कबीर दास 'Kabir Das,के 5 दोहे अर्थ सहित प्रसिद्ध दोहे ,5 famous couplets of Kabir Das with meaning

कबीर दास के 5 दोहे अर्थ सहित प्रसिद्ध दोहे

कबीर कैसे संत थे?

इनकी रचनाओं और गंभीर विचारों ने भक्तिकाल आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया था। इसके साथ ही उन्होंने उस समय समाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की। संत कबीर दास की रचनाओं के कुछ अंश सिक्खों के “आदि ग्रंथ” में भी सम्मिलित किए गए हैं।

दोहे
तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय।
सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होए।
अर्थ सहित व्याख्या: 
कबीर दास जी कहते हैं कि लोग रोजाना अपने शरीर को साफ़ करते हैं लेकिन मन को कोई साफ़ नहीं करता। जो इंसान अपने मन को भी साफ़ करता है वही सच्चा इंसान कहलाने लायक है।
दोहे
प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए।
राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए।
अर्थ सहित व्याख्या: 
कबीर दास जी कहते हैं कि प्रेम कहीं खेतों में नहीं उगता और नाही प्रेम कहीं बाजार में बिकता है। जिसको प्रेम चाहिए उसे अपना शीशक्रोध, काम, इच्छा, भय त्यागना होगा।
दोहे 
जिन घर साधू न पुजिये, घर की सेवा नाही।
ते घर मरघट जानिए, भुत बसे तिन माही।
अर्थ सहित व्याख्या: 
कबीर दास जी कहते हैं कि जिस घर में साधु और सत्य की पूजा नहीं होती, उस घर में पाप बसता है। ऐसा घर तो मरघट के समान है जहाँ दिन में ही भूत प्रेत बसते हैं।
दोहे 
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय।
अर्थ सहित व्याख्या: 
कबीर दास जी कहते हैं कि एक सज्जन पुरुष में सूप जैसा गुण होना चाहिए। जैसे सूप में अनाज के दानों को अलग कर दिया जाता है वैसे ही सज्जन पुरुष को अनावश्यक चीज़ों को छोड़कर केवल अच्छी बातें ही ग्रहण करनी चाहिए।
दोहे 
पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत।
अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत।
अर्थ सहित व्याख्या:
कबीर दास जी कहते हैं कि बीता समय निकल गया, आपने ना ही कोई परोपकार किया और नाही ईश्वर का ध्यान किया। अब पछताने से क्या होता है, जब चिड़िया चुग गयी खेत।

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