श्री गणेश के 32 मंगलकारी स्वरूपों से जुड़ी खास विशेषताएं

श्री गणेश के 32 मंगलकारी स्वरूपों से जुड़ी खास विशेषताएं

"मुद्गल पुराण"

श्री गणेश बुद्धि और विद्या के देवता है। जीवन को विघ्र और बाधा रहित बनाने के लिए श्री गणेश उपासना बहुत शुभ मानी जाती है। इसलिए हिन्दू धर्म के हर मंगल कार्य में सबसे पहले भगवान गणेश की उपासना की परंपरा है। माना जाता है कि श्री गणेश स्मरण से मिली बुद्धि और विवेक से ही व्यक्ति अपार सुख, धन और लंबी आयु प्राप्त करता है। धर्मशास्त्रों में भगवान श्री गणेश के मंगलमय चरित्र, गुण, स्वरूपों और अवतारों का वर्णन है। भगवान को आदिदेव मानकर परब्रह्म का ही एक रूप माना जाता है। यही कारण है कि अलग-अलग युगों में श्री गणेश के अलग-अलग अवतारों ने जगत के शोक और संकट का नाश किया। इसी कड़ी में मुद्गल पुराण के मुताबिक भगवान श्री गणेश के ये 32 मंगलकारी स्वरूप नाम के मुताबिक भक्त को शुभ फल देते हैं।

श्री गणेश के 32 मंगलकारी स्वरूपों विशेषताएं और लाभ


1 श्री बाल गणपति - 
यह भगवान गणेश का बाल रूप है और यह पृथ्वी पर मौजूद संसाधनों और भूमि की उर्वरता का प्रतीक है। उनके इस स्वरूप में चारों हाथों में एक-एक फल है जो हैं आम, केला, गन्ना और कटहल

2 तरुण गणपति - 
यह गणेशजी का किशोर रूप है जिसमें उनके शरीर का रंग लाल है। इस स्वरूप में उनकी 8 भुजाएं हैं जिसमें फल, मोदक और अस्त्र-शस्त्र हैं। उनका यह स्वरूप आंतरिक प्रसन्नता और युवावस्था की ऊर्जा का प्रतीक है।

3 भक्त गणपति - 
इस स्वरूप में गणेश जी का रंग श्वेत है और उनके चार हाथ हैं जिसमें फल और फूल हैं। ये स्वरूप किसानों के लिए प्रेरणादायी हैं और वे इस स्वरूप की पूजा करते हैं।

4 वीर गणपति - 
यह गणेशजी का वीर योद्धा वाला स्वरूप है जिसमें उनके 16 हाथ हैं। उनकी हाथों में गदा, चक्र, तलवार, अंकुश सहित कई अस्त्र हैं।
There are special special features associated with the 32 Mangalakaaree svaroopon of Shree Ganesh

5 शक्ति गणपति -           
इस रूप में उनके चार हाथ हैं जिसमें उनका एक हाथ भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए, उन्हें शसक्त बनाने के लिए अभय मुद्रा में है। बाकी हाथों में अस्त्र-शस्त्र और माला है।

 6 द्विज गणपति – 
गणेश जी का यह स्वरूप ज्ञान और संपत्ति का प्रतीक है। उनके इस स्वरूप में उनके चार मुख एवं चार हाथ हैं जिसमें कमंडल, रुद्राक्ष, छड़ी और ताड़पत्र में शास्त्र लिए हुए हैं।

7 सिद्धि गणपति - 
इस रूप में गणेश जी पीतवर्ण है, उनके चार हाथ है। वे बुद्धि और सफलता के प्रतिक है।इस रूप में वे आराम की मुद्रा मे बैठे हैं । उनकी सूंड मे मोदक लिए है।बम्बई के प्रसिद्ध सिद्धि विनायक मंदिर मे गणेश जी का यही स्वरूप विराजित है।
8 उच्छिष्ट गणपति -
इस रूप में गणेश जी नीलवर्ण है। वे धान्य के देवता है।यह रूप मोक्ष भी देता है।और ऐश्वर्य भी।एक हाथ मे वाद्य यंत्र लिए विराजित है।इनकी शक्ति साथ में पैरो पर विराजित है।गणेशजी के इस रूप का एक मंदिर तामिलनाडू मे है।

9 विघ्न गणपति - 
इस स्वरूप में गणेशजी का रंग स्वर्ण और उनके आठ हाथ हैं। वे इस स्वरूप में भगवान विष्णु के समान दिखाई देते हैं और उनके हाथों में शंख और चक्र हैं। उनका यह स्वरूप विघ्नों को दूर करता है यानि वे विघ्नहर्ता हैं।

10 क्षिप्र गणपति - 
इस रूप में गणेश जी रक्तवर्ण के हैं और उनके चार हाथ हैं। उनका यह स्वरूप भक्तों से बहुत आसानी से प्रसन्न होता है यानि यह स्वरूप कामनाओं की पूर्ति का प्रतीक है। उनके चार हाथों में से एक में कल्पवृक्ष है जो इच्छाएं पूरी करता है और सूंड में कलश है जो समृधि देता है।

11 हेरम्ब गणपति – 
इसमें गणेश जी के पांच सिर, 10 हाथ हैं एवं वो शेर पर सवार हैं। उनकी हाथों में फरसा, फंदा, मनका, माला, फल, छड़ी और मोदक है। उनका यह स्वरूप निर्बलों की रक्षा एवं आत्मविश्वास प्रदान करने का प्रतीक है।

12 लक्ष्मी गणपति - 
गणेशजी के इस स्वरूप में उनके एक हाथ में तोता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, धन-हानि को दूर करने के लिए भगवान गणेश के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना भी करनी चाहिए. गणपति और माता लक्ष्मी की कृपा से व्यक्ति की सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं और जीवन आनंद से भर जाता है. 
पौराणिक कथा के मुताबिक, गणपति को माता लक्ष्मी का दत्तक पुत्र कहा जाता है. दीपावली पर माता लक्ष्मी की श्रीगणेश के साथ पूजन माता और पुत्र के रूप में होता है. कहा जाता है कि लक्ष्मी के साथ अगर गणपति का भी पूजन किया जाए तो माता अत्यंत प्रसन्न होती हैं और ऐसे भक्तों पर सदैव अपनी कृपा दृष्टि बनाकर रखती हैं. 
माना जाता है कि लक्ष्मी जी के साथ गणेश पूजन का धार्मिक परिपेक्ष्य देखा जाए तो इसका अर्थ है धन और बुद्धि का सदैव साथ रहना. 

13 महागणपति – 
इसमें भगवान शिव की तरह उनके तीन नेत्र, दस हाथ हैं। उनका यह स्वरूप दसों दिशाओं का प्रतिनिधित्व करता है और भ्रम से बचाता है।
गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा गया है. यानी वह अपने भक्तों के जीवन में आने वाली सभी विपत्तियों को दूर करते हैं. भगवान गणेश की पूजा करने से भय पर भी विजय प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है. 
गणेश जी की पूजा करने से व्यक्ति का जीवन शांतिपूर्ण होता है. व्यक्ति को जिम्मेदारियों का अहसास होता है और वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए काम करता है. 
गणेश जी स्वयं रिद्धि-सिद्धि के दाता और शुभ-लाभ के प्रदाता हैं. अगर वह प्रसन्न हो जाएं तो अपने भक्तों की बाधा, संकट, रोग-दोष, और दरिद्रता को दूर करते हैं. 
गणेश जी के मंत्रों में से एक है, 'ॐ गं गणपतये नमः'. यह मंत्र किसी भी पूजा-पाठ के आरंभ में भगवान गणपति का आह्वान करने के लिए प्रमुख माना जाता है

14 विजय गणपति - 
इसमें उनका आकार सामान्य से बड़ा दिखाया गया है। ऐसा माना जाता है कि भगवान के इस रूप की पूजा से तुरंत राहत मिलती है।
धार्मिक मान्यता के मुताबिक, द्वारका में गणेश जी का एक मंदिर है. मान्यता है कि यहां श्रीकृष्ण ने भी गणेश जी की पूजा की थी. इस रूप में गणेश जी बड़े आकार के मूषक पर सवार हैं. मान्यता है कि, इस रूप में भगवान की पूजा करने से तुरंत कष्टों से राहत मिलती है. 
विजय गणपति में धन, यश, मान, पद, प्रतिष्ठा, उन्नति, स्वास्थ्य, सुख, वाहन, संतान, पत्नी-सुख, दीर्घायु, भाग्योदय, पति-सुख, आर्थिक उन्नति आदि सभी कुछ समाहित हैं. 
गणेश जी को विघ्नहर्ता माना जाता है. जब आप पूरे विश्वास के साथ भगवान गणेश की पूजा करते हैं, तो वह आपका मार्गदर्शन करते हैं और आपको सभी चीज़ों से लड़ने का साहस प्रदान करते हैं. आप अपने डर पर विजय पाकर अपने जीवन की सभी बाधाओं को दूर कर सकती हैं. 
गणेश जी की पूजा करने से भाग्योदय होता है और आरोग्य जीवन की प्राप्ति होती है. हिंदू धर्म शास्त्रों में इस बात का उल्लेख किया गया है कि भगवान गणेश की पूजा करने से बुद्धि में बढ़ोतरी होती है. 

15 नृत्त गणपति - 
इस रूप में गणेशजी कल्पवृक्ष के नीचे नृत्य करते दिखाया गया है। उनका यह स्वरूप कलाओं का प्रतीक है।
नृत्य गणपति, जैसा कि नाम से पता चलता है, एक नर्तक या एक खुश नर्तक है. यह भगवान के आराम और आनंददायक रूप का प्रतिनिधित्व करता है. 
वास्तु के मुताबिक, गणेश जी की नृत्य करती हुई मूर्ति को घर में नहीं लाना चाहिए और न ही इसे किसी को उपहार में देना चाहिए. वास्तु के मुताबिक, इस तरह की मूर्ति को घर में लगाने से झगड़े शुरू हो सकते हैं. 
गणेश जी की विधिवत पूजा करने से दरिद्रता दूर होती है. गणपति के कुछ मंत्रों का जाप करने से भाग्य का साथ मिलता है. 

16 उर्ध्व गणपति - 
इस रूप में उनके आठ हाथ हैं और उनके एक हाथ में उनका टूटा हुआ दांत है। बाकी हाथों में कमल पुष्प सहित प्राकृतिक सम्पदाएं हैं।

17 एकाक्षर गणपति - 
इस स्वरूप में गणेशजी के तीन नेत्र हैं और उनके मस्तक पर भगवान शिव के समान चंद्रमा विराजित है। माना जाता है कि इस रूप की पूजा से मन और मस्तिष्क पर नियंत्रण में मदद मिलती है।

18 वर गणपति - 
गणपति का यह रूप वरदान में सफलता और समृद्धि देने के लिए जाना जाता है। वे अपनी सूंड में वे रत्न कुंभ थामे हुए हैं। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, भगवान गणेश की पूजा करने से सभी विघ्न और बाधाएं दूर हो जाती हैं. गणेश जी की पूजा करने से ये लाभ मिलते हैं:
  • जीवन की परेशानियों और समस्याओं का समाधान होता है.
  • भय पर विजय प्राप्त होती है.
  • भाग्योदय होता है और आरोग्य जीवन की प्राप्ति होती है.
  • बुद्धि में बढ़ोतरी होती है.
  • ज्ञान, यश आदि में वृद्धि होती है. 
19 त्र्यक्षर गणपति - 
यह भगवान गणेश का ओम रूप है जिसमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश समाहित हैं।

20 क्षिप्रप्रसाद गणपति - 
इस स्वरूप में गणेश जी इच्छाओं को जितनी शीघ्रता से पूरा करते हैं और उतनी ही तेजी से गलतियों की सजा भी देते हैं। इनके बिना श्री विद्या अधूरी है। जो साधक श्री साधना करते हैं उन्हें सर्वप्रथम इनकी साधना कर इन्हें प्रसन्न करना चाहिए। कामदेव की भस्म से उत्पन्न दैत्य से श्री ललितादेवी के युद्ध के समय देवी एवं सेना के सम्मोहित होने पर इन्होंने ही उसका वध किया था।

21 हरिद्रा गणपति - 
इस रूप में गणेशजी हल्दी से बने हैं और उनके इस रूप के पूजन से इच्छाएं पूरी होती हैं।हरिद्रा गणपति का स्वरूप साधक को स्तम्भन शक्ति से युक्त कर देता है जिससे शत्रु पक्ष शांत हो जाते हैं और उनके द्वारा उत्पन्न किये हुए विघ्न भी समाप्त हो जाते हैं। हरिद्रा गणपति साधना की पूर्णता होते-होते शत्रु पक्ष आपके अनुकूल होकर आपके पक्ष में हो जाता है।

22 एकदंत गणपति - 
गणेशजी के इस स्वरूप में उनका पेट अन्य रूपों के मुकाबले बड़ा है। वे अपने भीतर ब्रह्मांड समाए हुए हैं।
भगवान गणेश को एकदंत, गजानन, गणपति, लंबोदर, विघ्नहर्ता, और विनायक जैसे नामों से जाना जाता है. गणेश जी को विघ्नहर्ता माना जाता है. मान्यता है कि गणेश जी की पूजा करने से जीवन की सभी परेशानियां और विपत्तियां दूर हो जाती हैं. 
गणेश जी एकदंत हैं, जिसका मतलब है एकाग्रता. एक हाथ में अंकुश और दूसरे हाथ में पाश लिए हुए हैं. अंकुश का मतलब है जागृत होना और पाश का मतलब है नियंत्रण. 
भगवान गणेश को समर्पित एक शक्तिशाली गायत्री मंत्र है - "ओम् एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्". इस मंत्र का जाप मानसिक क्षमताओं, ज्ञान, और आत्मज्ञान को बढ़ाने के लिए किया जाता है

23 सृष्टि गणपति - 
गणेशजी का यह रूप प्रकृति की तमाम शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है। उनका यह रूप ब्रह्मा के समान ही है।

24 उद्दंड गणपति – 
गणेश जी का यह स्वरूप उग्र है और इस रूप में गणेश जी न्याय की स्थापना करते हैं। इसमें उनके 12 हाथ हैं। गणेशजी का यह रूप सांसारिक मोह छोड़ने और बंधनों से मुक्त होने के लिए प्रेरित करता है।

25 ऋणमोचन गणपति - 
ऐसे समय में ऋणमोचन हेतु 'ऋणहर्ता गणपति स्तोत्र' का निरंतर पाठ करने से कर्ज शीघ्र ही चुकता होता है, साथ ही धन पाने के अन्य कई रास्ते भी निकल आते हैं। आइए पढ़ें... ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्। ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम्।। गणेशजी का यह रूप अपराधबोध और कर्ज से मुक्ति देता है और मोक्ष भी देता है।

26 ढुण्ढि गणपति - 
ढुण्ढि गणपति - रक्तवर्ण गणेशजी के इस रूप में उनके हाथ में रुद्राक्ष की माला है। रुद्राक्ष उनके पिता शिव का प्रतीक माना जाता है। यानी इस रूप में वे पिता के संस्कारों को लिए विराजित हैं।

27 द्विमुख गणपति - 
गणेशजी के इस स्वरूप में उनके दो मुख हैं और उनके शरीर का रंग नीले और हरे का मिश्रण है। उनके चार हाथ हैं।

28 त्रिमुख गणपति - 
इस रूप में गणेशजी के तीन मुख और छह हाथ हैं। उनका एक हाथ रक्षा की मुद्रा और दूसरा वरदान की मुद्रा में है। इस रूप में उनके एक हाथ में अमृत-कुंभ है। उनका यह स्वरूप कर्म करने के लिए प्रेरित करता है।

29 सिंह गणपति - 
इस रूप में गणेशजी शेर पर विराजमान हैं और उनका मुख भी शेरों के समान है लेकिन साथ ही उनकी सूंड भी है। उनके आठ हाथ हैं।

30 योग गणपति - 
गणेश मुद्रा लाभ शक्ति बढ़ जाती है ऊपरी शरीर में. आप अपने ऊपरी शरीर, बाहों, गर्दन और कंधों में खिंचाव महसूस करते हैं जो आपकी बाहों और पीठ को ताकत देता है। अभ्यास करते समय गणेश मुद्रा, आप अपने हाथों को विपरीत दिशा में खींचेंगे और गर्दन की अच्छी मुद्रा बनाए रखेंगे।

31 दुर्गा गणपति - 
गणपति और माता लक्ष्मी की कृपा से व्यक्ति की सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं और जीवन आनंद से भर जाता है। मां लक्ष्मी को धन की देवी कहा जाता है। मां लक्ष्मी और गणपति महाराज को प्रसन्न करने के लिए रोजाना श्री गणेश स्तोत्र और श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम पाठ करें।

32 संकष्टहरण गणपति - 
ऐसा माना जाता है कि जो लोग हर महीने संकष्टी चतुर्थी के दिन पूरी श्रद्धा के साथ व्रत रखते हैं उन्हें शुभता, सुख, समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है और भगवान गणेश जीवन से सभी बाधाओं को दूर करते हैं।

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