किष्किंधा कांड श्लोक अर्थ सहित

किष्किंधा कांड श्लोक अर्थ सहित Kishkindha Kand verse with meaning

रामचरितमानस के किष्किंधा कांड में 1 श्लोक, 30 दोहे, 1 सोरठा, 2 छंद और 30 चौपाइयां हैं. किष्किंधा कांड श्लोक अर्थ सहित है
कुन्देन्दीवरसुन्दरावतिबलौ विज्ञानधामावुभौ
शोभाढ्यौ वरधन्विनौ श्रुतिनुतौ गोविप्रवृन्दप्रियौ,
इसका अर्थ: 
"कुंदल और इंदीवर फूलों के समान सुन्दर, बलवान और विज्ञान के धाम में स्थित दोनों, जो श्रुतियों द्वारा स्तुत और गोपियों के प्रिय हैं, वे दोनों भगवान राम और लक्ष्मण हैं।"
यह श्लोक भगवान राम और लक्ष्मण की सुंदरता, बल, विज्ञान और धर्मपरायणता को स्तुति रूप में व्यक्त करता है। इसमें उनके सुन्दर स्वरूप, धार्मिक गुण, और गोपियों के प्रिय होने का स्मरण होता है।
मायामानुषरूपिणौ रघुवरौ सद्धर्मवर्मौं हितौ
सीतान्वेषणतत्परौ पथिगतौ भक्तिप्रदौ तौ हि नः || १ ||
इसका अर्थ है:
 "वे रघुकुल नायक भगवान राम और लक्ष्मण, मायामानव स्वरूप में, सदा धर्म के अभिवादनी और हितकारी हैं। वे सीता के पति होने के नाते सदा उसके खोज में रत रहते हैं और वे हमारे लिए भक्ति का प्रदाता हैं।"
इस श्लोक में गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान राम और लक्ष्मण के नाम में उनके साकार और निराकार स्वरूप, धर्म के प्रति समर्पण, सीता के प्रति प्रेम, और भक्ति की महत्वपूर्णता को बयान किया है।
ब्रह्माम्भोधिसमुद्भवं कलिमलप्रध्वंसनं चाव्ययं
श्रीमच्छम्भुमुखेन्दुसुन्दरवरे संशोभितं सर्वदा,
इसका अर्थ है: 
"जो कि ब्रह्मा के अम्भोधि से उत्पन्न हुआ है, कलिकाल के मल को नष्ट करने वाला और अविनाशी है, वह सदा ही श्रीमत् शम्भुमुख सूर्यसुंदर वर के द्वारा सम्पूर्ण विश्व को सजीवन करने वाला है।"
इस श्लोक में कालिदास ने श्रीमत् शम्भुमुख को ब्रह्मा के सृष्टि से उत्पन्न, कलिकाल के मल को नष्ट करने वाला, और सर्वदा सुन्दर रूप में सजीवन करने वाला परमेश्वर के रूप में स्तुति दी है।
संसारामयभेषजं सुखकरं श्रीजानकीजीवनं
धन्यास्ते कृतिनः पिबन्ति सततं श्रीरामनामामृतम ||२||
इसका अर्थ है: 
"रामनाम का अमृत संसार के रोग नाशक, सुखप्रद, श्रीराम की जानकी सीता के जीवन के समान है। धन्य हैं वे लोग जो सदा श्रीरामनाम का अमृत पीते हैं, क्योंकि वह सदैव सुखदायक है।"
इस श्लोक में गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान राम के नाम की महिमा को बयान किया है और उनके भक्तों को सदा उनके नाम का अमृत पीने की सिफारिश की है।

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