किष्किन्धा काण्ड चौपाई 26-30

किष्किन्धा काण्ड चौपाई 26-30 Kishkindha Kand Chaupai 26-30

रामचरितमानस के किष्किंधा कांड में 1 श्लोक, 30 दोहे, 1 सोरठा, 2 छंद और 30 चौपाइयां हैं. किष्किंधा कांड  के चौपाई 26-30 अर्थ सहित हैं
चौपाई 
एहि बिधि कथा कहहि बहु भाँती गिरि कंदराँ सुनी संपाती ||
बाहेर होइ देखि बहु कीसा, मोहि अहार दीन्ह जगदीसा ||१||
इस चौपाई का अर्थ

"इस प्रकार कहकर भगवान हनुमान ने अनेक प्रकार से गिरिकंदरों की कथा सुनाई। बाहर से देखकर उन्होंने बहुतरह की यात्रा की, मुझे अपने प्रभु जगदीश का आहार देने के लिए।"
इस चौपाई में हनुमानजी को सुनिश्चित रूप से रामभक्ति का अनुभव हो रहा है और उनकी सारी कथाएं उस भक्ति के प्रकट होने का वर्णन कर रही हैं।
आजु सबहि कहँ भच्छन करऊँ, दिन बहु चले अहार बिनु मरऊँ ||
कबहुँ न मिल भरि उदर अहारा, आजु दीन्ह बिधि एकहिं बारा ||२||
इस चौपाई का अर्थ

"मैं आज सुबह कहता हूँ कि मैं भिखारी बनूं, और बिना भोजन के दिन बहुतरह चलूं। कभी भी मेरा पेट भरा हुआ नहीं रहता, और मैंने कभी अपने उदर को संतुलित भोजन से नहीं भरा है, बस एक ही बार।"
चौपाई में कवि यह व्यक्त कर रहे हैं कि वे अपने आत्म-निर्भरता और आत्म-वैराग्य की भावना को अभिव्यक्त कर रहे हैं, जो एक साधक या भक्त की अध्यात्मिक यात्रा में महत्वपूर्ण हो सकती है।
डरपे गीध बचन सुनि काना, अब भा मरन सत्य हम जाना ||
कपि सब उठे गीध कहँ देखी, जामवंत मन सोच बिसेषी ||३||
इस चौपाई का अर्थ
"जब गीधनाथ ने भगवान हनुमान के बचनों को सुना, वह गीध ने कहा, 'अब हमें सत्य का मरण ही आता है, इसलिए हम जान लेते हैं।' सभी वानर उठकर गीध की ओर देखने लगे, लेकिन जामवंत ने विशेष रूप से मन में यह सोचा।"
इस चौपाई में भगवान हनुमान ने गीधनाथ के साथ हुए वार्ता का वर्णन किया है। गीधनाथ ने अपने भक्ति और विश्वास के प्रकट होने के बाद सत्य का मरण की योजना बनाई है और सभी वानर इसे देखने के लिए उठ खड़े हो गए हैं, लेकिन जामवंत ने विचार किया है क्योंकि उनके मन में विशेष बातें थीं।
कह अंगद बिचारि मन माहीं, धन्य जटायू सम कोउ नाहीं ||
राम काज कारन तनु त्यागी , हरि पुर गयउ परम बड़ भागी ||४||
इस चौपाई का अर्थ
"अंगद ने मन में बिचारा कहा, 'जटायु तुल्य कोई धन्य नहीं है, जो राम के कारण अपने शरीर को त्याग दिया है, उसने हरि पुर (वैकुण्ठ) को प्राप्त किया है, इसमें उसका महान भाग है।'"
इस चौपाई में अंगद, वानरराज सुग्रीव के पुत्र, जटायु की महिमा को स्वीकार करते हुए उनकी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं। जटायु ने भगवान राम की सीता माता का हरण रोकने के लिए संघर्ष किया था और उसकी श्रद्धांजलि यहाँ की जा रही है।
सुनि खग हरष सोक जुत बानी , आवा निकट कपिन्ह भय मानी ||
तिन्हहि अभय करि पूछेसि जाई, कथा सकल तिन्ह ताहि सुनाई ||५||
इस चौपाई का अर्थ 
"खग (गरुड़) ने खुशी और दुःख को त्यागकर सुना, और वह निकट आकर कपियों ने भय माना। उन्होंने उनसे अभय प्राप्त करके पूछा जाने के लिए बोला, और उनसे वह सभी बातें सुनाई गईं।"
इस चौपाई में गरुड़ राजा ने अपनी बातें सुनकर खुशी और दुःख को त्यागा और उसने वानर सेना को भय में देखा। फिर उनसे अभय प्राप्त करके खग ने उनसे सभी बातें सुनाईं। यह कथा रामायण के युद्ध काण्ड में हनुमान जी की मित्रता को और वानर सेना के संगठन को दिखाने के लिए है।
सुनि संपाति बंधु कै करनी, रघुपति महिमा बधुबिधि बरनी ||६||
इस चौपाई का अर्थ 
"सुनकर रावण के सम्बंधी की राजा सुग्रीव ने कैसे कार्य करना चाहिए, उसे सुनकर हनुमान ने रघुकुल राजा की महिमा को विविध रूप से वर्णन किया।"
इस चौपाई में हनुमानजी बता रहे हैं कि सुग्रीव को रावण के सम्बंधी से कैसे व्यवहार करना चाहिए, और उन्होंने रघुकुल राजा राम की महिमा को बड़े ही अद्वितीय रूप से बयान किया है।
चौपाई 
अनुज क्रिया करि सागर तीरा, कहि निज कथा सुनहु कपि बीरा ||
हम द्वौ बंधु प्रथम तरुनाई , गगन गए रबि निकट उडाई ||१||
इस चौपाई का अर्थ
"अंगद ने सागर के तट पर जाकर अपनी क्रिया की, कपिबलीर! अब तुम अपनी कथा सुनो। हम दोनों ने पहले एक-दूसरे के साथ बंधुत्व का आदान-प्रदान किया, और फिर हमने आकाश को छोड़कर सूरज के निकट उड़ाई।"
इस चौपाई में अंगद, सुग्रीव के पुत्र, ने सागर के तट पर जाकर अपनी क्रिया का वर्णन किया है और कपिबलीर, हनुमान, से अपनी कथा सुनने की प्रार्थना की है। उन्होंने अपनी सागर पार करने की कथा को शुरू करते हुए यह बताया है कि वह और हनुमान दोनों पहले एक-दूसरे के बंधु बने थे और फिर आकाश में उड़कर सूर्य के पास पहुँच गए थे।
तेज न सहि सक सो फिरि आवा , मै अभिमानी रबि निअरावा ||
जरे पंख अति तेज अपारा , परेउँ भूमि करि घोर चिकारा ||२||
इस चौपाई का अर्थ 
"जैसे सूरज की तेज यहाँ सही नहीं हो सकती, मैं स्वयं अभिमानी हूं और सूरज को देखने के लिए तक में लौट आऊंगा। जिसके पंख बहुतेज और अत्यन्त तेज हैं, वह भूमि को घेरकर उस पर भयंकर चिकारा करता है।"
इस चौपाई में कवि अपनी अभिमानी भावना को व्यक्त करते हुए सूर्य की तेज की अत्यंतता का वर्णन कर रहे हैं। वे कह रहे हैं कि जैसे सूर्य की तेज यहाँ नहीं टिक सकती, वैसे ही कवि भी अपनी उच्चता और अभिमान के कारण दूसरों के सामने अवगत नहीं हो सकते हैं।
मुनि एक नाम चंद्रमा ओही, लागी दया देखी करि मोही ||
बहु प्रकार तेंहि ग्यान सुनावा , देहि जनित अभिमानी छड़ावा ||३||
इस चौपाई का अर्थ
"एक समय, एक मुनि का नाम चंद्रमा था, जिन्होंने मुझे देखकर दया की और मुझ पर मोहित हो गए। उन्होंने अनेक प्रकार से मुझे ज्ञान बताया और मेरे जनित अभिमान को छोड़ने का उपदेश दिया।"
इस चौपाई में कवि बता रहे हैं कि एक समय एक मुनि का नाम चंद्रमा था जो मुख्यत: दयालु थे और उन्होंने कई तरीकों से उनको ज्ञान सिखाया और उन्हें अभिमान से मुक्त करने का उपदेश दिया।
त्रेताँ ब्रह्म मनुज तनु धरिही, तासु नारि निसिचर पति हरिही ||
तासु खोज पठइहि प्रभू दूता, तिन्हहि मिलें तैं होब पुनीता ||४||
इस चौपाई का अर्थ
"त्रेता युग में ब्रह्मा ने मानव रूप में जन्म लिया और उनकी पत्नी सीता का पति भगवान हरि थे। उन्हें खोजने के लिए श्रीराम ने अपने भक्तों को भेजा, और उनसे मिलकर वह पवित्र हो गए।"
इस चौपाई में कवि भगवान राम के अवतार होने की घटना को वर्णित कर रहे हैं। त्रेता युग में ब्रह्मा ने मानव रूप में जन्म लिया और उनकी पत्नी सीता का पति भगवान हरि (राम) थे। इस कारण, इस चौपाई में भगवान राम को त्रेता युग के अवतार के रूप में बताया गया है, जिन्होंने भक्तों के माध्यम से सीता को खोजा और मिलकर उन्हें पुनीत (पवित्र) बना दिया।
जमिहहिं पंख करसि जनि चिंता , तिन्हहि देखाइ देहेसु तैं सीता ||
मुनि कइ गिरा सत्य भइ आजू , सुनि मम बचन करहु प्रभु काजू ||५||
इस चौपाई का अर्थ
"जब हनुमानजी लंका में जा रहे थे, तब उन्होंने जम्बुमालिनी की उपमेयता को समझा और उसकी चिंता की। उन्होंने जम्बुमालिनी को देखकर सीताजी को पहचान लिया। मुनिराज की उपदेश से हनुमान जी की बुद्धि बहुत उत्तम हो गई, और उन्होंने अपने प्रभावशाली बचन से प्रभुश्रीराम को पूरी जानकारी दी।"
इस चौपाई में हनुमानजी का बौद्धिक और बुद्धिमत्ता से युक्त होना दिखाया जा रहा है। उन्होंने जम्बुमालिनी की उपमेयता को समझकर सीताजी को पहचाना, और मुनिराज के उपदेश के बल पर प्रभुश्रीराम को सच्चाई की पूरी जानकारी प्रदान की।
गिरि त्रिकूट ऊपर बस लंका , तहँ रह रावन सहज असंका ||
तहँ असोक उपबन जहँ रहई | सीता बैठि सोच रत अहई ||६||
इस चौपाई का अर्थ
"लंका गिरिराज त्रिकूट पर बसी हुई है, और वहाँ रावण सहज ही असंका में रह रहा है। वहाँ अशोक वन है, जहाँ सीता बैठी हैं और विचार में रत हैं।"
इस चौपाई में कवि वर्णन कर रहे हैं कि लंका गिरिराज, जो त्रिकूट पर स्थित है, वहाँ रावण सहज ही असंका में रहता है। सीता अशोक वन में बैठी हैं और वह विचार में रत हैं, अर्थात् सीता विचार में लीन हैं और उनका मन चिंताग्रस्त है।
चौपाई 
जो नाघइ सत जोजन सागर , करइ सो राम काज मति आगर ||
मोहि बिलोकि धरहु मन धीरा , राम कृपाँ कस भयउ सरीरा ||१||
इस चौपाई का अर्थ 
"जो समुद्र की सभी सीमाएं पार करता है, वह राम का कार्य करने में बुद्धिमान होता है। मेरे मन को धीरे से बैठा करके, मैं राम की कृपा का इंतजार करता हूँ, ताकि मेरा शरीर राम की कृपा से भरा हो जाए।"
इस चौपाई में कवि व्यक्ति को उसके कार्यों में बुद्धिमान बनने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। जैसा कि समुद्र को सभी सीमाएं पार करने का योग्य होना चाहिए, उसी रूप में व्यक्ति को भी राम के कार्यों को सहजता से करना चाहिए। उन्हें धीरे से मन को बैठाकर राम की कृपा का प्रतीक्षा करने की सिख दी जा रही है।
पापिउ जा कर नाम सुमिरहीं, अति अपार भवसागर तरहीं ||
तासु दूत तुम्ह तजि कदराई, राम हृदयँ धरि करहु उपाई ||२||
इस चौपाई का अर्थ
"जब पापी व्यक्ति भगवान का नाम स्मरण करता है, तो वह अत्यन्त अपार भवसागर को तर जाता है। इसलिए वह पापी व्यक्ति, तुम दूतों को छोड़कर, राम के हृदय में समाहित हो जाए।"
इस चौपाई में कवि बता रहे हैं कि जब कोई पापी व्यक्ति भगवान का नाम स्मरण करता है, तो उसके पापों का नाश हो जाता है और वह अपार भवसागर से तर जाता है। इसलिए, उसे चाहिए कि वह दूतों को छोड़कर राम के हृदय में समाहित हो जाए ताकि उसे मोक्ष प्राप्त हो सके।
अस कहि गरुड़ गीध जब गयऊ, तिन्ह कें मन अति बिसमय भयऊ ||
निज निज बल सब काहूँ भाषा, पार जाइ कर संसय राखा ||३||
इस चौपाई का अर्थ
"गरुड़ ने जब गीधों की ओर बढ़ता है, तो उनका मन बहुत ही विस्मयित हो जाता है। वह अपनी अपनी शक्ति को सभी को बता रहा है और विश्वास में कोई संदेह नहीं रखता।"
इस चौपाई में कवि गरुड़, विष्णु के वाहन, की शक्ति और साहस की चरित्र को वर्णन कर रहे हैं। गरुड़ ने जब गीधों की ओर बढ़ते हैं, तो गीधों का मन विस्मयित हो जाता है क्योंकि गरुड़ की भयंकर शक्ति और उनका साहस देखकर वे भयभीत हो जाते हैं। गरुड़ यहां अपनी शक्ति की प्रशंसा करते हुए कह रहे हैं कि वह अपनी शक्ति को सभी को बता रहे हैं और संसय का कोई स्थान नहीं है।
जरठ भयउँ अब कहइ रिछेसा, नहिं तन रहा प्रथम बल लेसा ||
जबहिं त्रिबिक्रम भए खरारी, तब मैं तरुन रहेउँ बल भारी ||४||
इस चौपाई का अर्थ
"जब मैंने जरासंध को मारा, तब मेरा शरीर पहले के बल को छोड़कर शेष रह गया। जब त्रिविक्रम (भगवान विष्णु) खरारी रूप में हुए, तब मैं तरुन अवस्था में बलवान रहा।"
इस चौपाई में कवि अपने वीर्यशाली पराक्रम का वर्णन कर रहे हैं। जरासंध को मारने के पश्चात्, उनका शरीर पहले के बल को छोड़कर कमजोर हो गया था। लेकिन जब भगवान विष्णु ने खरारी रूप में अवतरण किया, तो वह तरुण अवस्था में बहुत बलवान रहे।
चौपाई 
अंगद कहइ जाउँ मैं पारा, जियँ संसय कछु फिरती बारा ||
जामवंत कह तुम्ह सब लायक, पठइअ किमि सब ही कर नायक ||१||
इस चौपाई का अर्थ
"अंगद ने कहा, 'मैं पारा जा सकता हूँ, परंतु मेरी जीवन में कुछ संदेह है जो बार-बार घूमता रहता है।' जामवंत ने कहा, 'तुम सभी योग्य हो, इसलिए तुम्हें इस कार्य को करने का कोई शक्तिशाली हीरो बनाया जाए।'"
इस चौपाई में अंगद और जामवंत के बीच संवाद हो रहा है। अंगद यह कह रहा है कि वह पारा जा सकता है, लेकिन उसमें कुछ संदेह है जो उसे बार-बार घूमता रहता है। जामवंत उसे समझा रहे हैं कि वह सभी योग्य हैं और इस कार्य को संपन्न करने के लिए एक उत्कृष्ट नायक बन सकते हैं।
कहइ रीछपति सुनु हनुमाना, का चुप साधि रहेहु बलवाना ||
पवन तनय बल पवन समाना, बुधि बिबेक बिग्यान निधाना ||२||
इस चौपाई का अर्थ
"हनुमान, रीछपति (सुग्रीव) से कहो, 'तुम सीधे रूप से कहो कि क्यों चुप बैठे हो, बलवान होकर। हनुमान, तुम पवन तनय हो, जो बल में पवन (हवा) के समान है, और तुम्हारी बुद्धि, विवेक और ज्ञान का खजाना है।'"
इस चौपाई में हनुमान को कहा जा रहा है कि वह सुग्रीव से कहें कि वह सीधे रूप से बताएं कि उनका चुप बैठना क्यों है और वह बलवान होकर क्यों चुप बैठे हैं। हनुमान को भगवान मारुति के पुत्र और भगवान पवनपुत्र होने के लिए यहां उचित सम्मान दिया जा रहा है, जिनका बुद्धि, विवेक, और ज्ञान बहुत उच्च हैं।
कवन सो काज कठिन जग माहीं, जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं ||
राम काज लगि तब अवतारा, सुनतहिं भयउ पर्वताकारा ||३||
इस चौपाई का अर्थ
"जगत में कौनसा कार्य है जो कठिन नहीं है, जो तुम्हें अपने पिता (श्रीराम) के पास नहीं पहुंचा सकता? जब भगवान राम के कार्य के लिए अवतार लेते हैं, तो पर्वत भी उनकी बातें सुनकर भयभीत हो जाते हैं।"
इस चौपाई में कवि यह सिद्धांत बता रहे हैं कि जगत में किसी भी कार्य में कठिनाई है, और ऐसा कार्य नहीं है जो श्रीराम के पास नहीं पहुंच सकता। जब भगवान राम अवतार लेते हैं और उनके कार्य के लिए आगे बढ़ते हैं, तो पर्वत भी उनकी बातें सुनकर भयभीत हो जाते हैं, जिससे उनकी महत्ता का अभिवादन होता है।
कनक बरन तन तेज बिराजा, मानहु अपर गिरिन्ह कर राजा ||
सिंहनाद करि बारहिं बारा, लीलहीं नाषउँ जलनिधि खारा ||४||
इस चौपाई का अर्थ
"उसने कनक वर्ण वाले तेजस्वी शरीर को पहना, और उसने अपर गिरिराज का राज किया। वह बारह बार सिंहनाद करके भूमि को अच्छे से चला दिया, जैसे समुद्र को भूषणी संपात को खारा कर देता है।"
इस चौपाई में कवि विश्वेश्वरीय रूप में भगवान शिव का वर्णन कर रहे हैं। उनका शरीर कनक (सोने) के बर्ण से रौंगतबेसी, और वह अपर गिरिराज (हिमालय) के राजा बन गए हैं। उन्होंने बारह बार सिंहनाद किया और अपनी लीलाओं से समुद्र को जलनिधि (समुद्र) को अच्छे से चला दिया, जिससे उसमें खारा (शुद्धता) आ गई।
सहित सहाय रावनहि मारी, आनउँ इहाँ त्रिकूट उपारी ||
जामवंत मैं पूँछउँ तोही, उचित सिखावनु दीजहु मोही ||५||
इस चौपाई का अर्थ
"राम ने सहित सहायकों के साथ रावण को मारा, और मैं यहाँ त्रिकूट पर्वत पर आया हूँ। हे जामवंत, मैं तुमसे यह पूछना चाहता हूँ कि कैसे मैं यहाँ आया हूँ, और तुम मुझे सही मार्गदर्शन करो।"
इस चौपाई में हनुमान जी रावण के सहायकों सहित मारे जाने का वर्णन कर रहे हैं और उनका त्रिकूट पर्वत पर आगमन होने का संकेत है। हनुमान जी जामवंत से यह पूछ रहे हैं कि कैसे वह यहाँ पहुंचे हैं और उन्हें सही मार्गदर्शन के लिए सिखावनु की आवश्यकता है।
एतना करहु तात तुम्ह जाई, सीतहि देखि कहहु सुधि आई ||
तब निज भुज बल राजिव नैना, कौतुक लागि संग कपि सेना ||६||
इस चौपाई का अर्थ
"तुम यह सब करो, हे तात, और तुम फिर जाओ। सीता से मिलकर मुझे बताओ कि उसने सच्चाई को देखा है या नहीं। उस समय भगवान राम ने अपने बालों में अपनी भुजाओं में शक्ति पूर्ण रूप से सीता को देखने के लिए अपने राजीव नेत्रों का संग किया और वह दृश्य को देखकर कपि सेना में आश्चर्य हुआ।"
इस चौपाई में हनुमान जी रावण से उनकी सारी शक्तियों को दिखाने का प्रस्ताव कर रहे हैं और उन्हें सीता से मिलकर सच्चाई की जानकारी प्राप्त करने का उत्साही हैं। यहां कवि राम के रूप में उनकी भगवती शक्तियों का उल्लेख कर रहे हैं जिनसे सीता से मिलने के बाद राम ने अपनी भुजाओं में बल से स्वयं को प्रदर्शित किया था।

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