रामभक्ति और भक्ति महत्त्व Rambhakti and bhakti importance
रामभगति सुरसरितहि जाई। मिली सुकीरति सरजु सुहाई॥
सानुज राम समर जसु पावन। मिलेउ महानदु सोन सुहावन॥265
"राम भक्ति से सरस्वती नदी की ओर जाते हैं, वहाँ वह सुखद गोदावरी नदी को मिलते हैं। सीता के जैसे पवित्र सरयू नदी का सानुज राम जैसे योद्धा से मिलना, वह महानदी गंगा से मिलने के समान सुंदर होता है।"
यह दोहा तुलसीदासजी की 'रामचरितमानस' से है और इसमें भगवान राम की भक्ति और उनके समर्पण का महत्त्व व्यक्त किया गया है। यह भावनात्मक रूप से रामायण के कुछ महत्वपूर्ण पात्रों और स्थानों का वर्णन करता है।
जुग बिच भगति देवधुनि धारा। सोहति सहित सुबिरति बिचारा॥
त्रिबिध ताप त्रासक तिमुहानी। राम सरुप सिंधु समुहानी॥266
इन दोहों का अर्थ है:
"युगों-युगों तक भगवान की भक्ति धारा के साथ बहती रहती है, जिसमें धार्मिकता के साथ विचार भी शामिल होता है। तीन प्रकार के कष्ट और दुखों को दूर करने वाली भगवान राम की भक्ति समुद्र के समान शान्ति देने वाली होती है।"
यह दोहा भी तुलसीदासजी की 'रामचरितमानस' से है और इसमें भगवान राम की भक्ति के महत्त्व को और उनके भक्तों को पारंपरिक तरीके से प्रशंसा किया गया है।
मानस मूल मिली सुरसरिही। सुनत सुजन मन पावन करिही॥
बिच बिच कथा बिचित्र बिभागा। जनु सरि तीर तीर बन बागा॥267
यह दोहा भी तुलसीदासजी के रामचरितमानस से हैं। इसका अर्थ है:
"मनुष्य अपने मन को सरस्वती नदी के मूल के समान शुद्ध और पवित्र बनाता है, वह धार्मिक और समझदार लोगों की सुनता है और अपने मन को शुद्ध करता है। बातों में विचारों में और लोगों के बीच की कथाएं अनोखी और विभाजित होती हैं, जैसे बागों में पेड़-पौधों के बीच तीर के तीर होते हैं।"
यह दोहा मनुष्य के अंदर की शुद्धि के बारे में बताता है और व्यक्ति को धार्मिकता और समझदारी की दिशा में चलने की प्रेरणा देता है।
उमा महेस बिबाह बराती। ते जलचर अगनित बहुभाँती॥
रघुबर जनम अनंद बधाई। भवँर तरंग मनोहरताई॥268
यह दोहे भी तुलसीदासजी के 'रामचरितमानस' से हैं। इनका अर्थ है:
"उमा (पार्वती) और महेश (शिव) की शादी में बहुत से जलचर और अग्नि समान जलते हुए पहुंचे। रघुकुल के जन्म में अनंद है, जैसे मधुमय भवर और मनमोहक तरंगें।"
यह दोहा भगवान शिव-पार्वती की विवाह के उत्सव को दर्शाता है और इसका संबंध 'रामचरितमानस' के बगीचे में सुंदरता और भक्ति से होता है।
दो0-बालचरित चहु बंधु के बनज बिपुल बहुरंग।
नृप रानी परिजन सुकृत मधुकर बारिबिहंग॥269
यह दोहा भारतीय संस्कृति के महाकाव्य "रामायण" के बालकांड से है। इसका अर्थ है:
"बालक चरित्र चारों बंधुओं के लिए अनेक विभिन्न रंगों की भरमार है। राजा, रानी और सभी परिजन इस मधुर मधुर बारहस्पत्ति (मधुकर, बारिबिहंग) को सुनते हैं जो सुखद और आनंदमय होती है।"
यह चौपाई बालकांड के प्रारंभिक अध्यायों का संक्षेपित सार है जो बाल राम की कथाओं और उनके जीवन के घटनाओं का वर्णन करता है।
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