नवदुर्गा पूजा - प्रथमं दिन पूजा शैलपुत्री !
नवदुर्गा पूजा - प्रथमं शैलपुत्री ! Navdurga Puja - Pratham Shailputri !
महामाया जगज्जननी पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में उत्पन्न होने से देवी जगदम्बा 'शैलपुत्री' कहलाई। शैलपुत्री आद्यशक्ति तत्त्वातीत होते हुए भी सर्वतत्त्वमयी और प्रपञ्चरूपा हैं। वह नित्या, परमानन्द स्वरूपिणी तथा चराचर जगत् की बीज स्वरूपा हैं। यह प्रकाशात्मक शिव के स्वरूप ज्ञान की उद्बोधक दर्पण स्वरूप हैं। अहं ज्ञान ही शिव का स्वरूप ज्ञान है। आद्यशक्ति का आश्रय लिये बिना इसका आत्मज्ञान नहीं होता। आत्मशक्ति का दर्शन एवं आत्मस्वरूप की उपलब्धि और आस्वादन एक ही वस्तु है। वस्तु का सामीप्य सम्बंध न होने पर जैसे दर्पण प्रतिबिम्ब को ग्रहण नहीं कर सकता अथवा वस्तु का सानिध्य होने पर भी प्रकाश के अभाव से दर्पण में स्थित प्रतिविम्ब जैसे प्रतिबिम्ब रूप में नहीं भासता, उसी प्रकार शैलपुत्री भी प्रकाशरूप परम शिव के सानिध्य के बिना अपने अन्तः स्थित विश्वप्रपंच को प्रकटित करने में समर्थ नहीं होती। अतः शैलपुत्री के इस व्रत में भगवान सदाशिव का भी ध्यान किया जाता है।
Navdurga Puja - Worship Shailputri on the first day ! |
भगवती शैलपुत्री का वाहन वृषभ (बैल) है। उसके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल का पुष्प है। इस स्वरूप का नवरात्र के प्रथम दिन पूजन किया जाता है। दृढ़ संकल्प शक्ति के कारण ही अपनी तपस्या से शैलपुत्री ने प्राणनाथ रूप में सदाशिव को वरण किया था। यही कारण है शैलपुत्री की आराधना से इच्छाशक्ति में दृढ़ता का आविर्भाव होता है। प्राणी अपने लक्ष्य को निश्चित रूप से प्राप्त करता है। यहां यह भी स्मरणीय है कि इच्छाशक्ति की दृढ़ता में अहंकार का मिश्रण कदापि नहीं होना चाहिए।
नवदुर्गा पूजा - प्रथमं माँ भगवती शैलपुत्री ! मुख्य रूप से तीन उपचार स्वरूपों में पूजा की जाती है
[1- में पञ्चोपचार विधि-] प्रथम माता - देवी शैलपुत्री
- गंध,
- धूप,
- दीप,
- पुष्प,
- नैवेद्य।
(इस उपचार विधि का प्रयोग विशेष परिस्थिति; जैसे-यात्रा समय, प्रवास, निर्धनता में सामान्य रूप में किया जाता है।)
[2- में दसोपचार विधि-] प्रथम माता - देवी शैलपुत्री
- पाय,
- अर्घ्य,
- आचमन,
- पुष्प,
- धूप,
- दीप,
- नैवेद्य
- स्नान,
- वस्त्र निवेदन,
- गन्ध, !
[3- में सोलहोपचार विधि-] प्रथम माता - देवी शैलपुत्री
- पाय,
- अर्घ्य,
- आचमन,
- स्नान,
- वस्त्र,
- आभूषण,
- गन्ध,
- पुष्य,
- धूप,
- दीप,
- नैवेद्य,
- आचमन,
- ताम्बूल,
- स्तवपाठ,
- तर्पण,
- नमस्कार।
[पूजा सामग्री रखने के स्थान] प्रथम माता - देवी शैलपुत्री
- बायीं ओर
- सुवासित (गुलाब्र या कमल सुगंध से युक्त) जल से भरा जल-पात्र;
- घंटा,
- धूपबत्ती या अगरबत्ती,
- तेल (तिल का) का दीपक बायीं ओर रखें।
[ दायीं ओर ]प्रथम माता - देवी शैलपुत्री-
- घी का दीपक,
- सुवासित जल से भरा शंख नारियल की कटोरी। दूसरा अन्य पात्र।
सामने-
- कुमकुम (केशर) और कपूर के साथ पिसा गाढ़ा चंदन।
- पुष्प आदि अन्य सामान। (चंदन को ताम्रपात्र में न रखें)।
देवी शैलपुत्री पूजा-विधान [प्रथम माता]
शैलपुत्री का ध्यान व पूजनं पूर्व दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए। ऐसे साधक या साधिका जो नवरात्र के प्रथम व अंतिम दिन ही उपवास करते हैं उन्हें इस दिशा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। अपने बालों पर जल लगाकर या जल से धोकर शिखा बंधन करके ही बैठना चाहिए। तत्पश्चात् निम्न मंत्र से तीन बार आचमन करें।
मंत्र से तीन बारआचमन-
- ॐ गणेशाम्बिकाभ्यां नमः ॥
- ॐ शैलसुतायै नमः॥
- ॐ शैलपुत्र्यै नमः ॥
आचमन करने के बाद प्रथम घी का दीपक जलायें। पुनः तेल का दीपक जलायें। जिस लकड़ी या तीली से घी का दीपक जलाया है उससे तेल का दीपक न जलाएं।
देवी शैलपुत्री आंवाहन
माँ शैलपुत्री को निमंत्रित करना आवाहन है। हाथ में पुष्प लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करें, फिर उस पुष्प को देवी के चरणों में अर्पित करें-
- शैलपुत्री माँ भवानी आइये स्थिर रहो। ।
- जबतलक पूजा करूं माँ तबतलक सन्निध रहो।।
- श्री जगदम्बायै शैलपुत्र्यै नमः।
शैलपुत्रीम् आवाहयामि पुष्पांजलिं समर्पयामि। (पुष्प अर्पित करें।)
[आसन]-लाल वस्त्र को चौकी पर बिछाकर चावल से चंद्राकार आकृति बनाकर माता के बैठने के लिए आवाहित करें।
- नाना मणियों रत्नों से युत्त यह दिव्य स्वर्णमय आसन है।
- ग्रहण करो हे जगदम्बे बिन तेरे को दुःख नाशन है।
लाल कपड़े पर जहां चंद्राकार आकृति बनाई है उस पर माता शैलपुत्री को स्थापित करें। निम्न मंत्रों से चार बार पाद्य, अर्घ्य आचमन तथा स्नान हेतु जल दें।
- ॐ शैलपुत्र्यै नमः। पाद्यं समर्पयामि। (दोनों पैरों पर जल चढ़ायें।)
- ॐ शैलसुतायै नमः । अर्घ्य समर्पयामि। (दोनों हाथों को जल से धुलायें ।)
- ॐ हिमात्मजायै नमः। आचमनं समर्पयामि। (जल को अपनी अंजली में रखकर देवी के मुख से स्पर्श करें, पुनः हाथ धो लें।)
- ॐ सत्यै नमः। स्नानं समर्पयामि। (इस मंत्र से देवी को सुगंधित जल से स्नान करायें।)
[ पंचामृत स्नान ] -दूध, दही, घी, बूरा और शहद-इन-पांच वस्तुओं से बने पंचामृत से देवी को निम्न मंत्र द्वारा पंचामृत स्नान करायें-
- दूध दही घृत और मधु शर्करा मिलाकर लाया हूं।
- स्नान करो पंचामृत से भय दूर रहें हरषाया हूं।॥
- [ आलोक ]-दूध की आधी मात्रा में दही, वही का आंधा बूरा, बूरा का आधा घी तथा घीं के बराबर शहद डालना ही पंचामृत है.।
- [ शुद्धोदक स्नान ]-पंचामृत स्नान के बाद जल से स्नान कराना शुद्धोतक स्नान है। शुद्धोदक जल में गुलाब की पंखुरी या गुलाब जल डाल देना चाहिए।
- [ वस्त्र-]जल द्वारा अभिमंत्रित कर वस्त्रों को अपने दाहिने हाथ में रखकर निम्न मंत्र पढ़ें-
मंत्र -
- हे दुःखनाशिनी शैलजा ! कृपा करो पट धारो।
- यह कञ्चुक पट युग्म समर्पित भवसागर से तारो॥
श्री जगदम्बायै शैलपुत्र्यै नमः। वस्त्रोपवस्त्रं कञ्चुकीयं च समर्पयामि ॥
[वस्त्र या पांच कलावा सूत्र अर्पित करें, पुनः आचमन करायें।] सौभाग्य सूत्र-अपने हाथ में कलावा लेकर उसको हार का रूप दें। उस पर जल से अभिमंत्रण निम्न प्रकार से करें-
- स्वर्ण मणी से युक्त सूत्र सौभाग्य गले में धारो।
- भाग्यवान हों भक्त तुम्हारे सबको शीघ्र उबारो॥
- कण्ठे बध्नामि देवेशि सौभाग्यं देहि मे सर्वदा ॥
[ चन्दन ]-शैलपुत्री को सफेद चंदन अति प्रिय है, अतः सफेद चंदन का प्रयोग करें अथवा लाल चंदन में कपूर डालकर इस मंत्र को बोलें-
- यह चन्दन श्रीखण्ड दिव्य सुरक्षित मन को हरने वाला।
- हे शैलसुते तुझको अर्पित सुन्दर तन पे रहने वाला ॥
श्री जगदम्बायै शैलपुत्र्यै नमः। विलेपनार्थं चन्दनं समर्पयामि। [देवी के मस्तक पर चंदन लगाएं। महिलाएं माँ की भुजाओं, हृदयादि प्र भी श्वेत चंदन लगा सकती हैं।]
[ हरिद्रा चूर्ण- ] हल्दी-चूर्ण का प्रयोग सौभाग्यवती स्त्रियां ही करें] निम्न मंत्र से हरिद्रा को जल में डालकर गाढ़ा लेप बनाएं।
- सुख सौभाग्य प्रदायक यह हल्दी तुझे समर्पित है
- सुख-शान्ति प्रदान करो अम्बे। यह मन मेरा अति हर्षित है।
श्री जगदम्बायै शैलपुत्र्यै नमः। हरिद्रां समर्पयामि। हल्दी का लेप करके हाथ जोड़ें।
[ कुमकुम-] हाथ में रोली लेकर निम्न मंत्र से मस्तक पर लगायें-
- सकल कामनादायक है।
- यह कुमकुम सदा सहायक है।
- यह कुमकुम तुझे समार्पित है
- तन मन धन मेरा अर्पित है॥.
श्री जगदम्बायै शैलपुत्र्यै नमः। कुंकुमं समर्पयामि। इस मंत्र से रोली या बिंदी लगायें।
- सिन्दूर- भक्ति भाव से हे शैलेश्वरि सिन्दूर तुम्हें चढ़ाता हूं।
- स्वीकार करो वर दो माते यह सुन्दर गीत सुनाता हूं।
श्री जगदम्बायै शैलपुत्र्यै नमः। सिन्दूरं समर्पयामि। [ जगज्जननी शैलपुत्री की मांग में चांदी या सोने की सलाई में सिंदूर लगायें। इसके अभाव में विल्वपत्र की दण्डी से माँ को सिंदूर लगायें ।
[ कज्जल (काजल ] -
- कर्पूर ज्योति से बना दिव्य यह काजल तुम्हें लगाता हूं।
- ग्रहण करो श्री नेत्रों में माँ ! जीवन का फल पाता हूं।।
श्री जगदम्बायै शैलपुत्र्यै नमः। कज्जलं समर्पयामि। [ माँ की आंखों में चांदी या सोने की सलाई से काजल लगायें। अथवा अपने दाहिने हाथ की मध्यमा से दाहिनी तथा अनामिका से बायीं आंख में काजल लगायें। ]
[ दूर्वाकुर ]-
- तुणकान्त मणिसुन्दर पूर्वा से पूजा करूँ तुम्हारी ।
- चरणों में तेरे अर्पित है माँ रखो लाज हमारी॥
श्री जगदम्बायै शैलपुत्र्यै नमः। दूर्वांकुरान् समर्पयामि ॥
शैलपुत्री को कुछ विद्वान दूर्वा चढ़ाना निषेध करते हैं। अतः दूर्वा को माँ के चरणों में चढ़ायें। विल्वपत्र- त्रिदल जहाँ गुण तीन नेत्र त्रय आयुष तीन जहां है।
तीन जन्म के पाप कटे जो दूर, पत्र यहाँ है। श्री जगदम्बायै शैलपुत्र्यै नमः। विल्वपत्रं समर्पयामि। शैलपुत्री को विल्वपत्र अति प्रिय है। अतः विल्वपत्र का त्रिदल माँ शैलपुत्री को अर्पित करें। विल्वपत्र की मात्रा 5, 11 या 21 आदि होनी चाहिए। कटा, फटा तथा कीट द्वारा काटा गया विल्वपत्र न चढ़ायें। विल्वपत्र एक बार चढ़ा देने पर भी खराब नहीं होता अतः उन्हें उतारकर जल से धोकर बार-बार चढ़ाया जा सकता है।
[ विल्वपत्र विशेष- ] उपरोक्त मंत्र से शिव तथा शैलपुत्री के समक्ष विभिन्न प्रयोगों द्वारा विल्वपत्र अर्पण करने से विभिन्न कार्यों का लाभ प्राप्त होता है। यहां कुछ ज्वलंत विषयों पर विल्वपत्र चढ़ाने का उपाय दिया जा रहा है। यहां स्मरण रहे विल्वपत्र तोड़ते समय विल्वपत्र के पत्ते की डंडी का वह भाग जो तने से लगा होता है उसे अलग करके ही विल्वपत्र दल चढ़ाना चाहिए। विल्वपत्र चढ़ाने का समय सूर्योदय तथा सूर्यास्त सर्वश्रेष्ठ है। सर्वार्थसिद्धि प्राप्त करने के लिये मंत्र-सर्वप्रथम पांच, सात अथवा ग्यारह विल्वपत्र निम्न मंत्र से शिवा और शिव को अर्पण करें-
मंत्र-
- त्रिदल त्रिगुणाकारं त्रिनेत्र च त्रिधायुतम्।
- त्रिजन्मपाप संहारं विल्वपत्रं शिवार्पणम्॥
- ॐ शं शैलपुत्र्यै नमः। विल्वपत्रं समर्पयामि ॥
उसके बाद ॐ शं शैलपुत्र्यै नमः। विल्वपत्रं समर्पयामि मंत्र से पंचामृत - में भिगोते हुए 1, 008 विल्वपत्र शिवा और शिव को समर्पित करना चाहिए। शेष बचे पञ्चामृत को हाथ में रखकर ही ग्रहण करना चाहिए। पंचामृत चांदी, मिट्टी अथवा चीनी के बर्तन में ही रखना चाहिए। पंचामृत केवल बछड़े वाली गाय का दूध, दही, गोघृत, गुड़ या शक्कर, शहद का बनायें।
ज्वर निवारण के लिए मंत्र-सर्वप्रथम नीम के पेड़ से प्राप्त शहद से बारह विल्वपत्रों, पर 'श' शब्द तीनों पत्तों पर लिखें तथा निम्न मंत्र से शैलपुत्री को अर्पण करें-
- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं शं शैलपुत्र्यै ज्वरं कीलय-कीलय शौर्यवपुं प्रदाय-प्रदाय
- ॐ शं श्रीं ह्रीं ऐं ॐ। शैलपुत्र्यै नमः। विल्वपत्रं समर्पयामि ॥
[ इसके बाद-]'ॐ ऐं ह्रीं ह्रीं शं शैलपुत्र्यै नमः' इस मंत्र से गोदूध से भगवती को 2001 तुलसी दल भिगोकर अर्पित करें। यदि रोग अत्यंत पुराना हो गया हो तो कृष्णा तुलसी का. प्रयोग करना चाहिए। उसके बाद शेष बचे दूध में शहद मिलाकर रोगी को पिला दें।
वर-प्राप्ति हेतु मंत्र-जिस कन्या का विवाह न हो रहा हो अथवा विवाह में किसी भी प्रकार की अड़चन आ रही हो ऐसी कन्या को अनार की डंडी की कलम. बनाकर सौभाग्य सिंदूर को गंगाजल में घोलकर अपनी इच्छा के अनुरूप वर के गुण आदि को लिखकर पहले इस मंत्र की ग्यारह (एक सौ आठ वाली) तुलसी माला से जप करें, फिर शैलपुत्री को अर्पण कर दें। जप करते समय लिखा प्रपत्र अपनी जंघा या हृदय पर धारण करें। मंत्र अग्र प्रकार है-
- मज्जनु करि सिय सखिहिं समेता।
- गई मुदित मन गौरी निकेता॥
- पूजा कीन्ह अधिक अनुरागा।
- निज अनुरूप सुभग वरू मांगा ॥
इस जप के करने से शीघ्र ही कन्या अपने घर चली जाती है। विवाह के उपरान्त इस प्रपत्र को केवल जीवन साथी के साथ गंगा में विसर्जित कर देना चाहिए। इस कार्य में अधिक विलम्ब न करें।
[ पुष्पमाला - ]
- अति सुगंधित मालती की माल गले पहनाऊं।
- अपने ही द्वारे लाये इन पुष्पों को तुम्हें चढ़ाऊं।।
इस मंत्र से पुष्प और पुष्पमाला चढ़ाएं। यद्यपि भगवती को अनेक पुष्प चढ़ाये जाते हैं तथापि कुछ पुष्प चढ़ाने से तात्कालिक कष्टों का निवारण होता है। पुष्प चढ़ाते समय सर्वप्रथम राशि के अनुसार दिए गए मंत्र से विषम संख्या (5, 7, 9, 11 आदि) में पुष्प अर्पित करें, उसके बाद शेष बचे तथा अन्य दूसरे पुष्पों को चढ़ाने से धन, ऐश्वर्य तथा सौभाग्य मिलता है।
[ राशि] - [ मंत्र ] [ विहित श्रेष्ठ पुष्प, पत्र या छाल ]
मेष - ॐ शं शैलपुत्र्यै नमः -तिन्तिणी, मौलसिरी, बेला, अनार ।
वृष - ॐ ह्रीं गिरिजायै नमः -कैच, कपास, धव, केतकी।
मिथुन - ॐ क्लीं जूँ पं पूर्णायै नमः -गंभारी, कनेर, पत्रकंटक, गुलाव ।
कर्क -ॐ अं, हं, सं सौं सावित्र्यै नमः -केवड़ा, कदम्ब, कनेर, बेलपत्थर।
सिंह - ॐ शं शैलपुत्र्यै नमः - शिरीष, गाजर, कपास, कमल।
कन्या -ॐ कलीं जूँ पं पूर्णायै नमः -कुंद, बेलपत्थर, गुलाब, मदार।
तुला - ॐ ह्रीं गिरिजायै नमः -दोपहरिया, भटकैया, चमेली शंखपुष्पी ।
वृश्चिक - ॐ ह्रीं श्रीं श्रीं ॐ नमः -सेमल, केतकी, शल्लकी, माधवी।
धनु - ॐ बृं श्री ब्रीं ॐ नमः - जूही, अशोक, शमी, मदार, चमेली।
मकर -श्री शं ह्रीं ॐ कामरूपण्यै नमः -सर्ज, कमल, तुलसी, आक।
कुम्भ - श्री ऐं ही क्लीं दुर्गायै नमः - मदन्ती, विल्वपत्र, मदार, शंखपुष्पी ।
मौन - ॐ शिवांग्ये नमः - शिरीष, कमल, तुलसी, चमेली।
[ आभूषण- ]-
- हार मेखला कंकण केपूर कुण्डल आदि हैं।
- हीरों से जड़ा रत्न भूषण लेकर हरती भव व्याधि है॥
इस मंत्र का उच्चारण करते हुए स्त्री जिस-जिस क्रम में स्वयं आभूषण धारण करती है उस उस क्रम में आभूषण माँ शैलपुत्री को समर्पित करें। यदि न कर सकें तो मंत्र के अंत में 'ॐ जगदम्बायै शैलपुत्र्यै नमः। आभूषणं मनसा समर्पयामि।' इस मंत्र को बोलकर चंदन से देवी के उस-उस अंग का स्पर्श करें।
[ नाना परिमल द्रव्य- ]
- अबीर गुलाल हरिद्रा से है युक्त द्रव्य नाना परिमल।
- ग्रहण करो माँ शैलसुता मारो अन्तर के घल दल बल ॥
श्री जगदम्बायै शैलपुत्र्यै नमः। नाना परिमलद्रव्याणि समर्पयामि ॥ इस मंत्र से अबीर, गुलाल, हल्दी-चूर्ण, भुड़भुड़ चढ़ायें।
[ सौभाग्यपेटिका- ]
- हल्दी कुंकुम सिन्दूर भरी सौभाग्य पेटिका लो माता आदिशक्ति हैं
- जगदम्बे तुम बिन जग में को फलदाता॥
श्री जगदम्बायै शैलपुत्र्यै नमः। सौभाग्यपेटिकां समर्पयामि। - इस मंत्र से सौभाग्यवती स्त्री को जो श्रृंगार वस्तु होती हैं वे सभी स्वेच्छा से शैलपुत्री को अर्पित करनी चाहिएं।
- धूपबत्ती-भगवती शैलपुत्री को अपने दाहिने हाथ को बायीं ओर ले जाकर पुनः ऊपर की ओर ले जाते हुए वृत्त क्रम में धूपबत्ती को घुमाना चाहिए घुमाते समय एक बार मुख पर, तीन बार मस्तक पर, तीन बार हृदय पर, चार बार चरणों की ओर घुमाकर पुनः पांच या सात बार सम्पूर्ण प्रतिमा के चारों ओर घुमाएं, उसे माँ के बायीं ओर स्थापित करना चाहिए।
- दीपक-एक विल्वपत्र को नीचे की ओर पलटकर रखें। पत्र रखते समय विल्वपत्र की डंडी को अपने अंगूठे तथा अनामिका अंगुली से पकड़कर रखना चाहिए। पहले दीपक को जलायें। फिर कुछ चावल पुष्प विल्वपत्र पर रखें तब जलते दीपक को विल्वपत्र पर स्थापित करें। दीपक जलाने के बाद हाथ धो लेना चाहिए।
- धूप-गाय के गोबर से बने उपले को जलाकर माँ भगवती का ध्यान करके, घी में लोंग का जोड़ा चढ़ाना चाहिए। लोंग के जोड़े नैष्टिक ब्रह्मचारी को पांच, ब्रह्मचारी को एक तथा गृहस्थी को दो-दो चढ़ाने चाहिएं। लौंग को चढ़ाते समय ॐ शं शैलपुत्र्यै नमः का उच्चारण करना चाहिए। पुनः इसी मंत्र से माँ भगवती को ऋतुफल अर्पण करना चाहिए। शैलपुत्री को अकेला फल या केवल केले नहीं चढ़ाने चाहिएं। दो फल या अधिकं से भोग देना चाहिए।
[ नैवेद्य- ] -
- दूध, दही, घी, शक्कर से तैयार तुम्हारा भोजन है
- आहार स्वीकार करो देवी ए तरसत मेरे लोचन हैं।
इस मंत्र से तुलसीदल सहित नैवेद्य अर्पण करें।
[ ताम्बूल- ]-
- नागबल्ली से भरा यह महादिव्य पुंगीफल है।
- लवंग इलायची भी इसमें ताम्बूल समर्पित शुभ पल है।
श्री जगदम्बायै शैलपुत्र्यै नमः। ताम्बूलं समर्पयामि। इस मंत्र से इलायची, लोंग, सुपारी तथा जायफल के साथ पान निवेदन करें।
[ ध्यान- ]
हाथ में सफेद या राशि में दिए किसी एक पुष्प को लेकर माँ भगवती शैलसुता का निम्न मंत्र से ध्यान करें-
- वन्देवाच्छितलाभाया चन्द्रर्घकृतशेखराम्। वृषारूढ़ां शूलपरां शैलपुत्री यशस्विनीम्॥
- पूणेन्दू निभां गौरी मूलाधारं स्थितां प्रणम दुर्गा त्रिनेत्रा । पटाम्बर परिधानां रत्नकिरीटा नानालंकार भूषिता ॥
- प्रफुल्ल वदनां पल्लवाधरां कातंकपोलां तुब कुचाम। कमनीयां लावण्यां स्मेरमूखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्॥
[ कवच-] पीली सरसों लेकर अपने चारों ओर डालते हुए इस मंत्र को बोलें-
- ओमकारः मे शिरः पातु मूलाधार निवासिनी। हींकारः पातु ललाटे बीजरूपा महोश्वरी॥
- श्रीकारः पातु बदने लज्जारूपा महेश्वरी । हंकारः पातु हृदये तारिणी शक्ति स्वघृता॥
- फट्कार पातु स्र्वांगे सर्वसिद्धि फलप्रदा।
[ स्तोत्र- ] ध्यान और कवच के बाद निम्न स्तोत्र का पाठ करें-
- प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर तारणीम् । धमन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
- त्रिलोकजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयनाम् । सौभाग्यरोग्यं दायनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
- शिन । भूक्ति, मुक्ति दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
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