अयोध्या आगमन चौदह वर्ष के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे तो पहले किनसे मिले जानिए पूरी बात

अयोध्या आगमन चौदह वर्ष के बाद

 जब भगवान राम अयोध्या लौटे तो पहले किनसे मिले जानिए पूरी बात 

श्री राम का अयोध्या आगमन से पूर्व में, श्री राम जी के आदेश अनुसार भरतजी को हनुमानजी ने राम आगमन की सुचना दी। विस्तार से पढ़े राम आगमन से पूर्व भरत हनुमान मिलन। श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड उसके उपरांत जो हुआ वो इस प्रकार है

दीपावली का प्रथम पर्व अयोध्या First festival of Diwali Ayodhya

हिंदू धर्म की आस्था से जुड़ा बहुत महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व प्रकाश का पर्व है, विजय का पर्व है, दैदीप्यमान दीपावाली का पर्व संपूर्ण भारतवर्ष की आस्था का पर्व है। दीपावली का प्रथम पर्व अयोध्या नगरी में तब मनाया गया जब त्रेतायुग में भगवान राम अपने चौदह वर्षों का वनवास पूर्ण कर अपने साकेत धाम अयोध्या पधारे थे।
लेकिन अयोध्या आने से पहले भगवान राम सबसे पहले किनसे मिले और जब त्रेतायुग में भगवान राम अयोध्या पहुंचे तो किस प्रकार अयोध्यावासियों ने उनके आगमन पर उनका भव्य स्वागत किया। आगामी दीपावली के त्यौहार को ध्यान में रखते हुए आज हम आपको इन सभी बातों के बारे में बताने जा रहे हैं।

दोहा
आवत देखि लोग सब कृपासिंधु भगवान।
 नगर निकट प्रभु प्रेरेउ उतरेउ भूमि बिमान ॥४ क।।
भावार्थः- 
कृपा सागर भगवान श्री रामचंद्रजी ने सब लोगों को आते देखा, तो प्रभु ने विमान को नगर के समीप उतरने की प्रेरणा की। तब वह पृथ्वी पर उतरा।
उतरि कहेउ प्रभु पुष्पकहि तुम्ह कुबेर पहिं जाहु। 
प्रेरित राम चलेउ सो हरषु बिरहु अति ताहु ।।४ ख ।।
भावार्थः-
विमान से उतरकर प्रभु ने पुष्पक विमान से कहा कि तुम अब कुबेर के पास जाओ। श्री रामचंद्रजी की प्रेरणा से वह चला, उसे (अपने स्वामी के पास जाने का) हर्ष है और प्रभु श्री रामचंद्रजी से अलग होने का अत्यंत दुःख भी।

श्री राम जी का प्रथम गुरु से मिलन(Shri Ram's meeting with his first Guru)

चौपाई
आए भरत संग सब लोगा। कृस तन श्रीरघुबीर बियोगा ।।
 बामदेव बसिष्ट मुनिनायक। देखे प्रभु महि धरि धनु सायक ॥१॥
भावार्थः-
भरतजी के साथ सब लोग आए। श्री रघुवीर के वियोग से सबके शरीर दुबले हो रहे हैं। प्रभु ने वामदेव, वशिष्ठ आदि मुनिश्रेष्ठों को देखा, तो उन्होंने धनुष-बाण पृथ्वी पर रखकर- 

धाइ धरे गुर चरन सरोरुह। अनुज सहित अति पुलक तनोरुह ।। 
भेटि कुसल बूझी मुनिराया। हमरें कुसल तुम्हारिहिं दाया ॥२॥
भावार्थः-
छोटे भाई लक्ष्मणजी सहित दौड़कर गुरुजी के चरणकमल पकड़ लिए, उनके रोम-रोम अत्यंत पुलकित हो रहे हैं।
मुनिराज वशिष्ठजी ने (उठाकर) उन्हें गले लगाकर कुशल पूछी। (प्रभु ने कहा-) आप ही की दया में हमारी कुशल है।
सकल द्विजन्ह मिलि नायउ माथा। धर्म धुरंधर रघुकुलनाथा ।। 
गहे भरत पुनि प्रभु पद पंकज । नमत जिन्हहि सुर मुनि संकर अज ॥३॥
भावार्थः-
धर्म की धुरी धारण करने वाले रघुकुल के स्वामी श्री रामजी ने सब ब्राह्मणों से मिलकर उन्हें मस्तक नवाया। फिर भरतजी ने प्रभु के वे चरणकमल पकड़े जिन्हें देवता, मुनि, शंकरजी और ब्रह्माजी (भी) नमस्कार करते हैं।

भगवान राम के जन्म-समय पर पौराणिक शोध(Lord Ram)

राम के कथा से सम्बद्ध सर्वाधिक प्रमाणभूत ग्रन्थ आदिकाव्य वाल्मीकीय रामायण में रामजी के-जन्म के सम्बन्ध में निम्नलिखित वर्णन उपलब्ध है: चैत्रे नावमिके तिथौ।।

नक्षत्रेऽदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पञ्चसु।
ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्पताविन्दुना सह।।
अर्थात् 
चैत्र मास की नवमी तिथि में पुनर्वसु नक्षत्र में, पांच ग्रहों के अपने उच्च स्थान में रहने पर तथा कर्क लग्न में चन्द्रमा के साथ बृहस्पति के स्थित होने पर (रामजी का जन्म हुआ)।
परे भूमि नहिं उठत उठाए। बर करि कृपासिंधु उर लाए।। 
स्यामल गात रोम भए ठाढ़े। नव राजीव नयन जल बाढ़े ॥४॥

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