का ज्ञान दिया, जो योग के 7 बुनियादी पहलू बन गए। वक्त के साथ इन 7 रूपों से सैकड़ों शाखाएं निकल आईं। देवों के देव महादेव : देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं।

श्री शिवाष्टक सम्पूर्ण

आदि अनादि अनंत अखंड अभेद अखेद सुबेद बतावैं ।
अलग अगोचर रूप महेस कौ जोगि-जति-मुनि ध्यान न पावैं ॥

आगम-निगम-पुरान सबै इतिहास सदा जिनके गुन गावैं ।
बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं ॥1॥

सृजन सुपालन-लय-लीला हित जो बिधि-हरि-हर रूप बनावैं ।
एकहि आप बिचित्र अनेक सुबेष बनाइ कैं लीला रचावैं ॥

सुंदर सृष्टि सुपालन करि जग पुनि बन काल जु खाय पचावैं ।
बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं ॥2॥

अगुन अनीह अनामय अज अविकार सहज निज रूप धरावैं ।
परम सुरम्य बसन-आभूषन सजि मुनि-मोहन रूप करावैं ॥

ललित ललाट बाल बिधु बिलसै रतन-हार उर पै लहरावैं।
बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं ॥3॥

अंग बिभूति रमाय मसानकी बिषमय भुजगनि कौं लपटावैं ।
नर-कपाल कर मुंडमाल गल, भालु-चरम सब अंग उढ़ावैं ॥

घोर दिगंबर, लोचन तीन भयानक देखि कैं सब थर्रावैं ।
बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं ॥4॥

सुनतहि दीनकी दीन पुकार दयानिधि आप उबारन धावैं ।
पहुँच तहाँ अविलंब सुदारून मृत्युको मर्म बिदारि भगावैं ॥

मुनि मृकंडु-सुतकी गाथा सुचि अजहुँ बिग्यजन गाई सुनावैं ।
बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं ॥5॥

चाउर चारि जो फूल धतूरके, बेलके पात औ पानि चढ़ावैं ।
गाल बजाय कै बोल जो ‘हरहर महादेव’ धुनि जोर लगावैं ॥

तिनहिं महाफल देय सदासिव सहजहि भुक्ति-मुक्ति सो पावैं ।
बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं ॥6॥

बिनसि दोष दुख दुरित दैन्य दारिद्रय नित्य सुख-सांति मिलावैं ।
आसुतोष हर पाप-ताप सब निरमल बुद्धि-चित्त बकसावैं ॥

असरन-सरन काटि भवबंधन भव निज भवन भव्य बुलवावैं ।
बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं ॥7॥

औढरदानि, उदार अपार जु नैकु-सी सेवा तें ढुरि जावैं ।
दमन असांति, समन सब संकट, बिरद बिचार जनहि अपनावैं ॥

ऐसे कृपालु कृपामय देव के क्यों न सरन अबहीं चलि जावैं ।
बड़भागी नर-नारि सोई जो साम्ब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं ॥8॥

।। इति श्री शिवाष्टक सम्पूर्ण ।

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