श्रीराधाष्टकम् | Sriradhaashtakam | श्रुतियों में श्रीराधा के अट्ठाईस नाम | Shrutiyon Mein Shreeraadha Ke Atthaees Naam
श्रीराधाष्टकम् | श्रुतियों में श्रीराधा के अट्ठाईस नाम |
राधा अथवा राधिका हिन्दू धर्म की प्रमुख देवी हैं। वह कृष्ण की प्रेमिका और संगिनी के रूप में चित्रित की जाती हैं। इस प्रकार उन्हें राधा कृष्ण के रूप में पूजा जाता हैं। उनके ऊपर कई काव्य रचना की गई है और रास लीला उन्हीं की शक्ति और रूप का वर्णन करती है ।
Sriradhaashtakam | Shrutiyon Mein Shreeraadha Ke Atthaees Naam |
श्रीराधाष्टकम् | Sriradhaashtakam
ॐ दिशिदिशिरचयन्तीं सञ्चयन्नेत्रलक्ष्मीं,
विलसितखुरलीभिः खञ्जरीटस्य खेलाम् ।
हृदयमधुपमल्लीं वल्लवाधीशसूनो-,
रखिलगुणगभीरां राधिकामर्चयामि ॥ १॥
पितुरिह वृषभानो रत्नवायप्रशस्तिं,
जगति किल सयस्ते सुष्ठु विस्तारयन्तीम् ।
व्रजनृपतिकुमारं खेलयन्तीं सखीभिः,
सुरभिनि निजकुण्डे राधिकामर्चयामि ॥ २॥
शरदुपचितराकाकौमुदीनाथकीर्त्ति-,
प्रकरदमनदीक्षादक्षिणस्मेरवक्त्राम् ।
नटयदभिदपाङ्गोत्तुङ्गितानं गरङ्गां,
वलितरुचिररङ्गां राधिकामर्चयामि ॥ ३॥
विविधकुसुमवृन्दोत्फुल्लधम्मिल्लधाटी-,
विघटितमदघृर्णात्केकिपिच्छुप्रशस्तिम् ।
मधुरिपुमुखबिम्बोद्गीर्णताम्बूलराग-,
स्फुरदमलकपोलां राधिकामर्चयामि ॥ ४॥
नलिनवदमलान्तःस्नेहसिक्तां तरङ्गा-,
मखिलविधिविशाखासख्यविख्यातशीलाम् ।
स्फुरदघभिदनर्घप्रेममाणिक्यपेटीं,
धृतमधुरविनोदां राधिकामर्चयामि ॥ ५॥
अतुलमहसिवृन्दारण्यराज्येभिषिक्तां,
निखिलसमयभर्तुः कार्तिकस्याधिदेवीम् ।
अपरिमितमुकुन्दप्रेयसीवृन्दमुख्यां,
जगदघहरकीर्तिं राधिकामर्चयामि ॥ ६॥
हरिपदनखकोटीपृष्ठपर्यन्तसीमा-,
तटमपि कलयन्तीं प्राणकोटेरभीष्टम् ।
प्रमुदितमदिराक्षीवृन्दवैदग्ध्यदीक्षा-,
गुरुमपि गुरुकीर्तिं राधिकामर्चयामि ॥ ७॥
अमलकनकपट्टीदृष्टकाश्मीरगौरीं,
मधुरिमलहरीभिः सम्परीतां किशोरीम् ।
हरिभुजपरिरब्ध्वां लघ्वरोमाञ्चपालीं,
स्फुरदरुणदुकूलां राधिकामर्चयामि ॥ ८॥
तदमलमधुरिम्णां काममाधाररूपं,
परिपठति वरिष्ठं सुष्ठु राधाष्टकं यः ।
अहिमकिरणपुत्रीकूलकल्याणचन्द्रः,
स्फुटमखिलमभीष्टं तस्य तुष्टस्तनोति ॥ ९॥
॥ इति श्रीराधाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
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श्रीराधा-मन्त्र
ॐ ह्रीं श्रीराधिकायै नम:।
सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण ने गोलोक में रासमण्डल में मूलप्रकृति श्रीराधा के उपदेश करने पर इस मन्त्र का जप किया था। फिर उन्होंने विष्णु को, विष्णु ने ब्रह्मा को, ब्रह्मा ने धर्म को और धर्म ने भगवान नारायण को इसका उपदेश किया। इस प्रकार यह परम्परा चली आयी। श्रीराधा-मन्त्र कल्पवृक्ष के समान साधक की मनोकामना पूर्ति करता है।
श्रीराधा-गायत्री
ॐ ह्रीं श्रीराधिकायै विद्महे गान्धर्विकायै विधीमहि तन्नो राधा प्रचोदयात्।
श्रुतियों में श्रीराधा के अट्ठाईस नाम
- राधा, २. रासेश्वरी,
- रम्या, ४. कृष्णमन्त्राधिदेवता,
- सर्वाद्या, ६. सर्ववन्द्या,
- वृन्दावनविहारिणी, ८. वृन्दाराध्या,
- रमा, १०. अशेषगोपीमण्डलपूजिता,
- सत्या, १२. सत्यपरा,
- सत्यभामा, १४. श्रीकृष्णवल्लभा,
- वृषभानुसुता, १६. गोपी,
- मूलप्रकृति, १८. ईश्वरी,
- गन्धर्वा, २०. राधिका,
- आरम्या, २२. रुक्मिणी,
- परमेश्वरी, २४. परात्परतरा,
- पूर्णा, २६. पूर्णचन्द्रनिभानना,
- भुक्तिमुक्तिप्रदा, २८. भवव्याधिविनाशिनी।
श्रीब्रह्माजी के अनुसार जो व्यक्ति श्रीराधा के इन अट्ठाईस नामों का पाठ करता है, वह संसार के आवागमन से मुक्त हो जाता है।
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