बिना बोले भक्ति करें

बिना बोले भक्ति करें worship without speaking

यह श्लोक भगवान शिव के ध्यान का प्रकटावाद करता है और इसमें उनके गुणों की महिमा व्यक्त की गई है। इसमें विविध तरीकों से शिव के महत्त्व को व्यक्त किया गया है और उनके गुणों का गान किया गया है। यह श्लोक उनकी अपार महत्त्वता और श्रेष्ठता को दर्शाता है और बताता है कि भगवान शिव के बिना कुछ भी संभव नहीं है।

कहेहु नीक मोरेहुँ मन भावा। यह अनुचित नहिं नेवत पठावा॥
दच्छ सकल निज सुता बोलाईं। हमरें बयर तुम्हउ बिसराईं॥382

यह भी तुलसीदास जी के दोहे हैं। इसका अर्थ निम्नलिखित है:
कहेहु - कहो
नीक - अच्छा
मोरेहुँ - मुझसे
मन - मन
भावा - प्रिय लगे
यह - यह
अनुचित - अनुचित
नहिं - नहीं
नेवत - भेजना
पठावा - पठाना
दच्छ - दक्ष
सकल - सभी
निज - अपने
सुता - संतान
बोलाईं - बोलाते हैं
हमरें - मुझसे
बयर - द्वेष
तुम्हउ - तुम्हें
बिसराईं - भूल जाते हैं
इस दोहे में कहा गया है कि मुझसे अच्छा मन लगता है, तो यह अनुचित नहीं होगा कि मैं तुम्हें भेजूँ। दक्ष राजा सभी अपने संतानों को बुलाते हैं, लेकिन वे मुझसे द्वेष भूल जाते हैं।

ब्रह्मसभाँ हम सन दुखु माना। तेहि तें अजहुँ करहिं अपमाना॥
जौं बिनु बोलें जाहु भवानी। रहइ न सीलु सनेहु न कानी॥383

यह दोहे भगवान तुलसीदास जी के हैं। इसका अर्थ निम्नलिखित है:
ब्रह्मसभाँ - ब्रह्मा की सभा
हम - हम
सन - से
दुखु - दुःख
माना - मानते हैं
तेहि - उसी कारण
तें - तब
अजहुँ - अज्ञानी
करहिं - करते हैं
अपमाना - अपमान
जौं - जब
बिनु - बिना
बोलें - बोले
जाहु - जाते हैं
भवानी - पार्वती (शिव की पत्नी)
रहइ - रहते हैं
न - नहीं
सीलु - चुप
सनेहु - प्रेम
न - नहीं
कानी - सुनाना
इस दोहे में कहा गया है कि हम ब्रह्मा की सभा में दुःख मानते हैं, जिससे हम उसी कारण से अज्ञानी अपमानित करते हैं। जब भवानी बिना बोले जाती हैं, तो वह चुप रहती हैं, प्रेम और सुनाना नहीं।

जदपि मित्र प्रभु पितु गुर गेहा। जाइअ बिनु बोलेहुँ न सँदेहा॥
तदपि बिरोध मान जहँ कोई। तहाँ गएँ कल्यानु न होई॥ 384

यह दोहे भगवान तुलसीदास जी के हैं। इसका अर्थ निम्नलिखित है:
जदपि - यद्यपि
मित्र - मित्र
प्रभु - प्रभु (भगवान)
पितु - पिता
गुर - गुरु
गेहा - घर
जाइअ - जाते हैं
बिनु - बिना
बोलेहुँ - बोले
न - नहीं
सँदेहा - संदेह
तदपि - फिर भी
बिरोध - विरोध
मान - मानता है
जहँ - जहाँ
कोई - कोई
तहाँ - वहाँ
गएँ - जाते हैं
कल्यानु - कल्याण (शुभ)
न - नहीं
होई - होता है
इस दोहे में कहा गया है कि यद्यपि मित्र, प्रभु, पिता, गुरु - ये सभी अपने घर से बिना बोले जाते हैं, तो संदेह नहीं होता। लेकिन जहाँ विरोध माना जाता है, वहाँ जाने से शुभ का कोई असर नहीं होता।

भाँति अनेक संभु समुझावा। भावी बस न ग्यानु उर आवा॥
कह प्रभु जाहु जो बिनहिं बोलाएँ। नहिं भलि बात हमारे भाएँ॥ 385

यह भी तुलसीदास जी के दोहे हैं। इसका अर्थ निम्नलिखित है:
भाँति - तरह
अनेक - अनेक
संभु - भगवान शिव
समुझावा - समझाते हैं
भावी - भविष्य
बस - बस
न - नहीं
ग्यानु - ज्ञान
उर - ह्रदय
आवा - आता है
कह - कहते
प्रभु - प्रभु (भगवान)
जाहु - जाते हैं
जो - जो
बिनहिं - बिना
बोलाएँ - बोले
नहिं - नहीं
भलि - अच्छा
बात - बात
हमारे - हमारी
भाएँ - भाति
इस दोहे में कहा गया है कि भगवान शिव अनेक तरीकों से समझाते हैं, लेकिन भविष्य में ज्ञान ह्रदय में नहीं आता। कहते हैं कि जो प्रभु बिना बोले जाते हैं, वही हमारे लिए अच्छी बात होती है।

कहि देखा हर जतन बहु रहइ न दच्छकुमारि।
दिए मुख्य गन संग तब बिदा कीन्ह त्रिपुरारि॥ 386

यह श्लोक भगवान शिव के महाकाव्य "शिव ताण्डव स्तोत्र" से है, और इसका अर्थ है:
"हे दच्छकुमारि! सभी जगहों में हर कोई जतन कर रहा है, लेकिन तुम्हारा चेहरा बहुत अद्भुत है।
तब मैंने त्रिपुरासुरों के साथ युद्ध किया और उन्हें मेरे मुख्य गणों के साथ बहुत भयंकर रूप में विनाश किया।"
यह श्लोक शिव जी के वीर रूप और उनके दिव्य क्षमताओं की महत्ता को बताता है, जिन्होंने त्रिपुरासुरों का विनाश किया।

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