होलिका दहन की पूजा विधि और होलीका दहन कब करें,Holika Dahan Kee Pooja Vidhi Aur Kab Karen Holika Dahan

होलिका दहन की पूजा विधि और होलीका दहन कब करें

होलिका दहन के लिए वसंत पंचमी के दिन से ही सूखी लकड़ियां, उप्पलें, सूखी घास आदि एकत्र किए जाते हैं. मान्यता के अनुसार, पूजन सामग्री के साथ होलिका के पास गोबर से बनी ढाल भी रखी जाती है.

क्या होता है होलिका दहन में

होलिका दहन के दिन जो भी पूजा होती है उसे शुभ महूर्त में किया जाता है। इस बार होलिका भद्रा लगी हुई है यानि कि इस बार होलिका दहन रात 9 बजे के बाद किया जाएगा। होलिका दहन से पहले कई तरह के नियम होते हैं जो पूजा से पहले ध्यान रखना आवश्यक है।
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कब करें होली का दहन ?

हिन्दू धर्मग्रंथों एवं रीतियों के अनुसार होलिका दहन पूर्णमासी तिथि में प्रदोष काल के दौरान करना बताया है। भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि, होलिका दहन के लिये उत्तम मानी जाती है। यदि ऐसा योग नहीं बैठ रहा हो तो भद्रा समाप्त होने पर होलिका दहन किया जा सकता है। यदि भद्रा मध्य रात्रि तक हो तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूंछ के दौरान होलिका दहन करने का विधान है। लेकिन भद्रा मुख में किसी भी सूरत में होलिका दहन नहीं किया जाता। धर्मसिंधु में भी इस मान्यता का समर्थन किया गया है।
शास्त्रों के अनुसार भद्रा मुख में होली दहन से न केवल दहन करने वाले का अहित होता है बल्कि यह पूरे गांव, शहर और देशवासियों के लिये भी अनिष्टकारी होता है। विशेष परिस्थितियों में यदि प्रदोष और भद्रा पूंछ दोनों में ही होलिका दहन संभव न हो तो प्रदोष के पश्चात होलिका दहन करना चाहिये। यदि भद्रा पूँछ प्रदोष से पहले और मध्य रात्रि के पश्चात व्याप्त हो तो उसे होलिका दहन के लिये नहीं लिया जा सकता क्योंकि होलिका दहन का मुहूर्त सूर्यास्त और मध्य रात्रि के बीच ही निर्धारित किया जाता है।

होलिका दहन की पूजा

वर्ष 2024 में होलिका दहन (Holika Dahan) का पर्व 24 मार्च को मनाया जा रहा है और 25 मार्च को होली यानी धुलेंडी पर्व मनाया जाएगा। इस संबंध में मान्यता के अनुसार पूजन सामग्री के साथ होलिका के पास गोबर से बनी ढाल भी रखी जाती है। होलिका दहन के शुभ मुहूर्त के समय 4 मालाएं अलग से रख ली जाती हैं। इसमें एक माला पितरों के नाम की, दूसरी श्री हनुमान जी के लिए, तीसरी शीतला माता और चौथी घर परिवार के नाम की रखी जाती है। इसके पश्चात पूरी श्रद्धा से होली के चारों और परिक्रमा करते हुए सूत के धागे को लपेटा जाता है। होलिका की परिक्रमा 3 या 7 बार की जाती है। इसके बाद शुद्ध जल सहित अन्य पूजा सामग्रियों को एक-एक कर होलिका को अर्पित किया जाता है। फिर अग्नि प्रज्वलित करने से पूर्व जल से अर्घ्य दिया जाता है। होलिका दहन के समय मौजूद सभी पुरुषों को रोली का तिलक लगाया जाता है।
कहते हैं, होलिका दहन के बाद जली हुई राख को अगले दिन प्रात:काल घर में लाना शुभ रहता है। अनेक स्थानों पर होलिका की भस्म का शरीर पर लेप भी किया जाता है। इस होली पर कैसे करें पूजा और क्या-क्या सामग्री एकत्रित करें, जानिए यहां  हम आपको बताते हैं होलिका दहन के पूजन की सबसे सरल और प्रामाणिक विधि और पूजन सामग्री की सूची-  प्रहलाद की प्रतिमा, गोबर से बनी होलिका,5 या 7 प्रकार के अनाज (जैसे नए गेहूं और अन्य फसलों की बालियां या सप्तधान्य- गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर )1 माला, और 4 मालाएं (अलग से) रोली,फूल, कच्चा सूत, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, मीठे पकवान,मिठाइयां, फल, गोबर की ढाल बड़ी फुलौरी, एक कलश जल,

होलिका दहन की पूजा विधि

  • सबसे पहले होलिका पूजन के लिए पूर्व या उत्तर की ओर अपना मुख करके बैठें।
  • अब अपने आस-पास पानी की बूंदें छिड़कें।
  • होलिका दहन के लिए इकट्ठा की गई लकड़ियों को कच्चे सूत से तीन या सात बार लपेटें।
  • इसके बाद उस पर गंगाजल या शुद्ध पानी, फूल और कुमकुम छिड़ककर पूजा करें।
  • पूजा के लिए माला, रोली, अक्षत, बताशे-गुड़, साबुत हल्दी, गुलाल, नारियल, साबुत मूंग, छोटे-छोटे उपलों की माला, गेंहू की बालियां और पानी से भरा पात्र रखें।
  • 'असृक्पाभयसंत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै:। अतस्त्वां पूजायिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव।।' का उच्चारण करते हुए होलिका की सात परिक्रमा करें ।
  • पूजा करते समय होलिका के पास पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए.
  • होलिका दहन होने के बाद परिक्रमा करना न भूलें ।
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