सुधार की प्रेरणा ग्रंथ रामचरितमानस Ramcharitmanas, the book that inspired reform
संभु प्रसाद सुमति हियँ हुलसी। रामचरितमानस कबि तुलसी॥
करइ मनोहर मति अनुहारी। सुजन सुचित सुनि लेहु सुधारी॥236
राम भक्ति श्लोकार्थ।
सुमति भूमि थल हृदय अगाधू। बेद पुरान उदधि घन साधू॥
बरषहिं राम सुजस बर बारी। मधुर मनोहर मंगलकारी॥237
प्रेम और भक्ति
लीला सगुन जो कहहिं बखानी। सोइ स्वच्छता करइ मल हानी॥
प्रेम भगति जो बरनि न जाई। सोइ मधुरता सुसीतलताई॥238
यह दोहे बहुत ही सुंदर और गहरी भावनाओं से भरे हुए हैं। इनका अर्थ है कि जो व्यक्ति दूसरों को प्रेम और भक्ति से देखता है, वही सच्ची मधुरता और सुसीतलता का स्रोत बन जाता है। प्रेम और भक्ति में जो व्यक्ति खो जाता है, उसे स्वच्छता की कोई जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि उसकी सोच और भावनाएं स्वच्छता की तरह पवित्र होती हैं।
जल सुखी और ज्ञानवान
सो जल सुकृत सालि हित होई। राम भगत जन जीवन सोई॥
मेधा महि गत सो जल पावन। सकिलि श्रवन मग चलेउ सुहावन॥239
यह बातें सुनकर जीवन में सुखी महसूस होता है, जैसे जल की पवित्रता में होती है। जीवन को समृद्धि और सही दिशा में चलाने का तरीका राम भक्ति में छिपा होता है। स्थिति को समझने और सीखने के लिए हमें विवेकी बुद्धि की आवश्यकता होती है। जैसे जल सभी में समान रूप से समृद्धि लाता है, वैसे ही विवेकी बुद्धि भी सभी को सुंदर और सहज रास्ता दिखाती है।
सुमन्त्रित जीवन कौशल।
भरेउ सुमानस सुथल थिराना। सुखद सीत रुचि चारु चिराना॥240
"सुमनहरूले भरेको सुगन्ध विशेष तिरेको छ। खुशीको अनुभव गर्दा सुख, शान्ति र मनोहरता लाग्छ।।"
मनोहरता और बुद्धि
सुठि सुंदर संबाद बर बिरचे बुद्धि बिचारि।
तेइ एहि पावन सुभग सर घाट मनोहर चारि॥ 241
टिप्पणियाँ