राजा शशिध्वज और कल्कि जी की कथा: एक अद्भुत वृतांत | Story of King Shashidhwaj and Kalki ji: A wonderful account
राजा शशिध्वज और कल्कि जी की कथा: एक अद्भुत वृतांत
कथा का प्रारंभ एक समय राजा शशिध्वज से होता है, जो एक महान और ज्ञानी राजा थे। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम समय में, कल्कि जी से एक विशेष निवेदन किया, जिसे सुनकर कल्कि जी लज्जित हो गए और मुँह नीचा कर लिया। यह घटना न केवल राजा शशिध्वज के उच्च ज्ञान की पुष्टि करती है, बल्कि एक गहरे रहस्य को भी उजागर करती है, जो कल्कि जी के पिछले जन्म से जुड़ा था।
राजा शशिध्वज का निवेदन
राजा शशिध्वज ने सभा में उपस्थित सभी राजाओं के सामने अपनी कथा सुनाई और फिर कल्कि जी से हाथ जोड़कर कहा, "हे हरे! आप तीनों लोकों के स्वामी हैं। सभी राजाओं और मेरे परिवार, अर्थात् मेरे पुत्र, पुत्रियों और उनके बच्चों का पालन-पोषण आप ही करें। मैं हरिद्वार में तपस्या के लिए जा रहा हूँ, और यह मेरा अंतिम निर्णय है।"
उनकी इस बात से कल्कि जी लज्जित हुए और उन्होंने मुँह नीचा कर लिया। यह देखकर अन्य राजाओं ने उत्सुकतापूर्वक पूछा, "हे नाथ, राजा शशिध्वज की बात सुनकर आपके मुँह में जो लज्जा उत्पन्न हुई, उसका कारण क्या था?"
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श्री कल्कि पुराण तीसरा अंश \तेरहवाँ अध्याय |
कल्कि जी का उत्तर
कल्कि जी ने कहा, "आप स्वयं राजा शशिध्वज से इसका कारण पूछिए। वह महान ज्ञानी हैं और मैं उन्हें गहरी भक्ति से जानता हूँ।"
राजा शशिध्वज ने अपने अनुभव को साझा करते हुए बताया कि पहले रामचन्द्र जी के अवतार में, लक्ष्मण जी ने इन्द्रजीत राक्षस का वध किया था, जिसके बाद लक्ष्मण जी को ऐकाहिक बुखार हो गया। तब द्विविद नामक वानर ने उन्हें एक मंत्र बताया, जिससे उनका बुखार ठीक हो गया। इसके बाद, लक्ष्मण जी ने द्विविद से कहा कि वह कोई वर मांगे, और द्विविद ने अपने वानर रूप से मुक्ति पाने की इच्छा जताई।
लक्ष्मण जी ने द्विविद को यह वरदान दिया कि अगले जन्म में बलदेव के रूप में अवतार लेकर वह उसकी वानर योनि को समाप्त करेंगे।
जाम्बवान और कृष्ण जी की कथा
राजा शशिध्वज ने अपनी कहानी में जाम्बवान का भी उल्लेख किया, जो वामन अवतार के समय की एक महत्वपूर्ण कथा से जुड़ा हुआ था। वामन जी के चक्र से जाम्बवान की मृत्यु का वरदान उनके पिछले जन्म के कर्मों के कारण हुआ था। अंत में, कृष्ण अवतार में जाम्बवान ने श्री कृष्ण जी से मुलाकात की, और श्री कृष्ण ने उन्हें मोक्ष दिया।
राजा शशिध्वज ने आगे बताया कि उनके द्वारा श्री कृष्ण जी पर मिथ्या आरोप लगाए गए थे, और इसी कारण उन्हें इस जन्म में श्री कृष्ण जी के साथ कल्कि रूप में मिलकर श्रेष्ठ गति प्राप्त हो रही थी।
अंत में
राजा शशिध्वज की इस कथा को सुनकर सभा में उपस्थित सभी राजा और मुनि लोग अत्यधिक प्रभावित हुए। इस कथा में कई गहरे रहस्य और भूतकाल की घटनाओं का मिलाजुला रूप है, जो जीवन के सत्य और भाग्य के बारे में महत्वपूर्ण संदेश देते हैं। जो भी इस कथा को सुनता है, वह सुखी, यशस्वी और मोक्ष प्राप्त करता है।
यह कथा जीवन के अनसुलझे रहस्यों को उजागर करती है और यह हमें यह सिखाती है कि जीवन में हमें अपने कर्मों का पालन सच्चाई और ईमानदारी से करना चाहिए, ताकि हम मोक्ष की ओर अग्रसर हो सकें।
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