मां दुर्गा के नौ रूपों में एक रूप 'मां स्कंदमाता' /Maa Skandamata is one of the nine forms of Maa Durga.
मां दुर्गा के नौ रूपों में एक रूप 'मां स्कंदमाता
स्कंदमाता संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है "स्कंद (सुब्रह्मण्य) की माता।" स्कंदमाता, भारतीय पौराणिक कथाओं और हिंदू धर्म में मां दुर्गा की एक रूप है। मां दुर्गा के नौ रूपों में एक रूप भी स्कंदमाता है।
स्कंदमाता को शंकरजी की पत्नी मां पार्वती के रूप में भी जाना जाता है, जो मां दुर्गा के साथ एक आद्य शक्ति हैं। वे भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माँ हैं, जिन्हें सोमनाथ के रूप में भी जाना जाता है।
नवरात्रि के पांचवें दिन को स्कंदमाता का पूजा विधान किया जाता है। वे आध्यात्मिक उन्नति, बल, और सौभाग्य का प्रतीक माने जाते हैं और उन्हें देवी मां की कृपा के संचालन करने का संदेश दिया जाता है।
स्कंदमाता की मूर्ति में वे चार हाथ होते हैं, जिनमें से दो में वे वरदान देती हैं और दूसरे दो में वे अपने दो पुत्रों, गणेश और कार्तिकेय (स्कंद) को पालने के लिए कमंडलु और त्रिशूल धारण करती हैं। उनके सवारी वाहन हांस का रूप होता है, जो कार्तिकेय का वाहन माना जाता है।
भारतीय संस्कृति में स्कंदमाता का विशेष महत्व है और उन्हें भक्ति और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। उन्हें सम्मान देने वाले भक्तों को समस्त संसारिक संदेहों से मुक्ति मिलने की कामना की जाती है।
स्कंदमाता कथा, जिसे भारतीय पौराणिक कथाओं में प्रसिद्धी मिली है
मां दुर्गा और भगवान कार्तिकेय (स्कंद) के रिश्ते को वर्णन करती है। यह कथा नवरात्रि के पांचवें दिन, जिसे स्कंदमाता का दिन माना जाता है, को विशेष रूप से पूजा जाता है।
कथा के अनुसार, एक समय पर देवी दुर्गा ने अत्यंत शक्तिशाली और असुर सम्राट महिषासुर के विरुद्ध युद्ध किया। युद्ध के दौरान, महिषासुर ने देवी के सैन्य को बहुत समय तक लड़ाई में बंद किया रखा, जिससे देवी का सैन्य बहुत थक गया। देवी दुर्गा असुर सम्राट के विरुद्ध लड़ाई करते हुए थक जाती थीं, इसलिए उन्हें नवरात्रि के पांचवें दिन, जिसे स्कंदमाता के रूप में जाना जाता है, अवतरित होने का समय मिला।
स्कंदमाता के रूप में दुर्गा ने अपने सर्वशक्तिमान स्वरूप को देखकर भगवान कार्तिकेय (स्कंद) का अवतार ग्रहण किया। उन्होंने अपने आध्यात्मिक शक्तियों का प्रदर्शन करके महिषासुर को जीत लिया और उन्हें समर्थ बना दिया। स्कंदमाता के आविर्भाव के बाद मां दुर्गा के सैन्य ने असुर सम्राट को पूरी तरह से पराजित कर दिया और सभी देवताओं ने उनके प्रदर्शन का समर्थन किया।
स्कंदमाता की ध्यान और पूजा से भक्तों को आध्यात्मिक शक्ति, सौभाग्य, और सभी प्रकार की समृद्धि मिलती है। उन्हें देवी मां की आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनके जीवन में समस्त दुखों और विपत्तियों से मुक्ति मिलती है।
स्कंदमाता के रूप में दुर्गा ने अपने सर्वशक्तिमान स्वरूप को देखकर भगवान कार्तिकेय (स्कंद) का अवतार ग्रहण किया। उन्होंने अपने आध्यात्मिक शक्तियों का प्रदर्शन करके महिषासुर को जीत लिया और उन्हें समर्थ बना दिया। स्कंदमाता के आविर्भाव के बाद मां दुर्गा के सैन्य ने असुर सम्राट को पूरी तरह से पराजित कर दिया और सभी देवताओं ने उनके प्रदर्शन का समर्थन किया।
स्कंदमाता की ध्यान और पूजा से भक्तों को आध्यात्मिक शक्ति, सौभाग्य, और सभी प्रकार की समृद्धि मिलती है। उन्हें देवी मां की आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनके जीवन में समस्त दुखों और विपत्तियों से मुक्ति मिलती है।
सरल स्कंदमाता की पूजा विधि
स्कंदमाता को नवरात्रि के पांचवें दिन, जिसे स्कंदमाता के रूप में जाना जाता है, विशेष रूप से पूजा जाता है। नवरात्रि के इस दिन, भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की मां दुर्गा के रूप में पूजा की जाती है। यहां एक सरल स्कंदमाता की पूजा विधि दी गई है:
सामग्री:
1. देवी के मूर्ति या फोटो
2. जल एक थाली और कलश के लिए
3. रोली, अक्षता, सुपारी, नारियल, फूल, धूप, दीप, आसन
4. पूजा के लिए फूल, पुष्पमाला, बेल पत्र, बन्ने, घंटी
पूजा विधि:
1. पूजा के आदि में, पवित्र स्थान पर अपनी इच्छा के अनुसार स्कंदमाता की मूर्ति या फोटो को स्थापित करें।
2. सबसे पहले, देवी को अर्घ्य (जल) दें। इसके लिए कलश में पानी डालें और उसमें कुमकुम और चावल मिलाकर अर्घ्य के रूप में देवी को अर्पित करें।
3. उसके बाद, देवी को चावल, कलियां, सुपारी, नारियल, और फूलों से भोग चढ़ाएं।
4. फूलों की माला और अपने हाथों में बेल पत्र और बन्ने लेकर, देवी की पूजा करें।
5. आगमन मंत्र, ध्यान मंत्र, प्रार्थना, आरती आदि का पाठ करें।
6. पूजा के अंत में, देवी को अच्छी तरह से प्रसाद चढ़ाएं।
7. आप पूजा करते समय मन में स्कंदमाता के गुण और कृपा के बारे में ध्यान कर सकते हैं और उनसे माँग सकते हैं कि आपके जीवन में समृद्धि, सौभाग्य और आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति हो।
यहां दी गई पूजा विधि सामान्य रूप से अनुसरणीय है, लेकिन आप अपने परिवार की परंपरा और आपके स्वयं के अनुसार इसमें बदलाव कर सकते हैं। पूजा के दौरान श्रद्धा एवं विधिवत भाव से करने से आपकी पूजा सिद्ध होती है और आपको आशीर्वाद प्राप्त होता है।
विशेष रूप से नवरात्रि के पांचवें दिन को, जिसे स्कंदमाता के रूप में भी जाना जाता है, इस मंत्र का जाप किया जाता है। यह मंत्र भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की मां दुर्गा के रूप में समर्पित होता है।
इस मंत्र में "ॐ" का प्रयोग किया गया है, जो कार्तिकेय (स्कंद) के दिव्यत्व को दर्शाता है और उन्हें सम्पूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी या उद्धारक रूप में प्रकट करता है। "देवी स्कंदमातायै" अर्थात् मां दुर्गा के रूप में स्कंदमाता को नमस्कार है।इस मंत्र का जाप करके भक्त स्कंदमाता को प्रसन्न करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह मंत्र भक्त के मन को शांति देता है, उनके आध्यात्मिक उन्नति को प्रोत्साहित करता है और उन्हें समस्त संसारिक संदेहों से मुक्ति प्रदान करता है।ध्यान रखें कि भगवान के मंत्रों को जाप करते समय श्रद्धा और भावना से किया जाना चाहिए। मंत्र के जाप के दौरान मां स्कंदमाता का ध्यान करें और उनसे अपनी मनोकामनाएं मांगें।
2. स्कंदमाता का अर्थ होता है "स्कंद (सुब्रह्मण्य) की माता।" वे मां दुर्गा के नौ रूपों में से एक हैं।
3. स्कंदमाता को शंकरजी की पत्नी मां पार्वती के रूप में भी जाना जाता है, जो मां दुर्गा के साथ एक आद्य शक्ति हैं।
4. उनकी मूर्ति में चार हाथ होते हैं, जिनमें से दो में वे वरदान देती हैं और दूसरे दो में वे अपने दो पुत्रों, गणेश और कार्तिकेय (स्कंद) को पालने के लिए कमंडलु और त्रिशूल धारण करती हैं।
5. स्कंदमाता की सवारी वाहन हांस (Swan) के रूप में होती है, जो कार्तिकेय का वाहन माना जाता है।
6. स्कंदमाता की पूजा से भक्तों को सम्पूर्ण समृद्धि, सौभाग्य और आध्यात्मिक उन्नति मिलती है।
7. विद्यार्थियों को अध्ययन में सफलता प्राप्त करने के लिए भी स्कंदमाता का पूजा किया जाता है।
8. भगवान कार्तिकेय को देवसेना के पति के रूप में भी जाना जाता है, जो देवताओं की सेना के सरदार हैं।
9. स्कंदमाता के भव्य रूप को देखने के लिए, उन्हें नवरात्रि में देखना एक शुभ अवसर है, जब उनकी मूर्ति और प्रतिमा को सजाकर पूजा की जाती है।
10. स्कंदमाता की कृपा से भक्तों को समस्त संसारिक संदेहों से मुक्ति मिलती है और उन्हें आध्यात्मिक सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ने की शक्ति प्राप्त होती है।
सामग्री:
1. देवी के मूर्ति या फोटो
2. जल एक थाली और कलश के लिए
3. रोली, अक्षता, सुपारी, नारियल, फूल, धूप, दीप, आसन
4. पूजा के लिए फूल, पुष्पमाला, बेल पत्र, बन्ने, घंटी
पूजा विधि:
1. पूजा के आदि में, पवित्र स्थान पर अपनी इच्छा के अनुसार स्कंदमाता की मूर्ति या फोटो को स्थापित करें।
2. सबसे पहले, देवी को अर्घ्य (जल) दें। इसके लिए कलश में पानी डालें और उसमें कुमकुम और चावल मिलाकर अर्घ्य के रूप में देवी को अर्पित करें।
3. उसके बाद, देवी को चावल, कलियां, सुपारी, नारियल, और फूलों से भोग चढ़ाएं।
4. फूलों की माला और अपने हाथों में बेल पत्र और बन्ने लेकर, देवी की पूजा करें।
5. आगमन मंत्र, ध्यान मंत्र, प्रार्थना, आरती आदि का पाठ करें।
6. पूजा के अंत में, देवी को अच्छी तरह से प्रसाद चढ़ाएं।
7. आप पूजा करते समय मन में स्कंदमाता के गुण और कृपा के बारे में ध्यान कर सकते हैं और उनसे माँग सकते हैं कि आपके जीवन में समृद्धि, सौभाग्य और आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति हो।
यहां दी गई पूजा विधि सामान्य रूप से अनुसरणीय है, लेकिन आप अपने परिवार की परंपरा और आपके स्वयं के अनुसार इसमें बदलाव कर सकते हैं। पूजा के दौरान श्रद्धा एवं विधिवत भाव से करने से आपकी पूजा सिद्ध होती है और आपको आशीर्वाद प्राप्त होता है।
स्कंदमाता के मंत्र का अर्थ निम्नलिखित है:
ॐ देवी स्कंदमातायै नमः॥विशेष रूप से नवरात्रि के पांचवें दिन को, जिसे स्कंदमाता के रूप में भी जाना जाता है, इस मंत्र का जाप किया जाता है। यह मंत्र भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की मां दुर्गा के रूप में समर्पित होता है।
इस मंत्र में "ॐ" का प्रयोग किया गया है, जो कार्तिकेय (स्कंद) के दिव्यत्व को दर्शाता है और उन्हें सम्पूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी या उद्धारक रूप में प्रकट करता है। "देवी स्कंदमातायै" अर्थात् मां दुर्गा के रूप में स्कंदमाता को नमस्कार है।इस मंत्र का जाप करके भक्त स्कंदमाता को प्रसन्न करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह मंत्र भक्त के मन को शांति देता है, उनके आध्यात्मिक उन्नति को प्रोत्साहित करता है और उन्हें समस्त संसारिक संदेहों से मुक्ति प्रदान करता है।ध्यान रखें कि भगवान के मंत्रों को जाप करते समय श्रद्धा और भावना से किया जाना चाहिए। मंत्र के जाप के दौरान मां स्कंदमाता का ध्यान करें और उनसे अपनी मनोकामनाएं मांगें।
स्कंदमाता (स्कंद/सुब्रह्मण्य की माँ) के 10 रोचक तथ्यों के बारे में
1. स्कंदमाता का नाम विशेष रूप से नवरात्रि के पांचवें दिन के रूप में जाना जाता है, जिसे स्कंदमाता के रूप में पूजा जाता है।2. स्कंदमाता का अर्थ होता है "स्कंद (सुब्रह्मण्य) की माता।" वे मां दुर्गा के नौ रूपों में से एक हैं।
3. स्कंदमाता को शंकरजी की पत्नी मां पार्वती के रूप में भी जाना जाता है, जो मां दुर्गा के साथ एक आद्य शक्ति हैं।
4. उनकी मूर्ति में चार हाथ होते हैं, जिनमें से दो में वे वरदान देती हैं और दूसरे दो में वे अपने दो पुत्रों, गणेश और कार्तिकेय (स्कंद) को पालने के लिए कमंडलु और त्रिशूल धारण करती हैं।
5. स्कंदमाता की सवारी वाहन हांस (Swan) के रूप में होती है, जो कार्तिकेय का वाहन माना जाता है।
6. स्कंदमाता की पूजा से भक्तों को सम्पूर्ण समृद्धि, सौभाग्य और आध्यात्मिक उन्नति मिलती है।
7. विद्यार्थियों को अध्ययन में सफलता प्राप्त करने के लिए भी स्कंदमाता का पूजा किया जाता है।
8. भगवान कार्तिकेय को देवसेना के पति के रूप में भी जाना जाता है, जो देवताओं की सेना के सरदार हैं।
9. स्कंदमाता के भव्य रूप को देखने के लिए, उन्हें नवरात्रि में देखना एक शुभ अवसर है, जब उनकी मूर्ति और प्रतिमा को सजाकर पूजा की जाती है।
10. स्कंदमाता की कृपा से भक्तों को समस्त संसारिक संदेहों से मुक्ति मिलती है और उन्हें आध्यात्मिक सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ने की शक्ति प्राप्त होती है।
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