दूसरा प्रदोष व्रत 23 जनवरी 2024 मंगलवार जानिए
प्रदोष व्रत हिंदू पंचाग के अनुसार Pradosh fast according to Hindu calendar
हर महीने में कृष्णपक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी पर प्रदोष का व्रत रखा जाता है। हर महीने में दो बार प्रदोष का व्रत रखा जाता है। ये व्रत शिव जी को समर्पित होता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इससे संकट दूर हो जाते है। इस व्रत को करने भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और आपके परिवार में सुख-शांति व समृद्धि आती है। अब साल 2024 की शुरुआत हो चुकी है। ऐसे में आज साल का पहला प्रदोष व्रत हैं।
प्रदोष व्रत के लाभ Benefits of Pradosh Vrat
प्रदोष व्रत एक प्रसिद्ध हिन्दू व्रत है जो शिव भक्ति में किया जाता है। यह व्रत प्रति सप्ताह दो बार किया जाता है, जो हर मास के प्रत्येक पक्ष के त्रयोदशी तिथि को होता है। प्रदोष व्रत के कुछ महत्त्वपूर्ण लाभ
- शिव भक्ति: प्रदोष व्रत का पालन शिव भक्ति और पूजा में समर्पित होता है, जिससे भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
- पुण्य का अर्जन: प्रदोष व्रत का पालन करने से व्यक्ति को धार्मिक पुण्य मिलता है और उसके कर्मों का शुभ फल मिलता है।
- दुर्गणों का नाश: इस व्रत से बुराइयों, दुर्गणों और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।
- कल्याणकारी: प्रदोष व्रत का पालन करने से व्यक्ति का घर परिवार और समाज में कल्याण और शांति का संदेश फैलता है।
- मानसिक शांति: इस व्रत से मानसिक शांति मिलती है, जो चिंता, संकट और तनाव से मुक्ति प्रदान करती है।
प्रदोष व्रत कैसे करे How to observe Pradosh Vrat
भगवान शिव को समर्पित यह व्रत महीने के दोनों ही रखने चाहिए इस तरह से साल में 26 प्रदोष व्रत पढ़ते हैं 26 व्रत रखने यानी कि 1 साल के व्रत के बाद जो 27 वा व्रत पड़ता है उसमें आप व्रत का उद्यापन कर सकते हैं यदि आप पूरे व्रत नहीं रख सकते हैं तो 11 व्रत रखने का संकल्प लें 11 व्रत रखने के बाद 12वीं व्रत को आप उद्यापन कर सकते हैं उद्यापन भी विधिपूर्वक करना चाहिए जैसा कि हम पहले भी बता चुके हैं कि सबसे पहले यह व्रत चंद्रमा ने किया था चंद्रमा को क्षयरोग हो गया था जिसके निवारण के लिए यह व्रत रखकर प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा अर्चना की थी प्रदोष काल का समय सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और 45 मिनट बाद का होता है इस व्रत में भगवान शिव से संबंधित जो भी पूजा अर्चना होती हैवह प्रदोष काल होता है उसी समय में हमें भगवान शिव की पूजा अर्चना सच्चे मन पूर्ण भाव से करनी चाहिए प्रदोष काल में भगवान बहुत ही प्रसन्न मुद्रा में होते हैं और आनंद तांडव करते हैं ऐसे समय में यदि भक्त उन्हें पुकारते हैं तो उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं सभी व्रतों का महत्व अलग-अलग होता है किंतु पूजा सब की एक समान होती है।
प्रदोष व्रत में हमें क्या खाना चाहिए What should we eat during Pradosh Vrat
व्रत निर्जला रखा जाता है इसमें कुछ चीजें ऐसी हैं जिनका हमें अवश्य ध्यान रखना प्रदोष काल में शिव जी की पूजा के बाद ही हमें भोजन ग्रहण करना चाहिए इस व्रत को वैसे तो निर्जला ही रखते हैं किंतु यदि आप में समर्थ नहीं है तो आप फलाहारकर सकती हैं फल वगैरह खाकर आप इस व्रत को पूर्ण कर सकते हैं इस तरह व्रत में आप व्रत वाला सामान ही खा सकती हैं और एक बार ही खा सकते हैं जैसे कूटू के आटे की पूरी सिंघाड़े की आटे की कतली फल वगैरा जैसी चीजें आप इस व्रत में खा सकते हैं।
प्रदोष व्रत कथा pradosh fast story
यह प्राचीन समय की बात है, और जब एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र के साथ रोज भिक्षा मांगने जाया करती थी, और वह दोनों भिक्षा मांग कर शाम के समय तक लौट आया करती थी, लेकिन एक दिन जब वह दोनों भिक्षा मांग कर वापस लौट रहे थे तो उन्हें एक नदी किनारे एक बहुत ही सुंदर लड़का देखा, लेकिन ब्राह्मणी नही जानती थी ये बच्चा किसका है लेकिन वह बच्चा के नाम धर्मगुप्त था और वह विदर्भ देश का राजकुमार था, लेकिन किसी युद्ध में आपके पिता मारे गए। और उनका राज्यपाठ छीन लिया गया था, लेकिन इसके पिता के शौक में इनकी मटा भी चल बसी, फिर शत्रुओ ने धर्मगुप्त को राज्य से बाहर निकाल दिया, लेकिन उस ब्राह्मणी ने उस लड़के की ऐसी हालत देख उसे अपना लिया और अपने पुत्र के समान उसका पालन-पोषण करने लगी। फिर कुछ ही दिनों बाद वह ब्राह्मणी अपने दोनों लड़कों को लेकर एक दिन देवयोग से देव मंदिर गई, जहाँ उसकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई, ऋषि शाण्डिल्य एक विख्यात ऋषि थे, लेकिन उनकी बुद्धि और विवेक की चर्चा हर जगह थी। फिर उस ऋषि को ब्राह्मणी ने उस लड़के की सारी कहानी सुनाई कि कैसे उसके माता-पिता की मौत हुई उसके बारे में बताया, फिर ऋषि ने उस ब्राह्मणी से और उसके दोनों बेटों को बोला अब से तुम प्रदोष व्रत रहने की सलाह दी और उससे जुड़े पूरे वधि-विधान के बारे में बताया। ऋषि के बताये गए नियमों के अनुसार ब्राह्मणी और लड़कों ने व्रत सम्पन्न किया लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि इस व्रत का फल क्या मिल सकता है। इस दिन वह दोनों लड़के वन विहार कर रहे थे तभी उन्हें वहां कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आईं जो कि बेहद सुन्दर थी, राजकुमार धर्मगुप्त अंशुमती नाम की एक गंधर्व कन्या की ओर आकर्षित हो गए,कन्या के पिता को जब यह पता चला कि वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार है तो उसने भगवान शिव की आज्ञा से दोनों का विवाह कराया। राजकुमार को कुछ समय बाद पता चला कि बीते समय में जो कुछ भी उसे हासिल हुआ है वह ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के द्वारा किये गए प्रदोष व्रत का फल था, जो भी व्यक्ति प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा करेगा और एकाग्र होकर प्रदोष व्रत की कथा सुनेगा और पढ़ेगा उसे सौ जन्मों तक कभी किसी परेशानी या फिर दरिद्रता का सामना नहीं करना पड़ेगा।
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