मुरुदेश्वर मंदिर कर्नाटक के बारे में कब बना रामायण काल से जुड़ा हुआ है इतिहास ,When was Murudeshwar Temple built in Karnataka? History is related to Ramayana period

मुरुदेश्वर मंदिर कर्नाटक के बारे में रामायण काल से जुड़ा हुआ है इतिहास 

  • मुरुदेश्वर क्यों प्रसिद्ध है?
मुर्देश्वर भारत के कर्नाटक राज्य में उत्तर कन्नड़ जिले का एक शहर है, यह दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची शिव प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है, यह शहर लक्षद्वीप सागर के तट पर स्थित है और मुरुदेश्वर मंदिर के लिए भी प्रसिद्ध है। शहर में मैंगलोर-मुंबई कोंकण रेलवे मार्ग पर एक रेलवे स्टेशन है।

  • मुरुदेश्वर में कौन सा भगवान है?
मुरुदेश्वर'' हिंदू भगवान शिव का दूसरा नाम है। दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची शिव प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध, यह शहर अरब सागर के तट पर स्थित है और मुर्देश्वर मंदिर के लिए भी प्रसिद्ध है। मंदिर परिसर में दूर से दिखाई देने वाली भगवान शिव की एक विशाल ऊंची मूर्ति मौजूद है।
When was Murudeshwar Temple built in Karnataka
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मुरुदेश्वर मंदिर कर्नाटक

मुरुदेश्वर मंदिर: विश्व का सबसे ऊँचा गोपुरम, 123 फुट ऊँची भगवान शिव की प्रतिमा  टीपू सुल्तान के अब्बा ने जिसे लूटा था ऑपइंडिया की मंदिरों की श्रृंखला में हम आज आपको रामायण काल से स्थापित एक ऐसे दिव्य स्थान ले चलते हैं, जो भगवान शिव को समर्पित है और तीन ओर से अरब सागर से घिरा हुआ है। हिंदुओं के इस दिव्य स्थान की विशेषता है कि यहाँ स्थापित हैं भगवान शिव का ‘आत्मलिंग’ और मंदिर परिसर में ही स्थित है लगभग 250 फुट का गोपुरम, जो विश्व का सबसे ऊँचा गोपुरम है। इसके अलावा यहाँ भगवान शिव की एक विशालकाय 123 फुट ऊँची प्रतिमा भी बनाई गई है। तो आइए आपको बताते हैं उस प्राचीन मंदिर के बारे में, जिसे हैदर अली ने भारी नुकसान पहुँचाया था लेकिन बाद में एक स्थानीय व्यापारी ने मंदिर को प्रदान किया वर्तमान भव्य स्वरूप। विशाल शिव मूर्तिभगवान शिव की यहां स्थापित विशाल मूर्ति की ऊंचाई करीब 123 फुट है। इसे इस तरीके से बनाया गया है कि दिन भर सूर्य की किरणें इस पर पड़ती रहती हैं। मूर्ति चांदी के रंग में कुछ इस तरह रंगी है की सूरज की किरण पड़ते ही यह और भी विशाल रूप में प्रतीत होती है। यह शिव प्रतिमा इतनी ऊंची है कि दूर से देखी जा सकती है, साथ ही इसे देखने के लिए यहां लिफ्ट भी बनाई गई है। इसे बनाने में करीब दो साल का वक्त लगा था और करीब पांच करोड़ रुपए की लागत आई थी। इस खास मंदिर को देखने के लिए देश ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी बड़ी संख्या में लोग आते हैं।
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मुरुदेश्वर मंदिर रावण से संबंध

पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण जब अमरता का वरदान पाने के लिए भगवान शिव की तपस्या कर रहा था, तब शिवजी ने उसकी तपस्या से खुश होकर उसे एक शिवलिंग दिया, जिसे आत्मलिंग कहा जाता है और कहा कि अगर तुम अमर होना चाहते हो तो इसे लंका ले जाकर स्थापित कर देना लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि इसे जिस जगह पर रख दोगे, यह वहीं स्थापित हो जाएगा।भगवान शिव के कहे अनुसार रावण शिवलिंग लेकर लंका की ओर जा रहा था, लेकिन बीच रास्ते में ही भगवान गणेश ने चालाकी से रावण को लंका भेज दिया और लिंग को गोकर्ण में जमीन पर रख दिया जिससे वह वहीं पर स्थापित हो गया।

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रामायण काल से जुड़ा हुआ है इतिहास

शिव पुराण में भगवान शिव के आत्मलिंग के बारे में बताया गया है। रावण ने अमरता का वरदान प्राप्त करने और महा-शक्तिशाली बनने के लिए भगवान शिव को अपनी तपस्या से प्रसन्न किया और उनसे आत्मलिंग प्राप्त किया। इसके बाद जब रावण ने उस आत्मलिंग को लंका ले जाने का प्रयास किया तब भगवान शिव ने यह शर्त रखी कि जहाँ भी यह आत्मलिंग जमीन पर रख दिया जाएगा, यह वहीं स्थापित हो जाएगा और उसके बाद इसे कोई उठा नहीं पाएगा। दैवीय कारणों से हुआ भी ऐसा ही। भगवान शिव को मुरुदेश्वर के नाम से भी जाना जाता है, इसलिए यह मंदिर जहाँ स्थित है, उस कस्बे का नाम मुरुदेश्वर और मंदिर का नाम मुरुदेश्वर मंदिर पड़ गया। मुरुदेश्वर मंदिर कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले के भटकल तहसील में स्थित है। यह मंदिर कंडुका पहाड़ी पर स्थित है, जो तीन ओर से अरब सागर से घिरा हुआ है। इसके अलावा यह क्षेत्र पश्चिमी घाट की पहाड़ियों की गोद में स्थित है। यही कारण है कि यहाँ आध्यात्मिक दिव्यता के साथ प्राकृतिक सौन्दर्य भी देखने को मिलता है। इस्लामी आक्रमण में हुए नुकसान के बाद व्यापारी ने दिया वर्तमान स्वरूप भारत के कई अन्य मंदिरों की तरह यह मंदिर भी इस्लामी कट्टरपंथ की भेंट चढ़ा। मुरुदेश्वर मंदिर का प्राचीन स्वरूप इस्लामी शासक हैदर अली के द्वारा नष्ट कर दिया गया था। इसके बाद इस मंदिर का वर्तमान दृश्य स्वरूप एक स्थानीय व्यापारी द्वारा बनवाया गया।
History is related to Ramayana period

मुरुदेश्वर मंदिर के बारे में क्या खास

'मुरुदेश्वर' भगवान शिव का ही एक नाम है। इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि इसके परिसर में भगवान शिव की एक विशाल मूर्ति स्थापित है, जिसे दुनिया की दूसरी सबसे विशाल और ऊंची शिव प्रतिमा (मूर्ति) माना जाता है। भगवान शिव की इस विशाल मूर्ति की ऊंचाई करीब 123 फीट है। मंदिर की विशालता और भव्यता को देखकर ऐसा प्रतीत हो सकता है कि इस मंदिर का निर्माण सरकार द्वारा कराया गया है लेकिन ऐसा है नहीं। मंदिर में स्थित विशाल गोपुरा का जीर्णोद्धार और भगवान शिव की विशालकाय मूर्ति का निर्माण स्थानीय व्यापारी और समाजसेवी आरएन शेट्टी के द्वारा कराया गया। मूर्ति के निर्माण में ही लगभग 2 साल का समय लगा और लगभग 5 करोड़ रुपए की लागत आई। इस मूर्ति के शिल्पकार शिवमोग्गा के काशीनाथ हैं। भगवान शिव की मूर्ति को इस प्रकार बनाया गया है कि इस पर सीधे ही सूर्य की किरणें गिरती रहें और यह मूर्ति लगातार चमकती रहे।

मुरुदेश्वर मंदिर की संरचना

मुरुदेश्वर मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है, यहाँ स्थित भगवान शिव की विशालकाय प्रतिमा और मंदिर परिसर में स्थित ‘राज गोपुरा’ जो कि विश्व का सबसे ऊँचा गोपुरा है। मंदिर के अंदर की ओर जाने वाली सीढ़ियों के प्रारंभ में ही क्रॉन्क्रीट के दो जीवंत हाथी बनाए गए हैं। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव का आत्मलिंग स्थापित है। इसके अलावा भगवान शिव की 123 फुट ऊँची विशालकाय प्रतिमा भी यहाँ का प्रमुख आकर्षण है। भगवान शिव की इस प्रतिमा के चार हाथ हैं, जिन्हें सोने से सजाया गया है। किसी भी द्रविड़ वास्तुकला के मंदिर के समान ही इस मंदिर में भी गोपुरा का निर्माण कराया गया है, जो 20 मंजिला इमारत के बराबर है और जिसकी ऊँचाई लगभग 250 फुट है। 
  • मुरुदेश्वर राजगोपुरम का निर्माण किसने करवाया था?
पूरा मंदिर और उसका परिसर, जिसमें 75 मीटर ऊंचा राज गोपुरा भी शामिल है, जो मुरुदेश्वर शिव मंदिर का मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करता है, 2 साल में बनाया गया था। इसके निर्माण को व्यवसायी और परोपकारी राम नागप्पा शेट्टी द्वारा वित्त पोषित किया गया था।
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  • मुरुदेश्वर  कैसे पहुँचें?
मुरुदेश्वर पहुँचने के लिए सबसे नजदीकी हवाईअड्डा मैंगलोर है, जो मंदिर से लगभग 160 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके अलावा यह स्थान गोवा के अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे से लगभग 200 किमी की दूरी पर स्थित है। मुरुदेश्वर रेलवे स्टेशन, मैंगलोर और मुंबई से रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है। भारत के लगभग सभी बड़े शहरों से मैंगलोर ट्रेन की सहायता से पहुँच सकते हैं। इसके अलावा मुरुदेश्वर राष्ट्रीय राजमार्ग 17 पर स्थित है जहाँ कोच्चि, मुंबई और मैंगलोर से बस एवं टैक्सी आदि माध्यमों से आसानी से पहुँचा जा सकता है। कर्नाटक के प्रमुख तीर्थ स्थल गोकर्ण की मुरुदेश्वर से दूरी लगभग 55 किमी है। गोकर्ण भी ट्रेन और सड़क मार्ग से देश के सभी बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है।

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  • मुरुदेश्वर मंदिर की ऊंचाई कितनी है?
यहाँ का मुरुदेश्वर मन्दिर भी प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण 2008 में पूर्ण हुआ था और इस मंदिर की ऊंचाई 249 फ़ीट है।

मुरुदेश्वर मंदिर का समय 

  • मुरुदेश्वर मंदिर के खुलने का समय- सुबह 6 बजे
  • मंदिर के बंद होने का समय- रात 8:30 बजे
  • दोपहर 1 बजे से 3 बजे के बीच मंदिर बंद रहता है.
  • सुबह की पूजा- सुबह 6:30 से 7:30 बजे के बीच
  • दोपहर की महा पूजा- दोपहर 12:15 से दोपहर 1 बजे के बीच
  • रात्रि पूजा- शाम 7:15 बजे से रात 8:15 बजे के बीच.
  • मुरुदेश्वर मंदिर के बारे में क्या खास है?
'मुरुदेश्वर' भगवान शिव का ही एक नाम है। इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि इसके परिसर में भगवान शिव की एक विशाल मूर्ति स्थापित है, जिसे दुनिया की दूसरी सबसे विशाल और ऊंची शिव प्रतिमा (मूर्ति) माना जाता है। भगवान शिव की इस विशाल मूर्ति की ऊंचाई करीब 123 फीट है।
  • मुरुदेश्वर राजगोपुरम का निर्माण किसने करवाया था?
पूरा मंदिर और उसका परिसर, जिसमें 75 मीटर ऊंचा राज गोपुरा भी शामिल है, जो मुरुदेश्वर शिव मंदिर का मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करता है, 2 साल में बनाया गया था। इसके निर्माण को व्यवसायी और परोपकारी राम नागप्पा शेट्टी द्वारा वित्त पोषित किया गया था।
  • मुरुदेश्वर के आसपास के मंदिर-
मुरुदेश्वर के पास घूमने के लिए जोग फॉल्स (90 किलोमीटर), गोकर्ण (80 किलोमीटर), मरावंथे बीच (55 किलोमीटर), इडागुनजी महागणपति मंदिर (20 किलोमीटर) यात्रा करने के लिए प्रमुख आकर्षण हैं.
  • मुरुदेश्वर मंदिर कर्नाटक का निर्माण कब हुआ था?
ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने अपनी पत्नी सीता की खोज शुरू करने से पहले अपने सहयोगियों के साथ इस स्थान पर भगवान शिव से प्रार्थना की थी। निर्माण और नवीनीकरण: कहा जाता है कि मुरुदेश्वर में मूल मंदिर संरचना 16वीं शताब्दी में एक पांड्य राजा द्वारा बनाई गई थी।
  • मुरुदेश्वर मंदिर के बारे में क्या खास है?
'मुरुदेश्वर' भगवान शिव का ही एक नाम है। इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि इसके परिसर में भगवान शिव की एक विशाल मूर्ति स्थापित है, जिसे दुनिया की दूसरी सबसे विशाल और ऊंची शिव प्रतिमा (मूर्ति) माना जाता है। भगवान शिव की इस विशाल मूर्ति की ऊंचाई करीब 123 फीट है।

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