वाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमान का जन्म वरदानों के वेग से भरे हुए हनुमान

वाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमान का जन्म 'वरदानों के वेग से भरे हुए हनुमान,

वाल्मीकि रामायण के अनुसार According to Valmiki Ramayana

सुमेरु नाम का एक प्रसिद्ध पर्वत था जो सूर्यदेव के वरदानस्वरूप सुवर्णमय हो गया था। उस पर हनुमान के पिता केसरी राज्य किया करते थे। उनकी अंजना नाम से विख्यात एक पत्नी थीं। जब भगवान विष्णु ने राजा दशरथ के यहाँ पुत्रभाव से जन्म ले लिया, तब ब्रह्माजी ने सभी देवताओं से कहा कि वे लोग उनके सहायक के रूप में ऐसे पुत्रों की सृष्टि करें, जो बलवान, इच्छानुसार रूप धारण करने में समर्थ, माया जानने वाले, शूरवीर, वायु के समान वेगशाली, नीतिज्ञ, बुद्धिमान, विष्णुतुल्य पराक्रमी, किसी से परास्त न होने वाले, तरह-तरह के उपायों के जानकार, दिव्य शरीरधारी तथा अमृतभोजी देवताओं के समान सब प्रकार की अस्त्रविद्या के गुणों से संपन्न हों। ब्रह्माजी की आज्ञानुसार वायुदेवता ने अंजना के गर्भ से हनुमान नाम के ऐश्वर्यशाली वानर को जन्म दिया। हनुमान वायुदेव के औरस पुत्र थे। उनका शरीर वज्र के समान सुदृढ़ था। उनकी गति गरुड़ के समान थी। वे सभी वानरों में सर्वाधिक बुद्धिमान और बलवान थे।

वरदानों के वेग से भरे हुए हनुमान Hanuman full of blessings

एक दिन माता अंजना फल लाने के लिए आश्रम से निकलीं और गहन वन में चली गईं। माता से बिछुड़ जाने और भूख से पीड़ित होने के कारण हनुमान जोर-जोर से रोने लगे। इतने में उन्होंने जपाकुसुम के समान लाल रंग वाले सूर्यदेव को उदित होते देखा। उन्होंने उसे कोई फल समझा और फल के लोभ से वे सूर्य की ओर जोर से उछले। सूर्य को पकड़ने की इच्छा से वे आकाश में उड़ते ही चले गए। अपने पुत्र को सूर्य की ओर जाते देख उसे दाह से बचाने के लिए वायुदेव भी बर्फ के समान शीतल होकर उसके पीछे-पीछे चलने लगे। उड़ते हुए बालक हनुमान आकाश को लांघते हुए सूर्यदेव के पास पहुँच गए। उन्हें बालक जान सूर्य ने भी उन्हें जलाया नहीं।जिस दिन हनुमान सूर्यदेव को पकड़ने के लिए उछले, उसी दिन राहु द्वारा सूर्यग्रहण किया जाना था। हनुमान ने सूर्य के रथ के ऊपरी भाग से ज्यों ही राहु का स्पर्श किया तो वह डरकर वहाँ से इंद्र के पास भाग गया। हनुमान को दूसरा राहु समझकर उसने इंद्र से गुस्से में कहा कि जब वह सूर्य को ग्रस्त करने की इच्छा से वहाँ गया, तभी दूसरे राहु ने आकर सूर्य को पकड़ लिया। यह सुन इंद्र घबरा गए और गजराज ऐरावत पर आरूढ़ होकर उस स्थान की ओर चल दिया जहाँ हनुमान के साथ सूर्यदेव विराजमान थे। राहु इंद्र को छोड़कर बड़े वेग से आगे बढ़ गया। हनुमान सूर्य को छोड़कर, राहु को ही फल मानकर उसे पकड़ने के लिए पुनः आकाश में उछले। सूर्य को छोड़ अपनी ओर धावा करने वाले हनुमान को देख राहु अपनी रक्षा करने के लिए इंद्र को पुकारने लगा। इंद्र ने हनुमान पर वज्र के द्वारा प्रहार किया जिससे वे एक पहाड़ पर जा गिरे और उनकी बाँई ठुड्डी टूट गई। अपने पुत्र के गिरते ही वायुदेव इंद्र पर कुपित हो उठे। उनका कोघ प्रजाजनों के लिए बड़ा ही अहितकारक हुआ। प्रजाजनों से समस्त वायु खींचकर वे अपने शिशु पुत्र को लेकर एक गुफा में घुस गए। इधर वायु के प्रकोप से त्रस्त समस्त प्रजा दौड़ती हुई ब्रह्माजी के पास गई और वायुरोधजनित दुःख को दूर करने की प्रार्थना करने लगी।इस पर ब्रह्माजी ने बताया कि इंद्र द्वारा उनके पुत्र हनुमान पर वार किए जाने के कारण वायुदेव कुपित हैं। सबको मिलकर उन्हें प्रसन्न करने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। तब सभी उस स्थान पर गए जहाँ वायुदेव छिपे बैठे थे। ब्रह्माजी को देख वे अपने पुत्र को लिए हुए ही उनके सामने उठ खड़े हुए और उन्होंने ब्रह्माजी को नमन किया। जैसे ही उन्होंने उस शिशु पर हाथ फेरा, वैसे ही वह शिशु उठ खड़ा हुआ। अपने पुत्र को उठ खड़ा देख प्रसन्न हुए वायुदेव पूर्ववत् वायु का संचार करने लगे।

वरदानों के वेग  Hanuman full of blessings

ब्रह्माजी ने तब सभी देवताओं से संसार का कल्याण करने और वायुदेवता की प्रसन्नता के लिए उस शिशु को वर देने के लिए कहा। इंद्र ने कमलों की माला पहनाते हुए कपिश्रेष्ठ को 'हनुमान' नाम से अलंकृत किया। इसी तरह सूर्य, वरुण, यम, शंकर, विश्वकर्मा आदि अन्य देवताओं ने भी उसे अनेकानेक वरदान दिए। अंत में ब्रह्माजी ने वायुदेव से कहा, 'यह दीर्घायु, महात्मा तथा सब प्रकार के ब्रह्मदंडों से अवध्य होगा।' देवताओं के जाने के बाद वायुदेव उसे लेकर अंजना के पास आए और देवताओं के द्वारा दिए गए वरदान की बात बताकर चले गए। वरदानों के वेग से भरे हुए हनुमान शांतचित्त महात्माओं के आश्रमों में जाकर भाँति-भाँति के उपद्रव मचाने लगे। केसरी और वायुदेव दोनों ने भी उसे ऐसा न करने के लिए कहा फिर भी वह वानरवीर उनकी आज्ञा का उल्लंघन कर ही देते। इससे भृगु ऋषि और अंगिरा के वंश में उत्पन्न हुए महर्षि ने कुपित होकर उन्हें शाप देते हुए कहा, 'वानरवीर! तुम जिस बल का आश्रय लेकर हमें सता रहे हो, उसे हमारे शाप से मोहित होकर तुम दीर्घकाल तक भूले रहोगे-तुम्हें अपने बल का पता ही नहीं चलेगा। जब कोई तुम्हें तुम्हारी कीर्ति का स्मरण दिलाएगा, तभी तुम्हारा बल बढ़ेगा।' महर्षियों के इन वचनों के प्रभाव से उनका तेज और ओज घट गया और फिर उन्हीं आश्रमों में वे मृदुल होकर विचरने लगे।

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