शिव हिंदू देवज्ञान

शिव " Shiva 

शिव " Shiva शिव एक प्रमुख हिंदू देवता हैं। वह हिंदू धर्म में त्रिमूर्ति में से एक हैं, जिनमें ब्रह्मा (सृष्टि), विष्णु (पालन-पोषण) और शिव (संहार) होते हैं। शिव को सम्पूर्णता, निर्मलता और ध्यान का प्रतीक माना जाता है। वह ध्यान और साधना का प्रतीक होते हैं और उन्हें नीला गला, त्रिशूल, नाग (साँप) और चंद्रमा के साथ प्रतिष्ठित किया जाता है। शिव की पत्नी का नाम पार्वती हैं और उनके दो पुत्र हैं - गणेश और कार्तिकेय। शिव को अनंत, शक्तिशाली और धर्म का प्रतीक माना जाता हैं। उनका तांडव नृत्य और ध्यान धारण का प्रतीक हैं। कई लोग महाशिवरात्रि जैसे उत्सव में शिव की पूजा करते हैं।

शिव का वर्णन

शिव एक प्रमुख हिंदू देवता हैं और हिंदू धर्म के त्रिमूर्ति में से एक हैं। उन्हें ध्यान, साधना और सम्पूर्णता का प्रतीक माना जाता हैं। शिव का वर्णन बहुत विविध है, और उनके बारे में कई प्रतिच्छेद्य गुण हैं।
  1. लिंगरूप: शिव का प्रमुख प्रतीक उनके लिंगरूप में होता हैं, जिसे शिवलिंग कहा जाता हैं। यह सामान्यत: एक चौड़े आधार पर खड़ा लिंग होता हैं, जो परंपरागत रूप से उनकी पूजा में प्रयोग होता हैं।
  2. त्रिशूल: शिव का एक अन्य प्रमुख प्रतीक त्रिशूल होता हैं, जो उनकी शक्ति और संहार को प्रतिनिधित करता हैं।
  3. नीला गला: शिव का गला नीला होता हैं, जो संसार के विनाश को दर्शाता हैं और उनकी निष्क्रियता को प्रतिनिधित करता हैं।
  4. ध्यान और समाधि: शिव को ध्यान, तापस्या और समाधि का प्रतीक माना जाता हैं। उनका ध्यान और समाधान में पूर्ण विश्वास हैं जो उन्हें ब्रह्मांड की उत्पत्ति और संरक्षण में सहायता करता हैं।
  5. महाकाल: शिव को महाकाल भी कहा जाता हैं, जो समय और मृत्यु का स्वामी होते हैं।
  6. शिव की पत्नी का नाम पार्वती हैं और उनके दो पुत्र हैं - गणेश और कार्तिकेय। उन्हें भोलेनाथ, नीलकंठ, रुद्र, शंकर, शम्भु, भैरव, आदि नामों से भी जाना जाता हैं।

शिव कथा की महत्ता

शिव पुराण में शिव कथाएँ व्यापक रूप से मिलती हैं। वहां शिव की महानता, उनके लीलाएं, उनके भक्तों की कथाएँ और उनके तपस्या और त्याग की कहानियाँ समाहित होती हैं। शिव कथाओं में विभिन्न रूपों में उनके दिव्य गुणों का वर्णन किया गया है और उनके भक्तों को उनकी कृपा का अनुभव कराया गया है।

कई शिव पुराणों में विभिन्न कथाएं हैं, जैसे कि:

  1. सती और शिव: शिव पुराण में सती और शिव की कथा बहुत महत्त्वपूर्ण है। सती की अत्यंत भक्ति और उनकी अपने पति के प्रति प्रेम उनके पुनर्जन्म की कथा के रूप में वर्णित की गई है।
  2. शिव ताण्डव स्तोत्र: यह कथा महादेव के ताण्डव नृत्य को वर्णित करती है, जिसमें उनकी महाशक्ति और महाकाली रूप को दर्शाया गया है।
  3. महाशिवरात्रि कथा: शिव पुराण में महाशिवरात्रि की महिमा और महत्त्व का वर्णन होता है।
  4. रावण और शिव: रावण की भक्ति और उनका शिव के प्रति भक्ति और समर्पण का वर्णन भी मिलता है।
ये केवल कुछ कथाएं हैं, जो शिव पुराण में मिलती हैं। ये कथाएँ शिव भक्तों के लिए मार्गदर्शन का कार्य करती हैं और उन्हें भगवान शिव की भक्ति और श्रद्धा में स्थिर करती हैं।

शिव के गुण और पूजा

शिव के गुणों की बात करें तो वे भगवान शिव के विभिन्न रूपों और गुणों को दर्शाते हैं। वे नीलकंठ (जिनकी गली नीली है), महाकाल (समय का नियंत्रण करने वाले), रुद्र (उग्र और भयंकर), शंकर (सभी का कल्याण करने वाले), भोलेनाथ (सरल और साधारण) आदि के रूप में पूजे जाते हैं। शिव की पूजा और उनकी महिमा अनेक प्रकार से की जाती है। शिव पूजा का उद्देश्य भक्ति, ध्यान, और उनके गुणों को स्मरण करना होता है। शिव जी की पूजा के लिए शिवलिंग का उपासना बहुत महत्त्वपूर्ण है। 
शिव पूजा के दौरान जल, दूध, धूप, दीप, फूल आदि से उन्हें अर्चना की जाती है। महाशिवरात्रि जैसे विशेष अवसरों पर, भक्तों का शिव मंत्रों और भजनों के साथ समाजिक रूप से उपासना की जाती है। शिव जी को 'जटाधारी' कहा जाता है क्योंकि उनके जटा (बाल) बहुत श्रेष्ठ माने जाते हैं, और ये उनकी विशेषता होती है।
शिव पूजा मान्यताओं, तांत्रिक साधनाओं और योगाभ्यास का भी एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें ध्यान, मंत्र जाप, ध्यान, और शिव के गुणों को स्मरण करने के लिए अनेक तरीके होते हैं।
इस प्रकार, शिव के गुणों का ध्यान और उनकी पूजा मानव जीवन में भक्ति, शांति और उद्धारण का माध्यम होती है।

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