श्री गणेश पुराण | श्री गणेश जी की कथा का प्रारम्भ,Shri Ganesh-Puraan Pratham Khand Ka Pahala Adhyaay ! Shree Ganesh Jee Kee Katha Ka Praarambh
श्रीगणेश-पुराण प्रथम खण्ड का पहला अध्याय !
श्रीगणेशजी की कथा का प्रारम्भ
- नैमिषे सूतमासीनमभिवाद्य महामतिम् ।
- कथामृतरसास्वादकुशलः शौनकोऽब्रवीत् ॥
प्राचीन काल की बात है-नैमिषारण्य क्षेत्र में ऋषि-महर्षि और साधु-सन्तों का समाज जुड़ा था। उसमें श्रीसूतजी भी विद्यमान थे। शौनक जी ने उनकी सेवा में उपस्थित होकर निवेदन किया कि 'हे अज्ञान रूप घोर तिमिर को नष्ट करने में करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाशमान श्रीसूतजी ! हमारे कानों के लिए अमृत के समान जीवन प्रदान करने वाले कंथा तत्त्व का वर्णन कीजिए। हे सूतजी! हमारे हृदयों में ज्ञान के प्रकाश की वृद्धि तथा भक्ति, वैराग्य और विवेक की उत्पत्ति जिस कथा से हो सकती हो, वह हमारे प्रति कहने की कृपा कीजिए।'
शौनक जी की जिज्ञासा से सूतजी बड़े प्रसन्न हुए। पुरातन इतिहासों के स्मरण से उनका शरीर पुलकायमान हो रहा था। वे कुछ देर उसी स्थिति में विराजमान रहकर कुछ विचार करते रहे और अन्त में बोले-शौनक जी ! इस विषय में आपके चित्त में बड़ी जिज्ञासा है। आप धन्य हैं जो सदैव ज्ञान की प्राप्ति में तत्पर रहते हुए विभिन्न पुराण-कथाओं की जिज्ञासा रखते हैं। आज मैं आपको ज्ञान के परम स्तोत्र रूप श्रीगणेश जी का जन्म-कर्म रूप चरित्र सुनाऊँगा। गणेशजी से ही सभी ज्ञानों, सभी विद्याओं का उद्भव हुआ है। अब आप सावधान चित्त से विराजमान हों और श्रीगणेश जी के ध्यान और नमस्कारपूर्वक उनका चरित्र श्रवण करें।
- नमस्तस्मै गणेशाय ब्रह्मविद्याप्रदायिने ।
- येनागस्त्यसमः साक्षात् विघ्नसागरशोषणे ॥
कैसे हैं वे श्रीगणेश जो सभी प्रकार की ब्रह्मविद्याओं को प्रदान करने वाले अर्थात् ब्रह्म के सगुण और निर्गुण स्वरूप पर प्रकाश डालने और जीव-ब्रह्म का अभेद प्रतिपादन करने वाली विद्याओं के दाता हैं। वे विघ्नों के समुद्रों को महर्षि अगस्त्य के समान शोषण करने में समर्थ हैं, इसीलिए उनका नाम 'विघ्न-सागर-शोषक' के नाम से प्रसिद्ध है, मैं उन भगवान श्रीगणेश जी को नमस्कार करता हूँ।
श्री गणेश पुराण प्रथम खण्ड के अध्याय
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