अनन्त की कथा और माया का रहस्य | The story of Anant and the mystery of Maya

अनन्त की कथा और माया का रहस्य

सूत उवाच:

उपविष्ते तदा हंसे भिक्षां कृत्वा यथोचिताम्।
ततः प्राहुर् अनन्तस्य शरीरारोग्यकाम्यया॥1

सूत जी ने परमहंस संन्यासी के बारे में बताते हुए कहा कि वे यथोचित भिक्षा प्राप्त कर बैठे। उसके बाद, एक ब्राह्मण ने भगवान अनन्त से यह पूछा कि वे कैसे स्वस्थ होंगे। परमहंस संन्यासी ने उनके प्रश्न को समझा और अनन्त से सम्बोधित होकर एक गूढ़ कथा सुनाई।

अनन्त की यात्रा और उसके शरीर के परिवर्तन का रहस्य

संन्यासी ने अनन्त से कहा, "हे अनन्त! तुम किस प्रकार अपने सुंदर महलों, पत्नी और पुत्रों को छोड़कर यहाँ आए हो? तुम्हारे शरीर में जो परिवर्तन हुआ है, वह अद्भुत है। तुम पहले 70 वर्ष के वृद्ध दिखते थे, लेकिन अब 30 वर्ष के युवक क्यों प्रतीत हो रहे हो?" अनन्त ने यह सुनकर उनके विचारों को समझा और कहा कि यह सब परमेश्वर की माया का खेल है, जो उसे मोहित कर लेती है। इस माया के कारण लोग अपने वास्तविक स्वरूप को भूल जाते हैं।

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माया का प्रभाव और सृष्टि की उत्पत्ति

अनन्त जी ने आगे बताया कि कैसे सृष्टि के निर्माण से पहले भगवान विष्णु की माया तीनों लोकों में व्याप्त थी, जो संसार के सभी प्राणियों को मोहित करती है। इस माया के कारण सभी प्राणी इस दुनिया में बंधे रहते हैं और अपने वास्तविक उद्देश्य से दूर होते हैं। माया की यह शक्ति इतनी प्रबल है कि यह देवताओं को भी अपने जाल में फँसा लेती है।

इन्द्रियों पर नियंत्रण और तपस्या का महत्व

अनन्त ने यह भी बताया कि उन्होंने इन्द्रियों को वश में करने के लिए तपस्या की, लेकिन प्रारंभ में सफलता नहीं मिली। इसके बाद, दस इन्द्रियों के स्वामी देवताओं ने उनके सामने आकर बताया कि इन्द्रियों को नष्ट करना उनके लिए उचित नहीं है। बल्कि, इन्द्रियों को भगवान विष्णु की भक्ति में लगाना ही सच्चा उपाय है, जो जीवन में सुख और मोक्ष की प्राप्ति कराता है।

भक्ति का मार्ग और मोक्ष

अनन्त जी ने यह भी बताया कि भगवान विष्णु की भक्ति से न केवल जीवन के दुखों से मुक्ति मिलती है, बल्कि वह आत्मज्ञान और परम सत्य का अनुभव भी कराती है। जब मनुष्य भगवान की भक्ति में पूरी तरह रमा रहता है, तो वह संसार की माया से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है।

राजाओं और मुनियों का मार्ग

राजा और मुनि इस उपदेश को सुनकर भगवान विष्णु की भक्ति में लीन हो गए। उन्होंने भक्ति के मार्ग पर चलते हुए जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझा और मोक्ष की प्राप्ति की दिशा में कदम बढ़ाए।

निष्कर्ष

यह कथा हमें यह सिखाती है कि माया के जाल में फँसकर हम अपने वास्तविक स्वरूप से दूर होते जाते हैं। केवल भगवान की भक्ति और आत्मज्ञान से ही हम इस माया के जाल से मुक्त हो सकते हैं। जीवन के हर पहलु को समझते हुए हमें अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने का मार्ग अपनाना चाहिए, जो कि भगवान विष्णु की भक्ति में है।

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