कलियुग की उत्पत्ति और उसका प्रभाव: श्रीमद्भागवत से प्रेरित | Origin of Kaliyuga and its impact: Inspired by Srimad Bhagwat

कलियुग की उत्पत्ति और उसका प्रभाव: श्रीमद्भागवत से प्रेरित

भूमिका: प्राचीन भारतीय ग्रंथों में, विशेषकर श्रीमद्भागवत और अन्य पुराणों में, कलियुग का विस्तृत वर्णन मिलता है। यह युग अधर्म, पाप, और अज्ञान का समय माना गया है। इस लेख में, हम कलियुग की उत्पत्ति, उसके प्रभाव और भगवान श्री हरि के विविध रूपों की उपासना की महिमा पर चर्चा करेंगे।


श्री भगवान की वंदना: इन्द्र सहित देवतागण, महर्षिगण और लोकपालगण अपने कार्यों की सिद्धि के लिए जिनकी उपासना करते हैं, वे सब कुछ जानने वाले, विघ्नों का नाश करने वाले, अनंत, अच्युत और अजन्मा भगवान श्री हरि हैं। वे वैदिक और तांत्रिक शास्त्रों में भी आराध्य हैं। उनकी वंदना से समस्त विघ्नों का नाश होता है और भक्तजन उनके कृपाश्रय में सुरक्षित रहते हैं।

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श्री कल्कि पुराण पहला अंश \ पहला अध्याय |


भगवान कल्कि की महिमा: भविष्य में आने वाले कलियुग के अंत में, भगवान श्री हरि कल्कि अवतार में प्रकट होंगे। उनका अवतरण अधर्म के नाश और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए होगा। ब्राह्मण वंश में जन्म लेने वाले भगवान कल्कि घोड़े की सवारी करेंगे और अत्याचारी राजाओं का नाश करेंगे। वे अपनी तलवार से पाप और अधर्म का अंत करेंगे। उनका यह अवतार धर्म, सत्य और न्याय की पुनर्स्थापना के लिए होगा।


कलियुग की उत्पत्ति: कलियुग की उत्पत्ति ब्रह्मा जी की पीठ से हुई, जब प्रलय के अंत में उन्होंने "अधर्म" नामक पातक को जन्म दिया। अधर्म की पत्नी "मिथ्या" बनी और उनके पुत्र "दंभ" और पुत्री "माया" हुए। इनके वंश से "लोभ," "क्रोध," "हिंसा," और अंततः "कलि" का जन्म हुआ। कलि के गुण भयावह और विनाशकारी थे। उनका निवास स्थान जुआ, शराब, स्त्री, और स्वर्ण में बताया गया है। उनके प्रभाव से अधर्म का प्रसार हुआ।


कलियुग के लक्षण:

  1. धर्म का पतन: कलियुग में सत्य, तप, दया, और शुद्धता का हास होगा। लोग धर्म और सदाचार को भूलकर काम-वासना और स्वार्थ की ओर प्रवृत्त होंगे।

  2. समाज का पतन:

    • ब्राह्मण अपनी मर्यादा खो देंगे और वेदों का आदर नहीं करेंगे।

    • गुरुओं का अपमान होगा और धर्म का पालन केवल दिखावे के लिए किया जाएगा।

    • विवाह केवल आपसी सहमति पर आधारित होंगे, और स्त्री-पुरुष स्वेच्छाचारिता का पालन करेंगे।

  3. प्राकृतिक असंतुलन:

    • भूमि कम अन्न उपजाएगी।

    • नदियाँ अपने मार्ग बदलेंगी।

    • बादल अनियमित वर्षा करेंगे।

  4. राजनीतिक और सामाजिक स्थिति:

    • राजा अपनी प्रजा का शोषण करेंगे।

    • प्रजा करों के बोझ से त्रस्त होगी और पहाड़ों और वनों में शरण लेगी।


कलियुग का प्रभाव: कलियुग के चार चरण बताए गए हैं:

  • प्रथम चरण: भगवान श्रीकृष्ण की निंदा शुरू होगी।

  • द्वितीय चरण: धर्म और ईश्वर का स्मरण लगभग समाप्त हो जाएगा।

  • तृतीय चरण: वर्णसंकर संतानों की उत्पत्ति होगी।

  • चतुर्थ चरण: सभी वर्ण समाप्त होकर समाज में केवल अधर्म का वर्चस्व होगा।


उपसंहार: कलियुग के भयावह प्रभावों से बचने का उपाय भगवान श्री हरि की भक्ति और उनके नाम का स्मरण है। श्रीमद्भागवत, महाभारत और रामायण जैसे पवित्र ग्रंथों का पाठ, और उनके द्वारा बताए गए धर्म का पालन कलियुग में भी शांति और कल्याण का मार्ग प्रदान करता है।

"हे महाभाग! भगवान श्रीकृष्ण की कथा का श्रवण और उनके नाम का जप ही इस युग में मोक्ष और शांति का साधन है।"

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