छन्द अरण्यकाण्ड के

छन्द अरण्यकाण्ड के verses of aranyakand

छन्द :  
उर दहेउ कहेउ कि धरहु धाए बिकट भट रजनीचरा।
सर चाप तोमर सक्ति सूल कृपान परिघ परसु धरा॥
प्रभु कीन्हि धनुष टकोर प्रथम कठोर घोर भयावहा।
भए बधिर ब्याकुल जातुधान न ग्यान तेहि अवसर रहा॥
"कहते हैं 'उर दहेउ' या 'धरहु धाए', भयंकर रात्रि-चरों को बिना किसी संकोच के बचाओ। शिव ने त्रिशूल, तोमर, सक्ति, सूल, कृपान, परिघ, और परसु इन सभी शस्त्रों को धारण किया। जब प्रभु ने अपनी धनुष को पहली बार कठोर, भयंकर और भयावह माना, तब यह भविष्यवाणी हुई कि उस समय सभी जीवों को बधिरता होगी, और उन्हें ज्ञान का उचित समय नहीं मिलेगा।"
इस छंद में भगवान शिव के शक्तिशाली और भयंकर रूप की महिमा का वर्णन किया गया है। यह उनके शस्त्रों और उनके अद्भुत रूप की स्तुति करता है।
छन्द :  
तब चले बान कराल। फुंकरत जनु बहु ब्याल॥
कोपेउ समर श्रीराम। चले बिसिख निसित निकाम॥1॥
यह छंद भगवान राम के युद्ध के वर्णन को करता है। इसका अर्थ निम्नलिखित है:
"तब बाण क्रोध से चले, जिनकी बांहें बहुत सारे धनुष तोड़ सकती थीं। श्रीराम ने अपने क्रोध में तब विस्फोट किया, और उनके धनुष से विषाणु निकाम हो चले।"
इस श्लोक में भगवान राम के युद्ध के समय के वीरता और उनके शस्त्रों की महिमा को व्यक्त किया गया है।
अवलोकि खरतर तीर। मुरि चले निसिचर बीर॥
भए क्रुद्ध तीनिउ भाइ। जो भागि रन ते जाइ॥2॥
तब श्रीराम ने अपने तेजस्वी तीर को खींचा, जो निशाचरों के वीर खर और तारकासुर को मार सकता था। वे तीन भाई अत्यंत क्रुद्ध हो गए और जो जीतने के लिए भाग रहे थे, वे उस रणभूमि से भाग जाते थे।"
भगवान राम के युद्ध के समय के वीरता और उनके शत्रुओं के भयावह रूप का वर्णन किया गया है।
तेहि बधब हम निज पानि। फिरे मरन मन महुँ ठानि॥
आयुध अनेक प्रकार। सनमुख ते करहिं प्रहार॥3॥
यह छंद भगवान राम के युद्ध के समय के वर्णन को करता है। इसका अर्थ निम्नलिखित है:
"तब हमने उन बाणों को खाया जो हमारे अपने बद्ध होकर चल रहे थे, फिर मन में मरने का निश्चय किया। उनके प्रति अनेक प्रकार के आयुध थे, हमने उनको सीधे सामने से हमला किया।"
भगवान राम के युद्ध में उनके प्रति वीरता और साहस का वर्णन किया गया है।
रिपु परम कोपे जानि। प्रभु धनुष सर संधानि॥
छाँड़े बिपुल नाराच। लगे कटन बिकट पिसाच॥4॥
यह छंद भगवान राम के युद्ध के समय की घटना को वर्णित करता है। इसका अर्थ निम्नलिखित है:
"प्रभु ने रावण के अत्यन्त क्रोध को देखकर समझा और अपने धनुष को संधान किया। वे बहुत से शूरवीरों को छोड़ दिया, और विशाल पिसाचों को लगा करने लगे।"
भगवान राम के युद्ध में उनके वीरता और शत्रुओं के साथ विशेष युद्ध का वर्णन किया गया है।
उर सीस भुज कर चरन। जहँ तहँ लगे महि परन॥
चिक्करत लागत बान। धर परत कुधर समान॥5॥
इसका अर्थ निम्नलिखित है:
"उनके तीर, सिर, और बाहों से जहाँ भी लगते थे, वहाँ मारा जा रहा था। तीर लगते ही भूमि पर उनके तीरों का असर देखा जा रहा था, जैसे नदी के जल का विचरण होता है।"
भगवान राम के युद्ध में उनके शस्त्रों की शक्ति और उनके प्रति वीरता का वर्णन किया गया है।
भट कटत तन सत खंड। पुनि उठत करि पाषंड॥
नभ उड़त बहु भुज मुंड। बिनु मौलि धावत रुंड॥6॥
अर्थ निम्नलिखित है:
"सेना में लड़ने वाले योद्धा विरजी जाते हैं, उनके शरीर बहुत सत्ता से काटे जाते हैं, फिर वे पुनः उठ खड़े हो जाते हैं। वे बहुत से असुरों को उड़ा देते हैं, उनके भुजाओं से ज्यादातर मस्तिष्क काट दिए जाते हैं। वे बिना मुण्डी के भागते हैं।"
भगवान राम के वीरता और उनके शत्रुओं के प्रति उनकी अत्यंत भयानक प्रतिस्पर्धा का वर्णन किया गया है।
खग कंक काक सृगाल। कटकटहिं कठिन कराल॥7॥
अर्थ निम्नलिखित है:
"खग (पंख वाला पक्षी), कंक (हेरन), काक (कौआ), और सृगाल (लोमड़ी) युद्ध के समय में भयंकर और कठिन बने हुए थे।"
इस छंद में युद्ध के समय में शत्रुओं के विविध प्रकार का वर्णन किया गया है, जो भगवान राम के युद्ध की कठिनाइयों को दर्शाता है।
छन्द :  
कटकटहिं जंबुक भूत प्रेत पिसाच खर्पर संचहीं।
 बेताल बीर कपाल ताल बजाइ जोगिनि नंचहीं॥
रघुबीर बान प्रचंड खंडहिं भटन्ह के उर भुज सिरा।
जहँ तहँ परहिं उठि लरहिं धर धरु धरु करहिं भयंकर गिरा॥1॥
इसका अर्थ निम्नलिखित है:
"युद्ध के समय में जंबुक (कीड़ा), भूत, प्रेत, पिशाच, खर्पर (कोयल), बेताल, बीर, कपाल, ताल (ताल की ढोल), योगिनियों ने बजाया, वे बहुत से विचित्र भूत प्रेतों और योद्धाओं को बाणों से कटा, उनके सिरों, बाहों, और पैरों को काटा। जहां-जहां से वे उठते थे, वहां-वहां पर वे भयंकरता से गिरे।"
यह छंद युद्ध के समय में घटनाओं को विविधता और भयानकता के साथ वर्णित करता है, जो भगवान राम के युद्ध की कठिनाइयों को दर्शाता है।
अंतावरीं गहि उड़त गीध पिसाच कर गहि धावहीं।
संग्राम पुर बासी मनहुँ बहु बाल गुड़ी उड़ावहीं॥
मारे पछारे उर बिदारे बिपुल भट कहँरत परे।
अवलोकि निज दल बिकल भट तिसिरादि खर दूषन फिरे॥2॥
यह छंद भगवान राम के युद्ध के समय के घटनाओं को वर्णित करता है। इसका अर्थ निम्नलिखित है:
"युद्ध के समय में गीदड़, पिशाच, और अन्य विचित्र प्राणियाँ उड़कर लड़ते हैं, वे योद्धाओं के बालबाल छीनते हैं और उड़ा देते हैं। युद्धभूमि एकाएक भर गई है, उसमें योद्धा बालों को बहुत से गुड़ी (प्रकार) के बाल उड़ाएं जा रहे हैं। बहुत से वीर योद्धा मारे जा रहे हैं, उनके छाती फाड़ी जा रही है, और बहुत से योद्धा कह रहे हैं कि वे उसी ओर देख रहे हैं जहां से वहां खर और दूषण फिर रहे हैं।"
यह छंद युद्ध के समय के घटनाओं की कठिनाइयों को दर्शाता है, जो भगवान राम के युद्ध के समय में हुई थी।
सरसक्ति तोमर परसु सूल कृपान एकहि बारहीं।
 करि कोप श्री रघुबीर पर अगनित निसाचर डारहीं॥
प्रभु निमिष महुँ रिपु सर निवारि पचारि डारे सायका।
दस दस बिसिख उर माझ मारे सकल निसिचर नायका॥3॥
यह छंद भगवान राम के युद्ध की घटनाओं को वर्णित करता है। इसका अर्थ निम्नलिखित है:
"भगवान राम के त्रिशूल, भाला, और कृपान (खड़ाग) बारह बार लड़ाई में उनके शत्रुओं पर आक्रोश करते हैं। रघुवीर (राम) ने असंख्य सिद्ध शत्रुओं को अप्रतिम प्रकार से भयभीत किया। भगवान ने एक निमिष में शत्रुओं को बाधा दी, उनके तीर-शस्त्रों को निवारा, और साथ ही साथ शत्रुओं को मार गिराया। वे निशाचरों के नायक सब तरह से नष्ट हो गए।"
महि परत उठि भट भिरत मरत न करत माया अति घनी।
 सुर डरत चौदह सहस प्रेत बिलोकि एक अवध धनी॥
 सुर मुनि सभय प्रभु देखि मायानाथ अति कौतुक कर्‌यो।
 देखहिं परसपर राम करि संग्राम रिपु दल लरि मर्‌यो॥4॥
इस छंद का अर्थ निम्नलिखित है:
"शत्रुओं को भय और आत्मघात की भावना से भरा हुआ, वे भूमि पर उठे, लेकिन अद्वितीय माया से अत्यधिक भारी नहीं होते। चौदह सहस्र प्रेत, जो स्वर्गीय सैन्य को भी भयभीत करते हैं, उन्होंने एक अवध के धनी को देखा। सभी सुर, मुनि और अन्य सभी भगवान राम को देखकर हैरान हो गए और उनकी अद्भुत लीलाओं का अच्छे से आनंद लिया। एक दूसरे को देखकर राम ने संग्राम की घोषणा की, और शत्रु सेना को लड़ाई में मार डाला।"

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