परमात्मा स्वरूप गणेश जी का संधि विक्रम 32 शुभ स्वरूप

परमात्मा स्वरूप गणेश जी का संधि विक्रम 32 शुभ स्वरूप

  1. परमात्मा स्वरूप गणेश जी
  2. गणेश शब्द में गुण संधि
  3. श्री गणेश जी परमात्मा स्वरूप हैं
  4. वेदमन्त्रों में ॐ शब्द महत्वपूर्ण है। ओ३म् का अर्थ है
  5. 32 मंगलकारी स्वरूप
इस ब्लॉग में ऊपर दिये गए 5 शीर्षक के बारे में है

परमात्मा स्वरूप गणेश जी 

शास्त्रों में गणेश जी को उसी एक परब्रह्म परमात्मा का स्वरूप बताया गया है जो स्वयं शिव, स्वयं नारायण, और स्वयं शक्ति पार्वती हैं. गणेश जी को प्रकृति की शक्तियों का विराट रूप माना जाता है. वे ब्रह्मा, विष्णु, महेश की शक्ति समाहित हैं और सरस्वती, लक्ष्मी, और दुर्गा का रूप भी हैं. गणेश जी को वेदों में ब्रह्मा, विष्णु, और शिव के समान आदि देव के रूप में वर्णित किया गया है. इनकी पूजा त्रिदेव भी करते हैं. भगवान श्री गणेश सभी देवों में प्रथम पूज्य हैं. शिव के गणों के अध्यक्ष होने के कारण इन्हें गणेश और गणाध्यक्ष भी कहा जाता है
गणेश जी को ब्रह्म स्वरूप माना जाता है. पर ब्रह्म रूपम गणेशम भजेम में, गणेश को उस पर ब्रह्म की अभिव्यक्ति के रूप में दर्शाया गया है. इसलिए जब आप गणेश को नमन करते हैं, तो सोचें कि आप उस परब्रह्म, सर्वोच्च की अभिव्यक्ति को नमन कर रहे हैं.  गणेश पुराण में विघ्नहर्ता गणेश जी के 32 मंगलकारी रूप बताए गए हैं. इनमें वे बाल रूप में हैं, तो किशोरों वाली ऊर्जा भी उनमें मौजूद है
Sandhi Vikram 32 auspicious form of God Ganesha.

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गणेश शब्द में गुण संधि

गणेश शब्द में गुण संधि है. इसका संधि विच्छेद 'गण+ईश' है. 
गणेश के अलावा, कुछ और शब्दों के संधि विच्छेद:

गण शब्द का अर्थ है समूह
  • सुरेंद्र - सुर+इन्द्र
  • विद्यार्थी - विद्या + अर्थी
  • पराधीन - पर + अधीन
  • महर्षि - महा + ऋषि
  • सुरेश - सुर+ईश
  • विद्यालय - विद्या + आलय
  • सूर्योदय - सूर्य+उदय 
ईश का अर्थ है स्वामी ! 
  • गिरि + ईश = गिरीश
  • नदी + ईश = नदीश
  • मही + ईश = महीश
  • धरा + ईश = धरेश
  • महा + ईश = महेश
  • वाक् + ईश = वागीश
  • हरि + ईश = हरीश
  • गिरि + ईश = गिरीश
अर्थात् गण का स्वामी । 'गण' है देवगण, देवताओं के सेवक । इसके अतिरिक्त गण के दो अक्षर 'ग' और 'ण' है जिनका विश्लेषण इस प्रकार किया जा सकता है- 'ग' ज्ञानार्थ वाचक और 'ण' निर्वाण वाचक है अर्थात् गणेश ज्ञान और निर्वाण के स्वामी हैं। यह परब्रह्म परमात्मा का पर्याय होता है ।

श्री गणेश जी परमात्मा स्वरूप हैं

गणेश पुराण के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि गणेश परमात्मा स्वरूप हैं । उन्हीं से सम्पूर्ण जगत् की उत्पत्ति हुई है । आदि मूल परमेश्वर का ही एक रूप श्री गणेश हैं। श्री गणेश के जन्म कथानकों के आधार पर भी उन्हें देवों का देव गणपति कहा जाता है ।

वेदमन्त्रों में ॐ शब्द महत्वपूर्ण है। ओ३म् का अर्थ है 

सच्चिदानन्द का विकसित रूप। सभी मन्त्रों में यह आदि अक्षर है । मूल शब्द ब्रह्म रूप है। गणेश की मूर्ति की रचना भी ॐ से हुई है।
  • ॐ में प्रथम भाग उदर, 
  • मध्य भाग शुण्डाकार दण्ड, 
अर्धचन्द्र दन्त और बिन्दु मोदक का प्रतीक है। 
गणेश जी की मूर्ति में जब ध्यान लगाते हैं तो मूर्ति का आनन हमें ॐ के आकार का लगेगा । वेदमन्त्रों में गणेश जी को गणपति कहा गया है। गण हमारी रजोगुणी, तमोगुणी और सतोगुणी वृत्तियों का समूह भी है । इन सबके स्वामी श्री गणेश जी ही हैं।
इसी प्रकार गणेश जी गुणीश हैं। वे सब गुणों के ईश हैं। ईश्वर अपने गुण, ज्ञान और आनन्द के स्वरूप हैं। इन्हीं गुणों के ईश गणेश हैं। अतः साक्षात् ईश्वर हैं । समस्त दृश्य-अदृश्य विश्व का वाचक 'ग' तथा 'ण' अक्षर द्वारा जितना मन, वाणी और तत्व रहित जगत् है, सबका ज्ञान मन और वाणी द्वारा होता है। उसके स्वामी होने से गणेश जी सब देवों के देव हैं। देवों में अग्रगण्य हैं । गणेश जी ब्रह्म स्वरूप हैं। इसे निम्न उदाहरण से स्पष्ट किया जा सकता है-
श्री गणेश जी की आकृति की जो कल्पना की गई है या उनका जो रूप पुराणों में दिया गया है उसके अनुसार उनका मुख गज के समान है। अतः उन्हें गजानन, गजपति कहते हैं। कंठ के नीचे का भाग मनुष्य जैसा है। इस प्रकार उनके शरीर में हाथी और मानव का सम्मिश्रण है । गज साक्षात् ब्रह्मा को कहते हैं योग द्वारा जब मुनि अन्तिम योगांग-समाधि को सिद्ध करते हैं तो उस स्थिति में वे जिसके पास पहुँचते हैं उसे 'ग' कहा जाता है। जिससे यह जगत् उत्पन्न होता है उसे 'ज' कहते हैं। दोनों अक्षरों से 'गज' बनता है। गज का अर्थ विश्व कारण होने से ब्रह्मा होता है । अतः गज ब्रह्म है तथा गणेश जी के कंठ के ऊपर का भाग ब्रह्म स्वरूप ही है ।

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32 मंगलकारी स्वरूप

गणेश पुराण में विघ्नहर्ता गणेश जी के 32 मंगलकारी रूप बताए गए हैं. इनमें वे बाल रूप में हैं, तो किशोरों वाली ऊर्जा भी उनमें मौजूद है
  1. श्री बाल गणपति- छ: भुजाओं और लाल रंग का शरीर।
  2. श्री तरुण गणपति- आठ भुजाओं वाला रक्तवर्ण शरीर।
  3. श्री भक्त गणपति- चार भुजाओं वाला सफेद रंग का शरीर।
  4. श्री वीर गणपति- दस भुजाओं वाला रक्तवर्ण शरीर।
  5. श्री शक्ति गणपति- चार भुजाओं वाला सिंदूरी रंग का शरीर
  6. श्री द्विज गणपति- चार भुजाधारी शुभ्रवर्ण शरीर।
  7. श्री सिद्धि गणपति- छ: भुजाधारी पिंगल वर्ण शरीर।
  8. श्री विघ्न गणपति- दस भुजाधारी सुनहरी शरीर।
  9. श्री वर गणपति- छ: भुजाधारी रक्तवर्ण शरीर।
  10. श्री ढुण्डि गणपति- चार भुजाधारी रक्तवर्णी शरीर।
  11. श्री उच्चिष्ठ गणपति- चार भुजाधारी नीले रंग का शरीर।
  12. श्री हेरंब गणपति- आठ भुजाधारी गौर वर्ण शरीर।
  13. श्री क्षिप्र गणपति- छ: भुजाधारी रक्तवर्ण शरीर।
  14. श्री लक्ष्मी गणपति- आठ भुजाधारी गौर वर्ण शरीर।
  15. श्री विजय गणपति- चार भुजाधारी रक्त वर्ण शरीर।
  16. श्री महागणपति- आठ भुजाधारी रक्त वर्ण शरीर।
  17. श्री नृत्य गणपति- छ: भुजाधारी रक्त वर्ण शरीर।
  18. श्री एकाक्षर गणपति- चार भुजाधारी रक्तवर्ण शरीर
  19. श्री हरिद्रा गणपति- छ: भुजाधारी पीले रंग का शरीर।
  20. श्री त्र्यैक्ष गणपति- सुनहरे शरीर, तीन नेत्रों वाले चार भुजाधारी।
  21. श्री ऋण मोचन गणपति- चार भुजाधारी लालवस्त्र धारी।
  22. श्री एकदंत गणपति- छ: भुजाधारी श्याम वर्ण शरीरधारी।
  23. श्री सृष्टि गणपति- चार भुजाधारी, मूषक पर सवार रक्तवर्णी शरीरधारी।
  24. श्री द्विमुख गणपति- पीले वर्ण के चार भुजाधारी और दो मुख वाले।
  25. श्री दुर्गा गणपति- आठ भुजाधारी रक्तवर्णी और लाल वस्त्र पहने हुए।
  26. श्री क्षिप्र प्रसाद गणपति- छ: भुजाधारी, रक्तवर्णी, त्रिनेत्र धारी।
  27. श्री त्रिमुख गणपति- तीन मुख वाले, छ: भुजाधारी, रक्तवर्ण शरीरधारी।
  28. श्री योग गणपति- योगमुद्रा में विराजित, नीले वस्त्र पहने, चार भुजाधारी।
  29. श्री सिंह गणपति- श्वेत वर्णी आठ भुजाधारी, सिंह के मुख और हाथी की सूंड वाले। 
  30. श्री संकट हरण गणपति- चार भुजाधारी, रक्तवर्णी शरीर, हीरा जड़ित मुकुट पहने।
  31. श्री उद्ध गणपति- छ: भुजाधारी कनक अर्थात सोने के रंग का शरीर।
  32. श्री उद्दंड गणपति- बारह भुजाधारी रक्तवर्णी शरीर वाले, हाथ में कुमुदनी और अमृत का पात्र होता है।
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