उमा देवी का आदर। Respect for Uma Devi.
करहि जाइ तपु सैलकुमारी। नारद कहा सो सत्य बिचारी॥
मातु पितहि पुनि यह मत भावा। तपु सुखप्रद दुख दोष नसावा॥433
यह श्लोक तुलसीदास जी के "रामचरितमानस" से है, और इसका अर्थ है
"करहि जाइ" - करो जो"तपु" - तुम
"सैलकुमारी" - शैलकुमारी, पहाड़ों की रानी
"नारद" - संत नारद, हिंदू पौराणिक ग्रंथों में उल्लेखित संत
"कहा सो सत्य बिचारी" - वह जो कह रहा है, वह सत्य है
"मातु पितहि" - माता और पिता
"पुनि" - फिर भी
"यह मत भावा" - यह मत मानो
"तपु सुखप्रद दुख दोष नसावा" - तुम्हारी तपस्या से सुख प्राप्त होता है और दुःख और दोष दूर होते हैं।
इस श्लोक में संत नारद बता रहे हैं कि यदि आप पहाड़ों की रानी हैं, तो तुम्हें तपस्या करनी चाहिए। इससे सुख मिलता है और दुःख और दोष दूर होते हैं। वह कह रहे हैं कि माता-पिता को भूलकर यह मत मानना कि तपस्या का अर्थ यह है कि सिर्फ सुख ही प्राप्त होता है।
तपबल रचइ प्रपंच बिधाता। तपबल बिष्नु सकल जग त्राता॥
तपबल संभु करहिं संघारा। तपबल सेषु धरइ महिभारा॥434
यह श्लोक तुलसीदास जी के "रामचरितमानस" से है, और इसका अर्थ है:
"तपबल" - तपस्या के बल पर
"रचइ प्रपंच बिधाता" - सृष्टि को रचने वाला, विश्व का निर्माता
"बिष्नु सकल जग त्राता" - विष्णु ही सम्पूर्ण जगत् के रक्षक हैं
"संभु करहिं संघारा" - शिव तथा संभूति करते हैं (संघारा करते हैं, विनाश करते हैं)
"सेषु धरइ महिभारा" - सर्पों को उठाने वाले महाभारी शेष (विष्णु का एक अवतार)
इस श्लोक में कहा गया है कि तपस्या के बल पर ब्रह्मा सृष्टि की रचना करते हैं, विष्णु सम्पूर्ण जगत् को उद्धार करते हैं, शिव तथा संभूति करते हैं और शेष भगवान सर्पों को नियंत्रण करते हैं। यह स्तुति तपस्या की महत्ता को दर्शाती है और इसे ब्रह्मा, विष्णु, शिव और शेष के माध्यम से व्यक्त किया गया है।
यह श्लोक तुलसीदास जी के "रामचरितमानस" से है, और इसका अर्थ है:
"तपश्चर्या, सबकी उत्पत्ति का आधार है, हे भवानी! जो जीवन जीएं, वे तप करते हैं।
महत्ता से भरे हुए उनके वचनों को सुनकर, गिरिराज (हिमालय) ने अच्छूत भाव से सपने में हाक करके सुनाया।"
यह श्लोक तप की महत्ता और उसके माध्यम से आत्मा की पवित्रता को बताता है। गिरिराज ने इसे सुनकर अपने विशेष भाव से सपने में हाक करते हुए इस महत्त्वपूर्ण सिद्धांत की महिमा को सुनाई है।
यह श्लोक तुलसीदास जी के "रामचरितमानस" से है, और इसका अर्थ है:
"माता और पिताजी ने उमा को विभिन्न विधियों से सिखाया है। उमा ने उनकी उपदेशों का पालन करते हुए हर्ष से तपस्या की है।
प्रिय परिवार, माता-पिता का सम्मान करना है और उनके साथ भलाई के लिए काम करना है। इससे चेहरे पर बिकल चमक होती है और व्यक्ति की बातों में श्रद्धा उत्पन्न होती है॥"
यह श्लोक मातृ-पितृभक्ति, परिवार के साथ आदरपूर्वक व्यवहार करने, और उनके सिखाए गए नैतिकता के प्रति समर्पण की महत्ता को बताता है।
यह श्लोक तुलसीदास जी के "रामचरितमानस" से है और इसका अर्थ है:
"जब मुनि वेद का अर्थ सिखाने के लिए आए, तब सबको उनसे सिखाई गई।
पार्वती ने महिमा सुनते हुए प्रबोध स्वरूप ज्ञान प्राप्त किया॥"
इस श्लोक में मुनि वेदों के अर्थ को सिखाने के लिए आते हैं और उनसे जब पार्वती ने भगवान की महिमा का सुनना शुरू किया, तो उन्हें ज्ञान में प्रबोध हुआ। यह श्लोक ज्ञान की महत्ता और श्रद्धांजलि को बताता है।
"रचइ प्रपंच बिधाता" - सृष्टि को रचने वाला, विश्व का निर्माता
"बिष्नु सकल जग त्राता" - विष्णु ही सम्पूर्ण जगत् के रक्षक हैं
"संभु करहिं संघारा" - शिव तथा संभूति करते हैं (संघारा करते हैं, विनाश करते हैं)
"सेषु धरइ महिभारा" - सर्पों को उठाने वाले महाभारी शेष (विष्णु का एक अवतार)
इस श्लोक में कहा गया है कि तपस्या के बल पर ब्रह्मा सृष्टि की रचना करते हैं, विष्णु सम्पूर्ण जगत् को उद्धार करते हैं, शिव तथा संभूति करते हैं और शेष भगवान सर्पों को नियंत्रण करते हैं। यह स्तुति तपस्या की महत्ता को दर्शाती है और इसे ब्रह्मा, विष्णु, शिव और शेष के माध्यम से व्यक्त किया गया है।
तप अधार सब सृष्टि भवानी। करहि जाइ तपु अस जियँ जानी॥
सुनत बचन बिसमित महतारी। सपन सुनायउ गिरिहि हँकारी॥435
"तपश्चर्या, सबकी उत्पत्ति का आधार है, हे भवानी! जो जीवन जीएं, वे तप करते हैं।
महत्ता से भरे हुए उनके वचनों को सुनकर, गिरिराज (हिमालय) ने अच्छूत भाव से सपने में हाक करके सुनाया।"
यह श्लोक तप की महत्ता और उसके माध्यम से आत्मा की पवित्रता को बताता है। गिरिराज ने इसे सुनकर अपने विशेष भाव से सपने में हाक करते हुए इस महत्त्वपूर्ण सिद्धांत की महिमा को सुनाई है।
मातु पितुहि बहुबिधि समुझाई। चलीं उमा तप हित हरषाई॥
प्रिय परिवार पिता अरु माता। भए बिकल मुख आव न बाता॥436
"माता और पिताजी ने उमा को विभिन्न विधियों से सिखाया है। उमा ने उनकी उपदेशों का पालन करते हुए हर्ष से तपस्या की है।
प्रिय परिवार, माता-पिता का सम्मान करना है और उनके साथ भलाई के लिए काम करना है। इससे चेहरे पर बिकल चमक होती है और व्यक्ति की बातों में श्रद्धा उत्पन्न होती है॥"
यह श्लोक मातृ-पितृभक्ति, परिवार के साथ आदरपूर्वक व्यवहार करने, और उनके सिखाए गए नैतिकता के प्रति समर्पण की महत्ता को बताता है।
बेदसिरा मुनि आइ तब सबहि कहा समुझाइ॥
पारबती महिमा सुनत रहे प्रबोधहि पाइ॥437
"जब मुनि वेद का अर्थ सिखाने के लिए आए, तब सबको उनसे सिखाई गई।
पार्वती ने महिमा सुनते हुए प्रबोध स्वरूप ज्ञान प्राप्त किया॥"
इस श्लोक में मुनि वेदों के अर्थ को सिखाने के लिए आते हैं और उनसे जब पार्वती ने भगवान की महिमा का सुनना शुरू किया, तो उन्हें ज्ञान में प्रबोध हुआ। यह श्लोक ज्ञान की महत्ता और श्रद्धांजलि को बताता है।
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