रामचरितमानस के बालकाण्ड के श्लोक भावार्थ {६९ - 76}

रामचरितमानस के बालकाण्ड के श्लोक भावार्थ-Meaning of the verses of Balkand of Ramcharitmanas-

श्लोक 
आखर अरथ अलंकृति नाना। छंद प्रबंध अनेक बिधाना ।।
 भाव भेद रस भेद अपारा। कबित दोष गुन बिबिध प्रकारा ।।  ६९
भावार्थ-
यह श्लोक कविता के बारे में है और इसमें कविता के विभिन्न आयामों का उल्लेख है। यहाँ दिए गए हर शब्द या वाक्य द्वारा व्यक्त किया गया है कि कविता में अर्थ का विविधता, अलंकार, छंद की विविधता, भावों का भेद, और रसों का विविधता होती है। इसमें कविता के दोष और गुणों के विभिन्न प्रकारों का भी उल्लेख है।
श्लोक में कहा गया है कि कविता विविधता का संगम होती है, जहाँ अर्थ, अलंकार, छंद, भाव, रस, दोष और गुणों की विविधता समाहित होती है। यह विभिन्न प्रकारों में रची जाती है और हर कविता अपने अपने विशेषताओं के साथ आती है।
श्लोक 
कबित बिबेक एक नहिं मोरें। सत्य कहउँ लिखि कागद कोरें ।।  ७०
भावार्थ-
यह दोहा कहता है कि कविता का सार या मूल्य उसके बिबेक या विचारों में नहीं होता, बल्कि सत्य को उजागर करने वाले विचारों का होता है। यह कविता के निर्माण में सत्यता और विचारों की महत्ता को मानता है। इसमें कहा गया है कि कविता जो कुछ भी कहती है, वह सत्य होना चाहिए और उसे सच्चाई को उजागर करने का काम करना चाहिए।
श्लोक 
भनिति मोरि सब गुन रहित बिस्व बिदित गुन एक । 
सो बिचारि सुनिहहिं सुमति जिन्ह के बिमल बिबेक ॥ ७१
भावार्थ-
यह दोहा कहता है कि मेरी बातें सभी गुणों से रहित हैं, लेकिन ब्रह्मांड के ज्ञानी लोगों के लिए एक गुण है। जो व्यक्ति समझते हैं और सुनते हैं, उनका विचार और बिबेक बहुत ही शुद्ध होता है।
श्लोक 
एहि महँ रघुपति नाम उदारा। अति पावन पुरान श्रुति सारा ।।
 मंगल भवन अमंगल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी ।। ७२
भावार्थ-
यह दोहा भगवान शिव के महान नाम की महिमा का वर्णन करता है। रघुपति भगवान राम का यह नाम बहुत उदार है और यह पुराने शास्त्रों की पवित्रता का सार है। यह नाम अनेक श्रेष्ठ और पावन है, और यह अशुभता को दूर करने वाला है। पुरारी शिव के साथ उमा रूपी पार्वती जैसे जो इस नाम का जाप करते हैं, उनका घर मंगलमय होता है।
श्लोक 
भनिति बिचित्र सुकबि कृतजोऊ। राम नाम बिनु सोह न सोऊ ।।
 बिधुबदनी सब भाँति सँवारी। सोह न बसन बिना बर नारी ।। ७३
भावार्थ-
यह दोहा कहता है कि सुकदेव ऋषि ने बहुत चमत्कारी रचनाएं की हैं, लेकिन राम नाम के बिना कोई भी सौंदर्यक नहीं है। जिस तरह से सूर्य सभी दिशाओं को सजाता है, वैसे ही बिना पति के पत्नी का भी कोई सौंदर्य नहीं होता। इस दोहे में राम नाम की महिमा को बयान किया गया है, जो कि सभी और सबको सजा सकता है।
राम नाम की महिमा अत्यंत उच्च है। इस नाम में अनंत शक्ति और पवित्रता होती है। राम नाम ने अनगिनत लोगों को मोक्ष और शांति की प्राप्ति में सहायता प्रदान की है। यह नाम सभी जीवों को एकता, समरसता, और सामाजिक सद्भावना की ओर आग्रहित करता है। राम नाम की महिमा अत्यंत ऊँची है और इसे जपने से चित्त की शुद्धि और आत्मिक उन्नति होती है।
श्लोक 
सब गुन रहित कुकबिकृत बानी। राम नाम जस अंकित जानी ।। 
सादर कहहिं सुनहिं बुध ताही। मधुकर सरिस संत गुनग्राही ॥ ७४ 
भावार्थ-
यह दोहा राम नाम की महिमा को व्यक्त करता है। इसमें कहा गया है कि सभी गुणों से रहित वाणी या बातें निष्कलंकित रूप से राम नाम की महिमा का हिस्सा होती है। इस नाम में सभी गुण समाहित हैं। 
इस दोहे में कहा गया है कि बुद्धिमान लोग सभी को यह सलाह देते हैं कि राम नाम को सम्मान देना चाहिए। यह नाम मनुष्य को संतोष और शांति की अनुभूति दिलाता है, जैसे मधुमक्खी जिस तरह से सरस से मधु चुराती है, ठीक उसी तरह से संत परमात्मा के गुणों को चुरा लेते हैं।
श्लोक 
जदपि कबित रस एकउ नाहीं। राम प्रताप प्रगट एहि माहीं ।।
सोइ भरोस मोरें मन आवा। केहिं न सुसंग बड़प्पनु पावा ।। 75
इसका भावार्थ-
"कविता में रस का अनुभव एक ही नहीं होता, लेकिन रामचंद्रजी का महान् चरित्र इसी में प्रकट होता है।
मेरा मन उस पर विश्वास करता है, कि मैं किसी सुखद संगत से बड़ापन पा सकूँ।"
यह श्लोक भगवान राम के महान् गुणों और उनके चरित्र की महिमा को बयां करता है, और यह दर्शाता है कि सुखद संगत से ही व्यक्ति अपने बड़ापन को बढ़ा सकता है।
श्लोक 
धूमउ तजइ सहज करुआई। अगरु प्रसंग सुगंध बसाई ।। 
भनिति भदेस बस्तु भलि बरनी। राम कथा जग मंगल करनी ।।76
इसका भावार्थ
"साहसनी और सहजता को छोड़कर, जब तक राम की कथा का प्रसंग हो, तब तक वहाँ सुगंध बसे रहती है।
सत्य को छोड़कर बुरी चीज़ों की बातें नहीं करनी चाहिए, बल्कि राम की कथा का वर्णन करके जगत् को शुभ संदेश देना चाहिए।"
यह श्लोक रामायण और भगवान राम की कथा की महिमा को बयां करता है, और इससे यह भी प्रकट होता है कि सत्य और उपयुक्तता के माध्यम से ही सच्चे धर्म का पालन किया जाना चाहिए।

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