दस महाविद्याओं में दशम: कमला
श्रीमद्भागवत के आठवें स्कन्ध के आठवें अध्याय में कमला के उद्भव की विस्तृत कथा आयी है। देवताओं एवं असुरोंके द्वारा अमृत-प्राप्तिके उद्देश्यसे किये गये समुद्र-मन्थन के फलस्वरूप इनका प्रादुर्भाव हुआ था। इन्होंने भगवान् विष्णुको पतिरूपमें वरण किया था। महाविद्याओं में ये दसवें स्थानपर परिगणित हैं। भगवती कमला वैष्णवी शक्ति हैं तथा भगवान् विष्णु की लीला-सहचरी हैं, अतः इनकी उपासना जगदाधार-शक्तिकी उपासना है। ये एक रूप में समस्त भौतिक या प्राकृतिक सम्पत्तिकी अधिष्ठात्री देवी हैं और दूसरे रूपमें सच्चिदानन्दमयी लक्ष्मी हैं; जो भगवान् विष्णुसे अभिन्न हैं। देवता, मानव एवं दानव- सभी इनकी कृपाके बिना पङ्गु हैं। इसलिये आगम और निगम दोनोंमें इनकी उपासना समानरूप से वर्णित है। सभी देवता, राक्षस, मनुष्य, सिद्ध और गन्धर्व इनकी कृपा-प्रसाद के लिये लालायित रहते हैं।
महाविद्या कमलाके ध्यानमें बताया गया है कि इनकी कान्ति सुवर्णके समान है। हिमालय के सदृश श्वेत वर्णके चार हाथी अपने सूँड़में चार सुवर्ण कलश लेकर इन्हें स्नान करा रहे हैं। ये अपनी दो भुजाओंमें वर एवं अभय मुद्रा तथा दो भुजाओंमें दो कमल पुष्प धारण की हैं। इनके सिरपर सुन्दर किरीट तथा तनपर रेशमी परिधान सुशोभित है। ये कमलके सुन्दर आसनपर आसीन हैं।
समृद्धिकी प्रतीक महाविद्या कमलाकी उपासना स्थिर लक्ष्मीकी प्राप्ति तथा नारी-पुत्रादिके सौख्यके लिये की जाती है। कमलाको लक्ष्मी तथा षोडशी भी कहा जाता है। भार्गवोंके द्वारा पूजित होनेके कारण इनका एक नाम भार्गवी है। इनकी कृपासे पृथ्वीपतित्व तथा पुरुषोत्तमत्व दोनोंकी प्राप्ति हो जाती है। भगवान् आद्य शंकराचार्यके द्वारा विरचित कनकधारास्तोत्र और श्रीसूक्तका पाठ, कमलगट्टोंकी मालापर श्रीमन्त्रका जप, बिल्वपत्र तथा बिल्वफलके हवनसे कमलाकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। स्वतन्त्रतन्त्रमें कोलासुरके वधके लिये इनका प्रादुर्भाव होना बताया गया है। वाराहीतन्त्र के अनुसार प्राचीनकालमें ब्रह्मा, विष्णु तथा शिवद्वारा पूजित होनेके कारण कमलाका एक नाम त्रिपुरा प्रसिद्ध हुआ। कालिकापुराणमें कहा गया है कि त्रिपुर शिवकी भार्या होने से इन्हें त्रिपुरा कहा जाता है। शिव अपनी इच्छासे त्रिधा हो गये। उनका ऊर्ध्व भाग गौरवर्ण, चार भुजावाला, चतुर्मुख ब्रह्मरूप कहलाया। मध्य भाग नीलवर्ण, एकमुख और चतुर्भुज विष्णु कहलाया तथा अधोभाग स्फटिक वर्ण, पञ्चमुख और चतुर्भुज शिव कहलाया। इन तीनों शरीरों के योगसे शिव त्रिपुर और उनकी शक्ति त्रिपुरा कही जाती है। चिन्तामणि गृहमें इनका निवास है। भैरवयामल तथा शक्तिलहरीमें इनके रूप तथा पूजा-विधान का विस्तृत वर्णन किया गया है। इनकी उपासनासे समस्त सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं।
पुरुषसूक्तमें 'श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्ल्या' कहकर कमलाको परम पुरुष भगवान् विष्णुकी पत्नी बतलाया गया है। अश्व, रथ, हस्तिके साथ उनका सम्बन्ध राज्य-वैभवका सूचक है, पद्मस्थित होने तथा पद्मवर्णा होनेका भी संकेत श्रुतिमें है। भगवच्छक्ति कमलाके पाँच कार्य हैं- तिरोभाव, सृष्टि, स्थिति, संहार और अनुग्रह। भगवती कमला स्वयं कहती हैं कि नित्य निर्दोष परमात्मा नारायणके सब कार्य मैं स्वयं करती हूँ। इस प्रकार कालीसे लेकर कमलातक दशमहाविद्याएँ सृष्टि और व्यष्टि, गति, स्थिति, विस्तार, भरण-पोषण, नियन्त्रण, जन्म-मरण, उन्नति अवनति, बन्धन तथा मोक्षकी अवस्थाओंकी प्रतीक हैं। ये अनेक होते हुए भी वस्तुतः परमात्माकी एक ही शक्ति हैं।
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