श्री सत्यनारायण कथा – प्रथम अध्याय

श्री सत्यनारायण संपूर्ण व्रत कथा

भूलश्वा ब्राह्मण कथा:

कथा का आरंभ भूलश्वा नामक एक ब्राह्मण के घर में हुआ। भूलश्वा ने अपनी अज्ञानी पत्नी को उदार होने के लिए निंदा की, और वह ब्राह्मणों के साथ एक साधुता की प्रतिष्ठा बनाने के लिए भगवान सत्यनारायण की पूजा करने का निर्णय लिया।

व्रत का आरंभ:

भूलश्वा ने श्रद्धापूर्वक भगवान सत्यनारायण की पूजा करना शुरू किया, और वहां आसन स्थापित करते समय, भगवान ने स्वयं ही प्रकट होकर अपने साथी देवी लक्ष्मी के साथ उनके समक्ष प्रकट हुए।

कथा की बातें:

धन की प्राप्ति: भगवान ने भूलश्वा को आत्मार्थी, श्रेष्ठ और धन्य बनाने के लिए विचारित किया।
सत्यनारायण कथा का महत्व: भगवान ने सत्यनारायण कथा का महत्व बताया और इसे बोलने वाले, सुनने वाले और सर्वस्थ रहने वाले को अनगिनत धन, सुख, और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

प्राप्ति और पूजन:

भूलश्वा ने ब्राह्मणों के साथ भगवान की पूजा की, और उन्हें विभिन्न भक्ति पाठों और भजनों के माध्यम से पूर्वोक्त गुणों का पालन करने का आदान-प्रदान किया। इसके परिणामस्वरूप, भूलश्वा ने अत्यन्त धन, सुख, और मोक्ष की प्राप्ति की।
इस प्रकार, श्री सत्यनारायण कथा प्रथम अध्याय में भूलश्वा ब्राह्मण के द्वारा भगवान की पूजा और कथा का आचरण करने का मार्गदर्शन करती है, जो श्रद्धालु भक्तों को धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष की प्राप्ति में सहारा प्रदान करती है।

श्री सत्यनारायण कथा – प्रथम अध्याय

एक समय की बात है नैषिरण्य तीर्थ में शौनिकादि, अठ्ठासी हजार ऋषियों ने श्री सूतजी से पूछा हे प्रभु! इस कलियुग में वेद विद्या रहित मनुष्यों को प्रभु भक्ति किस प्रकार मिल सकती है? तथा उनका उद्धार कैसे होगा? हे मुनि श्रेष्ठ ! कोई ऎसा तप बताइए जिससे थोड़े समय में ही पुण्य मिलें और मनवांछित फल भी मिल जाए। इस प्रकार की कथा सुनने की हम इच्छा रखते हैं। सर्व शास्त्रों के ज्ञाता सूत जी बोले: हे वैष्णवों में पूज्य ! आप सभी ने प्राणियों के हित की बात पूछी है इसलिए मैं एक ऎसे श्रेष्ठ व्रत को आप लोगों को बताऊँगा जिसे नारद जी ने लक्ष्मीनारायण जी से पूछा था और लक्ष्मीपति ने मनिश्रेष्ठ नारद जी से कहा था। आप सब इसे ध्यान से सुनिए –
एक समय की बात है, योगीराज नारद जी दूसरों के हित की इच्छा लिए अनेकों लोको में घूमते हुए मृत्युलोक में आ पहुंचे। यहाँ उन्होंने अनेक योनियों में जन्मे प्राय: सभी मनुष्यों को अपने कर्मों द्वारा अनेकों दुखों से पीड़ित देखा। उनका दुख देख नारद जी सोचने लगे कि कैसा यत्न किया जाए जिसके करने से निश्चित रुप से मानव के दुखों का अंत हो जाए। इसी विचार पर मनन करते हुए वह विष्णुलोक में गए। वहाँ वह देवों के ईश नारायण की स्तुति करने लगे जिनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म थे, गले में वरमाला पहने हुए थे।
स्तुति करते हुए नारद जी बोले: हे भगवान! आप अत्यंत शक्ति से संपन्न हैं, मन तथा वाणी भी आपको नहीं पा सकती हैं। आपका आदि, मध्य तथा अंत नहीं है। निर्गुण स्वरुप सृष्टि के कारण भक्तों के दुख को दूर करने वाले है, आपको मेरा नमस्कार है। नारद जी की स्तुति सुन विष्णु भगवान बोले: हे मुनिश्रेष्ठ! आपके मन में क्या बात है? आप किस काम के लिए पधारे हैं? उसे नि:संकोच कहो। इस पर नारद मुनि बोले कि मृत्युलोक में अनेक योनियों में जन्मे मनुष्य अपने कर्मों के द्वारा अनेको दुख से दुखी हो रहे हैं। हे नाथ! आप मुझ पर दया रखते हैं तो बताइए कि वो मनुष्य थोड़े प्रयास से ही अपने दुखों से कैसे छुटकारा पा सकते है।
श्रीहरि बोले: हे नारद! मनुष्यों की भलाई के लिए तुमने बहुत अच्छी बात पूछी है। जिसके करने से मनुष्य मोह से छूट जाता है, वह बात मैं कहता हूँ उसे सुनो। स्वर्ग लोक व मृत्युलोक दोनों में एक दुर्लभ उत्तम व्रत है जो पुण्य़ देने वाला है। आज प्रेमवश होकर मैं उसे तुमसे कहता हूँ। श्रीसत्यनारायण भगवान का यह व्रत अच्छी तरह विधानपूर्वक करके मनुष्य तुरंत ही यहाँ सुख भोग कर, मरने पर मोक्ष पाता है।
श्रीहरि के वचन सुन नारद जी बोले कि उस व्रत का फल क्या है? और उसका विधान क्या है? यह व्रत किसने किया था? इस व्रत को किस दिन करना चाहिए? सभी कुछ विस्तार से बताएँ। नारद की बात सुनकर श्रीहरि बोले: दुख व शोक को दूर करने वाला यह सभी स्थानों पर विजय दिलाने वाला है। मानव को भक्ति व श्रद्धा के साथ शाम को श्रीसत्यनारायण की पूजा धर्म परायण होकर ब्राह्मणों व बंधुओं के साथ करनी चाहिए। भक्ति भाव से ही नैवेद्य, केले का फल, घी, दूध और गेहूँ का आटा सवाया लें। गेहूँ के स्थान पर साठी का आटा, शक्कर तथा गुड़ लेकर व सभी भक्षण योग्य पदार्थो को मिलाकर भगवान का भोग लगाएँ।
ब्राह्मणों सहित बंधु-बाँधवों को भी भोजन कराएँ, उसके बाद स्वयं भोजन करें। भजन, कीर्तन के साथ भगवान की भक्ति में लीन हो जाएं। इस तरह से सत्य नारायण भगवान का यह व्रत करने पर मनुष्य की सारी इच्छाएँ निश्चित रुप से पूरी होती हैं। इस कलि काल अर्थात कलियुग में मृत्युलोक में मोक्ष का यही एक सरल उपाय बताया गया है।

॥ इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का प्रथम अध्याय संपूर्ण॥

श्रीमन्न नारायण-नारायण-नारायण।
भज मन नारायण-नारायण-नारायण।
श्री सत्यनारायण भगवान की जय॥

टिप्पणियाँ