रामचरितमानस श्लोक अर्थ सहित हिन्दी ( ६३-६८)

रामचरितमानस श्लोक अर्थ सहित हिन्दी Ramcharitmanas shloka in hindi with meaning

श्लोक 
जग बहु नर सर सरि सम भाई। जे निज बाढ़ि बढ़हिं जल पाई ।। 
सज्जन सकृत सिंधु सम कोई। देखि पूर बिधु बाढ़इ जोई। ६३ 
भावार्थ-
"जग बहु नर सर सरि सम भाई। जे निज बाढ़ि बढ़हिं जल पाई।। सज्जन सकृत सिंधु सम कोई। देखि पूर बिधु बाढ़इ जोई। ६३"
इस दोहे में यह कहा गया है कि दुनिया में बहुत से लोग हैं, लेकिन जो अपने बुरे गुणों को बढ़ाते हैं और अपनी बदलावपूर्ण आदतों को बढ़ाते हैं, वे लोगों के लिए समुद्र के समान होते हैं। इसके विपरीत, एक सज्जन समुद्र के समान होता है, जो अपनी बड़ी गुणवत्ता और परिपूर्णता के कारण देखने वालों को प्रेरित करता है।
इस दोहे से समझाया जाता है कि लोगों में बड़े और अच्छे गुणों की महत्ता होती है, जो उन्हें दूसरों के लिए एक आदर्श बनाते हैं। एक सज्जन की गुणवत्ता की तुलना में उसे समुद्र के समान माना गया है, जो अपनी अनगिनत गुणों से प्रेरित होता है।
श्लोक 
भाग छोट अभिलाषु बड़ करउँ एक बिस्वास ।
पैहहिं सुख सुनि सुजन सब खल करिहहिं उपहास ॥ ६४ ॥
भावार्थ-
"भाग छोट अभिलाषु बड़ करउँ एक बिस्वास। पैहहिं सुख सुनि सुजन सब खल करिहहिं उपहास॥ ६४"
इस दोहे में कहा गया है कि हमें अपने भाग्य को मानना चाहिए और अपने अभिलाषाओं को बड़ा करने की बजाय एक महत्त्वपूर्ण विश्वास को बढ़ावा देना चाहिए। बहुत से लोग होते हैं जो सुखी होते हैं क्योंकि वे अच्छे लोगों के साथ हैं, जबकि दुश्मन उन्हें हंसते हैं या उनका मजाक उड़ाते हैं।
इस दोहे का संदेश है कि हमें अपने भाग्य को स्वीकार करना चाहिए और जो भी हो रहा है, उस पर विश्वास करना चाहिए। हमें अपनी भाग्यशाली स्थिति को स्वीकार करना चाहिए और अपनी अभिलाषाओं को बड़ा करने की बजाय, उसमें सच्चाई और विश्वास को महत्त्व देना चाहिए।
श्लोक 
खल परिहास होइ हित मोरा। काक कहहिं कलकंठ कठोरा ॥
 हंसहिं बक दादुर चातकही। हँसहिं मलिन खल बिमल बतकही ।। ६५
भावार्थ-
"खल परिहास होइ हित मोरा। काक कहहिं कलकंठ कठोरा॥ हंसहिं बक दादुर चातकही। हंसहिं मलिन खल बिमल बतकही।। ६५"
इस दोहे में यह कहा गया है कि एक खल (दुष्ट) व्यक्ति मेरे हित के लिए हंसता है, जैसे कि काक (कौआ) कठोर कंठ वाला होता है। वह हंसता है जैसे कि बक (बगुला) या दादूर (कोयल) चाहते हैं, और उस दुष्ट व्यक्ति को हंसता है जैसे कि बतख (मंदाकिनी) साफ होती है।
इस दोहे के माध्यम से बताया गया है कि दुष्ट व्यक्ति जो दूसरों के दुःखों को हंसता है और उन्हें परिहास का शिकार बनाता है, वह अपने कार्यों से स्वयं को मलिन और दुष्ट माना जाता है, जबकि सच्चे और अच्छे लोगों को उसे बतख की तरह बिमल (साफ) माना जाता है।
श्लोक 
कबित रसिक न राम पद नेहू। तिन्ह कहँ सुखद हास रस एहू।।  
भाषा भनिति भोरि मति मोरी। हँसिबे जोग हँसें नहिं खोरी ॥  ६६
भावार्थ-
"कबित रसिक न राम पद नेहू। तिन्ह कहँ सुखद हास रस एहू।। भाषा भनिति भोरि मति मोरी। हँसिबे जोग हँसें नहिं खोरी॥ ६६"
इस दोहे में कहा गया है कि जो लोग कविता के रस को नहीं समझते और राम के प्रेम को नहीं जानते, उन्हें ऐसे रसों की भाषा में सुखद और हंसने वाले रसों की बात कहाँ समझने होती है। मेरी भाषा, भनने की शैली और मेरी सोच जैसी है, वैसे ही मैं हंसता हूं, जो लोग जोग में हंसते हैं, वे नहीं समझते।"
इस दोहे में बताया गया है कि जो लोग कविता के रस को नहीं समझते और भगवान राम के प्रेम को नहीं जानते, उन्हें सुखद और हंसने वाले रसों की बात कैसे समझेंगे। जो लोग मेरी भाषा, भाषा की शैली और मेरी सोच को समझते नहीं हैं, वे जोग में हंसते हैं, परन्तु वे मेरी खोरी (मूकता) को समझते नहीं हैं।
श्लोक 
प्रभु पद प्रीति न सामुझि नीकी। तिन्हहि कथा सुनि लागिहि फीकी ।। 
हरि हर पद रति मति न कुतरकी। तिन्ह कहुँ मधुर कथा रघुबर की ।।   ६७
भावार्थ-
"प्रभु पद प्रीति न सामुझि नीकी। तिन्हहि कथा सुनि लागिहि फीकी।। हरि हर पद रति मति न कुतरकी। तिन्ह कहुँ मधुर कथा रघुबर की।। ६७"
इस दोहे में कहा गया है कि जो लोग भगवान के पदों की प्रेम नहीं समझते, उन्हें भगवान की कथाएं सुनी जाती हैं, पर उन्हें व्यर्थ और अर्थहीन लगती हैं। भगवान के पदों में रति और समझ नहीं होती, उन्हें मैं श्रीरामचंद्र की मधुर कथाएं सुनाऊं।"
इस दोहे के माध्यम से बताया गया है कि जो लोग भगवान के पदों की प्रेम नहीं करते, उन्हें भगवान की कथाएं व्यर्थ और अर्थहीन लगती हैं। जो लोग भगवान के पदों में रति और समझ नहीं करते, उन्हें मैं श्रीरामचंद्र की मधुर कथाएं सुनाऊं।
श्लोक 
"राम भगति भूषित जियँ जानी। सुनिहहिं सुजन सराहि सुबानी॥६८"
"कबि न होउँ नहिं बचन प्रबीनू। सकल कला सब बिद्या हीनू॥"
भावार्थ-
पहले दोहे में कहा गया है कि जो जीवन राम भक्ति से भूषित है, उसे समझना चाहिए कि ऐसा जीवन सुजनों को सुनाया जाता है और उन्हें सराहा जाता है।
दूसरे दोहे में कहा गया है कि मैं कोई वाक्यशक्ति या प्रवीणता नहीं रखता हूँ, और मैं सभी कलाओं और विद्याओं से रहित हूँ।

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