मां शैलपुत्री का अर्थ और मंत्र,आरती,कथा और पूजा के फ़ायदे,Maa Shailputri Ka Arth,Mantr,Aarti,story Aur Pooja Ke Faayade

मां शैलपुत्री का अर्थ और मंत्र,आरती,कथा और पूजा के फ़ायदे

शैलपुत्री का मतलब है, पर्वत (शैल) की बेटी (पुत्री). शैलपुत्री, देवी दुर्गा के नौ रूपों में से एक हैं. वैदिक ग्रंथों के मुताबिक, देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग पहलू हैं. शैलपुत्री, ब्रह्मा, विष्णु, और शिव की शक्ति का अवतार हैं. शैलपुत्री, बैल की सवारी करती हैं और उनके हाथों में त्रिशूल और कमल होता है. शैलपुत्री को सौभाग्य और शांति का प्रतीक माना जाता है.
Maa Shailputri Ka Arth,Mantr,Aarti,story Aur Pooja Ke Faayade

माता शैलपुत्री कौन थीं

विशेषज्ञ बताते हैं कि पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में पैदा होने के कारण माता का नाम शैलपुत्री पड़ा था। माता शैलपुत्री का नाम शैलपुत्री पड़ा था। माता शैलपुत्री का जन्म शैल या पत्थर से हुआ, इसलिए इनकी पूजा से जीवन में स्थिरता आती है। मां को वृषारूढ़ा और उमा नाम से भी जाना जाता है। उपनिषदों में मां को हेमवती भी कहा गया है। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की कथा का पाठ जरूर करना चाहिए। 

मां शैलपुत्री मंत्र

  • या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।
  • शिवरूपा वृष वहिनी हिमकन्या शुभंगिनी
  • पद्म त्रिशूल हस्त धारिणी
  • रत्नयुक्त कल्याणकारिणी
  • वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌
  • वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌

आराधना मंत्र मां शैलपुत्री की

  • “ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः”
  • या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।।
  • वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।

शैलपुत्री माता की आरती

शैलपुत्री मां बैल असवार। 
करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी।
 तेरी महिमा किसी ने ना जानी
पार्वती तू उमा कहलावे। 
जो तुझे सिमरे सो सुख पावे। 
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। 
दया करे धनवान करे तू। 
सोमवार को शिव संग प्यारी। 
आरती तेरी जिसने उतारी। 
उसकी सगरी आस पुजा दो। 
सगरे दुख तकलीफ मिला दो। 
घी का सुंदर दीप जला के। 
गोला गरी का भोग लगा के। 
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। 
प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं। 
जय गिरिराज किशोरी अंबे। 
शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।  
मनोकामना पूर्ण कर दो। 
भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो। 

मां शैलपुत्री देवी कथा

हिंदू मान्यताओं के अनुसार, देवी शैलपुत्री देवी सती का अवतार हैं। इस अवतार में, वह राजा दक्ष प्रजापति की बेटी थीं जो भगवान ब्रह्मा के पुत्र थे। देवी सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था। हालाँकि, राजा दक्ष इस विवाह से खुश नहीं थे, क्योंकि उन्होंने भगवान शिव को अपने परिवार की लड़की से शादी करने के योग्य नहीं माना।
कहानी यह है कि राजा दक्ष प्रजापति ने एक बार सभी देवताओं को एक भव्य धार्मिक महा यज्ञ में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया था। चूंकि, वह भगवान शिव और देवी सती के विवाह के खिलाफ थे, इसलिए उन्होंने उन्हें आमंत्रित नहीं किया। जब माता सती को इस महायज्ञ के बारे में पता चला, तो उन्होंने इसमें शामिल होने का फैसला किया। भगवान शिव ने यह समझाने की कोशिश की कि राजा दक्ष नहीं चाहते, हम इस यज्ञ में उपस्थित हों। इसलिए हमें वहां नहीं जाना चाहिए।  लेकिन देवी सती ने समारोह में भाग लेने की जिद्द पर अड़ी रही। भगवान शिव समझ गए कि वह पिताके घर जाना चाहती हैं, तो उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। देवी सती वहां पहुंची, लेकिन सती माता को आभास हुआ कि उन्हें यहाँ देखकर उनकी मां के अलावा कोई भी रिश्तेदार खुश नहीं था। देवी सती की मां के अलावा सभी बहनों और रिश्तेदारों ने उनका उपहास किया। राजा दक्ष ने भगवान शिव के बारे में बहुत अपमानजनक टिप्पणी की और सभी देवताओं के सामने महादेव का अनादर किया। देवी सती इस अपमान को सहन नहीं कर सकीं और तुरंत यज्ञ कुंड में कूद गईं और आत्मदाह कर लिया। जैसे ही यह खबर भगवान भोलेनाथ के पास पहुंची, वे  अत्यंत क्रोधित हो गए और तुरंत अपने एक भयानक रूप – वीरहद्र का आह्वान किया। भगवान शिव महायज्ञ की ओर बढ़े और राजा दक्ष का वध अपने त्रिशूल से किया। बाद में, भगवान विष्णु ने हस्तक्षेप किया और राजा दक्ष को उनके शरीर से एक बकरी के सिर को जोड़कर पुनर्जीवित कर दिया। भगवान शिव अभी भी दुखी थे और उन्होंने देवी सती की अधजली लाश को अपने कंधों पर लाध लिया, और तांडव नृत्य करने लगे। शिव के पैरों की थाप से तीनों लोक कांपने लगा। तब सृष्टि को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र का उपयोग कर देवी सती के मृत शरीर को कई भागों में खंडित कर दिया। जहां-जहाँ देवी सती के खंडित शरीर के हिस्से गिरे, उन पावन स्थानों को शक्ति-पीठों के रूप में जाना जाने लगा। अपने अगले जन्म में, देवी सती ने पहाड़ों के देवता – हिमालय की बेटी के रूप में जन्म लिया। उनका नाम शैलपुत्री था और इस अवतार में उन्हें पार्वती के नाम से भी जाना जाता था।

मां शैलपुत्री की पूजा करने से ये फ़ायदे मिलते हैं

मान्यता है कि मां शैलपुत्री की पूजा करने से सूर्य संबंधी समस्याएं दूर होती हैं. मां शैलपुत्री को गाय के शुद्ध घी का भोग लगाना चाहिए. मां शैलपुत्री को सफ़ेद रंग बेहद पसंद है. इससे अच्छा स्वास्थ्य और मान-सम्मान मिलता है.

मां शैलपुत्री की पूजा के फ़ायदे

  • धन-धान्य, ऐश्वर्य, सौभाग्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है.
  • घर में सुख-समृद्धि आती है.
  • कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर मिलता है.
  • मन और मस्तिष्क का विकास होता है.
  • अंतर्मन में उमंग और आनंद व्याप्त हो जाता है.
  • मानसिक स्थिरता मिलती है

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