भगवान शिव जी के गले में सर्प कि कथा

भगवान शिव जी के गले में सर्प कि कथा

शिव जी के गले में सर्प का नाम कथा वैदिक पुराणों और हिंदू धर्म के अनुसार शिवपुराण में प्रस्तुत हुआ है। यह कथा सर्पनाथ के रूप में भी जानी जाती है।
कथा के अनुसार, एक बार शिव जी के अभिभाषण में भगवान विष्णु और ब्रह्मा विराट रूप में मौजूद थे। उस समय अचानक एक सर्प प्रकट हुआ और शिव जी के गले में घुस गया। यह सर्प नागाराज वासुकि था, जो सर्पों के राजा थे। वासुकि शिव जी के गले में स्थित होने का आदेश भगवान विष्णु ने दिया था।इस घटना का कारण यह था कि एक बार देवताओं और राक्षसों के मध्य विवाद हुआ था कि कौन सबसे महत्वपूर्ण है। इस विवाद को निपटाने के लिए उन्होंने त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, और शिव) को उनकी महाशक्तियों का प्रदर्शन करने के लिए कहा।विष्णु ने अपनी आदिशक्ति भूमि पर प्रदर्शित की, जहां उन्होंने ब्रह्मांड का विस्तार किया। ब्रह्मा ने अपनी सृष्टिशक्ति प्रदर्शित की, जिससे वह ब्रह्मांड के सभी जीवों की रचना कर सकते हैं। हालांकि, शिव जी ने अपनी निग्रहशक्ति को प्रदर्शित नहीं किया। इसके बजाय, शिव जी ने वासुकि को अपने गले में स्थान देने का आदेश दिया और इसे आशीर्वाद दिया कि यहां रहने से वह विपरीत प्रभावों से सुरक्षित रहेगा।इस प्रकार, वासुकि शिव जी के गले में बंधा हुआ रहा और उनके साथी सर्प उनके चारों ओर घूमते रहे। इस कथा से यह दिखाया जाता है कि शिव जी महादेव के रूप में अनन्तता और संपूर्णता के प्रतीक हैं, और यह दिखाता है कि उनकी शक्ति सभी जीवों के साथ मिलकर अच्छाई को प्रदान करती है।पौराणिक कथाओं के अनुसार, नागों के देवता वासुकी की भक्ति से भगवान शिव बेहद खुश थे। क्योंकि वो हमेशा की शंकर जी की भक्ति में लीन रहते थे। तक प्रसन्न होकर शिवजी ने वासुकी को उनके गले में लिपटे रहने का वरदान दिया था। इससे नागराज अमर हो गए थे।

नागराज वासुकी की संक्षिप्त कथाएं

समुद्र मंथन के दौरान वासुकी नाग को मेरू पर्वत के चारों ओर रस्सी की तरह लपेटकर मंथन किया गया था। एक तरफ उन्हें देवताओं ने पकड़ा था तो एक तरफ दानवों ने। इससे वासुकी का पूरा शरीर लहूलुहान हो गया था। इससे शिव शंकर बेहद प्रसन्न हुए थे। इसके अतिरिक्त जब वासुदेव कंस के डर से भगवान श्री कृष्ण को जेल से गोकुल ले जा रहे थे तब रास्ते झमाझम बारिश हुआ थी। इस बारिश में भी वासुकी नाग ने ही श्री कृष्ण की रक्षा की थी। मान्यता तो यह भी है कि वासुकी के सिर पर ही नागमणि विराजित है

वासुकि नामक सर्प के संबंध में विभिन्न पौराणिक कथाएं हैं जो हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों में वर्णित हैं। यहां कुछ प्रमुख पौराणिक कथाएं हैं जो वासुकि के बारे में वर्णित-

  1. शिवपुराण: शिवपुराण में वासुकि कथा विस्तारपूर्वक वर्णित है। इस कथा के अनुसार, एक बार देवता-असुरों के बीच मन्थन क्रिया हो रही थी जिसमें समुद्र मंथन के दौरान कालकूट विष प्रकट हुआ। शिव जी ने इस विष को पीने से बचने के लिए उनके गले में वासुकि सर्प को बांधा। इससे वासुकि को अमृत मिला और शिव जी की आदेश के अनुसार वह उनके गले में स्थान ले गया।
  2. काठियावाड़ी माहात्म्य: इस माहात्म्य में भी वासुकि कथा का वर्णन है। यह कथा काठियावाड़ नामक क्षेत्र में प्रसिद्ध है। इसमें बताया जाता है कि एक गांव में एक विधवा महिला रहती थी जिसे शिव जी की पूजा का अत्यंत भक्ति थी। एक दिन वह महिला शिव मंदिर में पूजा करते समय वासुकि सर्प को देखती है और वह उसे अपने गले में स्थान देती है। इसके बाद से उस गांव में भक्ति, शांति और समृद्धि की वृद्धि होती है।
  3. श्रीमद् भागवतम्: श्रीमद् भागवतम् में भी वासुकि कथा का उल्लेख है। इसमें बताया गया है कि प्राचेतस नामक राजा ने तपस्या के दौरान वासुकि सर्प की उपासना की थी और उन्हें उनके गले में स्थान दिया था।
ये कथाएं पौराणिक ग्रंथों में वर्णित हैं और विभिन्न संस्कृतियों और क्षेत्रों में लोकप्रिय हैं। यहां दी गई कथाओं के अलावा भी अन्य पौराणिक ग्रंथों में वासुकि के संबंध में कथाएं हो सकती हैं।

काठियावाड़ी माहात्म्य के बारे में जो वासुकि कथा उल्लेखित है, वह कथा भारतीय लोककथाओं में प्रसिद्ध है। इस कथा के अनुसार, काठियावाड़ क्षेत्र में एक गांव में एक विधवा महिला नामक भक्तिन रहती थी जिसका नाम अहिल्या था। अहिल्या अत्यंत भक्तिभाव से भगवान शिव की पूजा करती थी।एक दिन जब अहिल्या शिव मंदिर में ध्यान में लीन थी, तभी वासुकि नामक सर्प वहां पहुंचा और उसने अहिल्या के गले में बस लिया। यह घटना ग्रामीणों और भक्तों के बीच विख्यात हो गई।इसके बाद से वासुकि अहिल्या के गले में स्थान लेता रहा और गांव के लोग इसे अपने इष्टदेव शिव जी के रूप में मानने लगे। इस प्रकार, वासुकि और अहिल्या की पूजा एवं उपासना शिव भक्ति का अहम् भाग बन गई। यह कथा काठियावाड़ी माहात्म्य में प्रस्तुत होती है और वहां के स्थानीय लोगों द्वारा प्रमुखता से मान्यता प्राप्त है। इस कथा के माध्यम से, भक्ति, श्रद्धा और शिव भक्ति के महत्व को दर्शाया जाता है।

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