स्थानीय विक्रमादित्य कथा साकेत का नाम बदलकर "अयोध्या" कर दिया था। जानिए रामायण से जुड़े गुप्त रहस्य

स्थानीय विक्रमादित्य कथा साकेत का नाम बदलकर "अयोध्या" कर दिया था। जानिए रामायण से जुड़े गुप्त रहस्य 

स्थानीय विक्रमादित्य कथा

अयोध्या की एक स्थानीय मौखिक परंपरा, जिसे पहली बार 1838 में रॉबर्ट मोंटगोमरी मार्टिन द्वारा लिखित रूप में दर्ज किया गया था ,में उल्लेख किया गया है कि राम के वंशज बृहदबाला की मृत्यु के बाद शहर वीरान हो गया था । यह कई शताब्दियों तक वीरान रहा जब तक कि उज्जैन के राजा विक्रम (या विक्रमादित्य) इसकी खोज में नहीं आये। एक ऋषि की सलाह पर, विक्रम ने प्राचीन अयोध्या के स्थान को वह स्थान माना जहां बछड़े के थन से दूध बहता था।  उन्होंने प्राचीन खंडहरों को कवर करने वाले जंगलों को काट दिया, एक नया शहर स्थापित किया, रामगर किला बनवाया और 360 मंदिरों का निर्माण किया। 
जेएनयू के इतिहासकारों के अनुसार,"पुनः खोज" का यह मिथक यह मानता है कि आधुनिक अयोध्या प्राचीन अयोध्या के समान नहीं है, और यह आधुनिक शहर को धार्मिक पवित्रता प्रदान करने का एक प्रयास प्रतीत होता है जिसका मूल रूप से इसमें अभाव था। इन इतिहासकारों का मानना है कि 5 वीं शताब्दी के सम्राट स्कंदगुप्त (जिन्होंने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी) ने अपना निवास साकेत में स्थानांतरित कर दिया और इसका नाम बदलकर अयोध्या कर दिया, शायद खुद को पौराणिक सौर राजवंश के साथ जोड़ने के लिए । बेकर के अनुसार, कुमारगुप्त प्रथम या स्कंदगुप्त के शासनकाल के दौरान गुप्तों ने अपनी राजधानी साकेत में स्थानांतरित कर दी थी, और इस घटना का उल्लेख संभवतः रघुवंश में किया गया है । 

साकेत का नाम बदलकर

किशोर कुणाल का तर्क है कि इस सिद्धांत का समर्थन करने के लिए कोई ऐतिहासिक सबूत नहीं है कि स्कंदगुप्त द्वारा साकेत का नाम बदलकर अयोध्या कर दिया गया था। उन्होंने नोट किया कि कालिदास के रघुवंश में राम की कथा का वर्णन करते हुए स्पष्ट रूप से उसी शहर को साकेत और अयोध्या नाम से संदर्भित किया गया है। इतिहासकार ज्ञानेंद्र पांडे का तर्क है कि कालिदास द्वारा साकेत और अयोध्या का उल्लेख पौराणिक अयोध्या और वर्तमान अयोध्या के बीच कोई संबंध साबित नहीं करता है,क्योंकि वह संभवतः गुप्त काल (लगभग 5वीं शताब्दी ईस्वी) में रहते थे। गुप्तों ने साकेत का नाम बदलकर "अयोध्या" कर दिया था।

जानिए रामायण से जुड़े गुप्त रहस्य

दोस्तों बहुत ही कम लोग जानते हैं कि श्री रामचरित्रमानस और रामायण में कुछ कुछ बातें बिल्कुल अलग अलग हैं। जबकि कुछ बातें ऐसी है जिनका वर्णन केवल बाल्मीकि कृत रामायण मेंही ही लिखी गई है। दोस्तों भगवान श्रीराम को समर्पित मुख्यता दो ग्रंथ लिखे गए हैं। एक तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीरामचरित्रमानस और दूसरी बाल्मीकि कृत रामायण। इनके अलावा भी कुछ अन्य ग्रंथ भगवान राम पर लिखे गए हैं। लेकिन इन सभी ग्रंथों में बाल्मीकि कृत रामायण को सबसे सटीक और प्रमाणिक माना जाता है। दोस्तों आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में बताने जा रहे हैं रामायण से जुड़े कुछ गुप्त रहस्य जिनके बारे में शायद आप लोग नहीं जानते होंगे।

विशेष तथ्य:-

  1. महाकवि तुलसीदास जी द्वारा रचित श्री रामचरित्रमानस में यह वर्णन मिलता है कि भगवान श्रीराम ने सीता से विवाह करने के लिए उनके स्वयंवर में शिव धनुष को उठाया और उसका प्रत्यंचा चढाने लगे तो प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह शिव धनुष टूट गया। जबकि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में सीता स्वयंवर का कोई वर्णन ही नहीं है। बाल्मीकि कृत रामायण के अनुसार भगवान राम और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला पहुंचे थे। और विश्वामित्र के ही कहने पर राजा जनक ने प्रभु श्री राम को वह शिव धनुष दिखाया था। जब प्रभु श्रीराम ने वह शिव धनुष देखा तो खेल ही खेल में प्रभु श्रीराम ने उस शिव धनुष को उठा लिया और धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। चुकी राजा जनक ने यह प्रण किया था, कि जो भी इस शिव धनुष को उठा लेगा उसी से वे अपनी पुत्री सीता का विवाह कर देंगे।तो इसलिए राजा जनक ने अपनी अपनी पुत्री सीता का विवाह भगवान श्रीराम से कर दिया।
  2. बाल्मीकि कृत रामायण के अनुसार राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया था। और इस यज्ञ को मुख्य रूप से ऋषि ऋष्यश्रृंग ने संपन्न किया था। ऋषि ऋष्यश्रृंग महर्षि विभांडक के पुत्र थे। एक दिन जब महर्षि विभांडक नदी में स्नान कर रहे थे। तब विभांडक ऋषि का नदी में वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हर हिरनी ने पी लिया था। जिसके फलस्वरु ऋषि ऋष्यश्रृंग का जन्म हुआ था।
  3. लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा के नाक कान काटे जाने से क्रोधित होकर लंकापति रावण ने माता सीता का हरण किया था। लेकिन आप में से बहुत ही कम लोग जानते होंगे स्वयं शूर्पणखा ने भी लंकापति रावण को सर्वनाश होने का श्राप दिया था। क्योंकि रावण की बहन शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था। और वह कालकेय राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वविजय पर निकला था तब उसे राजा कालकेय से युद्ध हुआ था। तब उसने उस युद्ध में अपने बहन के पति विद्युतजिव्ह को मार दिया। तब रावण की बहन शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया की एक दिन मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।
  4. रावण जब विश्वविजय करने के लिए स्वर्ग लोक पहुंचा तो उसे रंभा नाम की अप्सरा दिखाई दी। जिसे देखकर रावण उस पर मोहित हो गया और अपनी वासना पूरी करने के लिए रावण ने रंभा को पकड़ लिया। तब उस रंभा नाम की अप्सरा ने रावण से कहा कि आप मुझे इस तरह से स्पर्श नहीं कीजिए क्योंकि मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर के लिए आरक्षित हूं। इसलिए मैं आपकी पुत्रबधू के समान हूं। लेकिन रावण ने उसकी बात नहीं माना और उसने रंभा के साथ दुराचार किया। यह बात जब नलकुबेर को पता चली तो उन्होंने रावण को एक श्राप दे दिया। उन्होंने रावण को श्राप दिया कि आज के बाद रावण बिना किसी स्त्री की इच्छा के उसे स्पर्श करेगा तो उसके सर के सौ टुकड़े हो जाएंगे।
  5. बाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार रावण जब अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था। तभी उसे एक सुंदर युवती दिखाई दी। उसका नाम वेदवती था। और वो भगवान श्री हरि विष्णु का तपस्या कर रही थी क्योंकि वह भगवान विष्णु को अपने पति रुप में पाना चाहती थी। रावण ने जब वेदवती को देखा तो वह उस पर मोहित हो गया। और वह वेदवती के बाल खींचकर उसे अपने साथ चलने के लिए कहा।तब उस तपस्विनी ने उसी क्षण अपने शरीर का त्याग कर दिया। और रावण को श्राप दे दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी। उसी स्त्री ने दूसरे जन्म में सीता के रूप में अवतार जन्म लिया।

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