नवरात्रि के प्रथम दिन - मां शैलपुत्री की कथा और स्वरूप,Navratri Ke First day - Maa Shailputri Kee Katha Aur Svaroop

नवरात्रि के प्रथम दिन - मां शैलपुत्री की कथा और स्वरूप

हिमालय की पुत्री होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है. मां शैलपुत्री का स्वरूप बेहत शांत और सरल है. देवी के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का फूल शोभा दे रहा है. नंदी बैल पर सवार मां शैलपुत्री को वृषोरूढ़ा और उमा के नाम से भी जाना जाता है.

Navratri Ke First day - Maa Shailputri Kee Katha Aur Svaroop

मां शैलपुत्री का स्वरूप इस प्रकार है

  • मां शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल होता है.
  • मां शैलपुत्री सफ़ेद रंग के वस्त्र पहनती हैं.
  • मां शैलपुत्री की सवारी वृषभ यानी बैल है.
  • मां शैलपुत्री का यह रूप सौम्यता, करुणा, स्नेह, और धैर्य को दर्शाता है
शास्त्रों के मुताबिक, मां शैलपुत्री चंद्रमा को दर्शाती हैं. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, माता रानी के शैलपुत्री स्वरूप की उपासना से चंद्रमा के बुरे प्रभाव निष्क्रिय हो जाते हैं. इनकी पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. मां शैलपुत्री की पूजा से व्यक्ति के जीवन में स्थिरता बनी रहती है और व्यक्ति हमेशा अच्छे कर्म करता है.

मां शैलपुत्री के मंत्र 

मां शैलपुत्री की पूजा सिद्धि प्राप्ति के लिए की जाती है. प्रतिपदा के दिन 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:' मंत्र का जाप करते हुए यज्ञ में घी की आहुति दें. यह जाप कम से कम 108 बार होना चाहिए. इससे कार्यों में सिद्धि के साथ सफलता मिलती है

मां शैलपुत्री के कुछ प्रभावशाली मंत्र 
  • ऊँ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
  • वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
  • या देवी सर्वभू‍तेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
  • ओम् शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।

नवरात्रि के प्रथम दिन - मां शैलपुत्री की कथा

  • मां शैलपुत्री की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार मां शैलपुत्री का दूसरा नाम सती भी है, एक बार प्रजापति दक्ष ने अपने घर पर यज्ञ का आयोजन करने का सोचा तो उन्होंने सभी देवी-देवताओं को अपने यहां आने का निमंत्रण भेज दिया, लेकिन राजा दक्ष ने भगवान शिव को नहीं बुलाया। देवी सती को लगा था कि उन्हें भी बुलावा भेजा जाएगा। परंतु उनके यहां यज्ञ में आने का निमंत्रण नहीं आया। फिर भी देवी सती को उस यज्ञ में जाने का मन हुआ, लेकिन शिवजी ने उन्हें मना कर दिया। शिवजी ने सती को बोला कि अभी उनके पास यज्ञ में जाने के लिए कोई निमंत्रण नहीं आया है इसलिए वहां जाना ठीक नहीं होगा। फिर भी देवी सती ने उनकी बात नहीं मानीं। बार-बार यज्ञ में जाने का आग्रह करने के कारण भगवान शिव ने उन्हें जाने की अनुमति दे दी।
फिर देवी सती जब अपने पिता राजा दक्ष के यहां पहुंची तो जाकर उन्होंने देखा कि अपने पिता के यहां कोई भी उनसे सम्मान और प्रेम के साथ बात नहीं कर रहा था। वहीं देवी सती की अन्य बहनें भी उनका तथा शिवजी का मजाक उड़ा रहीं थीं। स्वयं देवी सती जे पिता प्रजापति दक्ष ने भी सती का अपमान करने का मौका नहीं छोड़ा। इस प्रकार वहां मौजूद सभी लोग सती के साथ रूखा व्यवहार कर रहे थे लेकिन जब सती जी की माता ने अपनी बेटी को देखा तो प्यार से गले लगा लिया। परंतु अन्य सभी का ऐसा व्यवहार देखकर सती बहुत ही दुखी हो गईं। तब अपना और अपने पति शिवजी का अपमान उनसे सहन न हुआ। इसके बाद इस अपमान से अत्यंत दुखी होकर सती ने उसी समय वहां यज्ञ की अग्नि में कूदकर स्वयं के प्राण त्याग दिए। जैसे ही भगवान शिव को इस बात का पता चला कि क्रोधित हो गए और पूरे यज्ञ को ध्वस्त कर दिया. उसके बाद सती ने हिमालय के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया. जहां उनका नाम शैलपुत्री पड़ा. कहते हैं मां शैलपुत्री काशी नगर वाराणसी में वास करती हैं

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