गणेश चतुर्थी व्रत कथा,Ganesh Chaturthi Vrat Katha

गणेश चतुर्थी व्रत कथा,Ganesh Chaturthi Vrat Katha

गणेश चतुर्थी 

गणेश चतुर्थी, हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है. यह त्योहार भाद्रपद (अगस्त-सितंबर) महीने के चौथे दिन से शुरू होता है. इस दिन गणेश जी की मूर्तियों का अभिषेक किया जाता है और उन्हें भोग लगाया जाता है. गणेश चतुर्थी के दौरान, सभी लोग अपने घरों में गणेश जी की मूर्तियां रखते हैं और 10 दिनों तक उनकी पूजा करते हैं गणेश चतुर्थी पर, गणेश जी को लड्डू भोग लगाया जाता है. गणेश जी की मूर्ति को चौकी पर रखने से पहले उसे अच्छी तरह से साफ़ कर लेना चाहिए और गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करना चाहिए. चौकी को शुद्ध करने के बाद लाल कपड़ा बिछाकर उसके ऊपर अक्षत रखना चाहिए. इसके बाद ही शुद्ध हाथों से गणेश जी को उस चौकी पर स्थापित करना चाहिए. भगवान श्री गणेश को गंगाजल से स्नान कराना चाहिए

Ganesh Chaturthi Vrat Katha

गणेश चतुर्थी व्रत कथा के मुताबिक, तीन महीने तक व्रत करने से गणेश जी प्रसन्न होते हैं. इस व्रत को करने से हजार अश्वमेध और सौ यज्ञों का फल मिलता है गणेश चतुर्थी व्रत की कथा के मुताबिक, इस व्रत को करने से सभी मनोरथ पूरे होते हैं. साथ ही, घर-परिवार में आ रही विपदा दूर होती है और कई दिनों से रुके मांगलिक कार्य पूरे होते हैं. धार्मिक मान्यता है कि भगवान गणेश की पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. साथ ही, जीवन में आने वाले कष्ट और परेशानियां दूर हो जाती हैं !

गणेश चतुर्थी व्रत कथा

एक समय भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के विवाह की तैयारियां चल रही थीं, इसमें सभी देवताओं को निमंत्रित किया गया लेकिन विघ्नहर्ता गणेश जी को निमंत्रण नहीं भेजा गया। सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह में आए लेकिन गणेश जी उपस्थित नहीं थे, ऐसा देखकर देवताओं ने भगवान विष्णु से इसका कारण पूछा। उन्होंने कहा कि भगवान शिव और पार्वती को निमंत्रण भेजा है, गणेश अपने माता-पिता के साथ आना चाहें तो आ सकते हैं। हालांकि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए। यदि वे नहीं आएं तो अच्छा है। दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता। इस दौरान किसी देवता ने कहा कि गणेश जी अगर आएं तो उनको घर के देखरेख की जिम्मेदारी दी जा सकती है। उनसे कहा जा सकता है कि आप चूहे पर धीरे-धीरे जाएंगे तो बाराज आगे चली जाएगी और आप पीछे रह जाएंगे, ऐसे में आप घर की देखरेख करें। योजना के अनुसार, विष्णु जी के निमंत्रण पर गणेश जी वहां उपस्थित हो गए। उनको घर के देखरेख की जिम्मेदारी दे दी गई। बारात घर से निकल गई और गणेश जी दरवाजे पर ही बैठे थे, यह देखकर नारद जी ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि विष्णु भगवान ने उनका अपमान किया है। तब नारद जी ने गणेश जी को एक सुझाव दिया। गणपति ने सुझाव के तहत अपने चूहों की सेना बारात के आगे भेज दी, जिसने पूरे रास्ते खोद दिए। इसके फलस्वरूप देवताओं के रथों के पहिए रास्तों में ही फंस गए। बारात आगे नहीं जा पा रही थी। किसी के समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए, तब नारद जी ने गणेश जी को ​बुलाने का उपाय दिया ताकि देवताओं के विघ्न दूर हो जाएं। भगवान शिव के आदेश पर नंदी गजानन को लेकर आए। देवताओं ने गणेश जी का पूजन किया, तब जाकर रथ के पहिए गड्ढों से निकल तो गए लेकिन कई पहिए टूट गए थे। उस समय पास में ही एक लोहार काम कर रहा था, उसे बुलाया गया। उसने अपना काम शुरू करने से पहले गणेश जी का मन ही मन स्मरण किया और देखते ही देखते सभी रथों के पहियों को ठीक कर दिया। उसने देवताओं से कहा कि लगता है आप सभी ने शुभ कार्य प्रारंभ करने से पहले विघ्नहर्ता गणेश जी की पूजा नहीं की है, तभी ऐसा संकट आया है। आप सब गणेश जी का ध्यान कर आगे जाएं, आपके सारे काम हो जाएंगे। देवताओं ने गणेश जी की जय जयकार की और बारात अपने गंतव्य तक सकुशल पहुंच गई। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का विवाह संपन्न हो गया।

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