रामचरितमानस के बालकाण्ड के श्लोक भावार्थ ( 77- 80)

रामचरितमानस के बालकाण्ड के श्लोक भावार्थ-Meaning of the verses of Balkand of Ramcharitmanas-

श्लोक 
मंगल करनि कलिमल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की।
 गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की ।। 77
यह श्लोक तुलसीदास जी के रचित कृति "रामचरितमानस" से लिया गया है। यह श्लोक भगवान राम और तुलसी की महिमा को बयान करता है, जिनकी कथा और महिमा सुनने से मानव जीवन को मंगलमय बनाया जा सकता है।
भावार्थ-
"तुलसी की कथा रघुनाथ (भगवान राम) की महिमा को नष्ट करने वाले कलियुग के दोषों को हरने वाली है। यह कथा वैसी ही महत्ता रखती है, जैसे पवित्र नदियों का पावन पानी जीवन को पवित्र करता है।"
यह श्लोक भगवान राम और तुलसी माता की महिमा को स्तुति करता है और बताता है कि तुलसी की कथा मानव जीवन के लिए कितनी महत्त्वपूर्ण है।
श्लोक 
प्रभु सुजस संगति भनिति भलि होइहि सुजन मन भावनी ।
भव अंग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी ।।78
यह श्लोक भगवान रामचरितमानस से है, जो तुलसीदास जी द्वारा लिखा गया है। यह श्लोक भगवान राम की महिमा को स्तुति करता है और भक्तों को समझाता है कि भगवान के संग में रहकर और उनके नाम का जाप करते हुए ही मनुष्य की आत्मा को शुद्धि प्राप्त हो सकती है।
भावार्थ-
"भगवान के साथ सदा संगति करने से और उनके नाम की स्मरणा करने से मनुष्य का मन भक्ति और भावना से युक्त हो जाता है। भगवान की स्मृति करते हुए, मनुष्य अपने शरीर, आत्मा और समस्त भूतों को शुद्ध और सुहावना पाता है।"
यह श्लोक मानव जीवन में भगवान की स्मृति और सदा उनके साथ रहने की महत्ता को बताता है और इसे मानव जीवन के उच्चतम मार्ग के रूप में दर्शाता है।
श्लोक 
प्रिय लागिहि अति सबहि मम भनिति राम जस संग । 
दारु बिचारु कि करइ कोउ बंदिअ मलय प्रसंग ।  79
यह श्लोक भगवान रामचरितमानस से है, जो तुलसीदास जी द्वारा रचित है। यह श्लोक भगवान राम की महिमा और उनके साथ भक्ति के महत्त्व को बताता है।
भावार्थ-
"जो कोई मेरे भनिति (भजन) को अत्यंत प्रिय लगाता है, वह रामचंद्र जी के संग सब कुछ अति सुन्दर और मधुर मानता है। वह किसी भी दृढ़ वृक्ष के समान मधुर भाषण को बंद कर देता है, जैसे मलय पर्वत की विचारनीय घटना को।"
यह श्लोक भक्ति और भगवान के भजन को प्रिय और महत्त्वपूर्ण मानने का संदेश देता है। भक्ति और भजन के माध्यम से भगवान के साथ संगति का अनुभव होता है, जो जीवन को सुंदर और मधुर बना देता है।
श्लोक 
स्याम सुरभि पय बिसद अति गुनद करहिं सब पान ।
 गिरा ग्राम्य सिय राम जस गावहिं सुनहिं सुजान ।। 80
यह श्लोक भगवान रामचरितमानस से है, जो तुलसीदास जी द्वारा रचित है। यह श्लोक भगवान राम और सीता माता की महिमा को स्तुति करता है।
भावार्थ-
"सभी वस्त्र बहुत ही सुरभि (सुगंधित) गुणवान हैं, वे स्याम रंग के श्रीराम के प्रसाद से मिलते हैं। बुद्धिमान लोग सीताराम के ग्राम्य (गांव में साधारण) गुणों का गान करते हैं और सुनते हैं।"
यह श्लोक भगवान राम के और सीता माता के गुणों की महिमा को बताता है और उनकी महिमा को स्तुति करता है। यहाँ उनके गुणों को सर्वाधिक सुरभि और गुणवान माना गया है, जो भक्तों को प्राप्त होते हैं।

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