Navratri : घट स्थापन और पूजा अर्चना की सामग्री(Ghat Sthaapan)
नवरात्रि पर्व नवदुर्गा
हिंदू देवियों- पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ विभिन्न स्वरूपों की उपासना के लिए निर्धारित है, जिन्हें नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है। पहले तीन दिन पार्वती के तीन स्वरूपों की अगले तीन दिन लक्ष्मी माता के स्वरूपों और आखिरी के तीन दिन सरस्वती माता के स्वरूपों की पूजा करते है।
दुर्गा सप्तशती के अन्तर्गत देव दानव युद्ध का विस्तृत वर्णन है। इसमें देवी भगवती और मां पार्वती ने किस प्रकार से देवताओं के साम्राज्य को स्थापित करने के लिए तीनों लोकों में उत्पात मचाने वाले महादानवों से लोहा लिया इसका वर्णन आता है। यही कारण है कि आज सारे भारत में हर जगह दुर्गा यानि नवदुर्गाओं के मन्दिर स्थपित हैं। साल में दो बार अश्विन और चैत्र मास में नौ दिन के लिए उत्तर से दक्षिण भारत में नवरात्र उत्सव का माहौल होता है। संपूर्ण दुर्गा सप्तशती का अगर पाठ न भी कर सकें तो निम्नलिखित श्लोकों को पढ़ने से सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती और नवदुर्गाओं के पूजन का फल प्राप्त हो जाता है।
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Ghat Sthaapan aur Pooja Archana Kee Saamagree |
सर्व मंगल मंगलये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणि नमोऽतु ते।।
शरणांगतदीन आर्त परित्राण परायणे
सर्वस्यार्तिहरे देवी नारायणि नमोऽस्तु ते।।
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यारत्नाहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते।।
वैसे तो दुर्गा के 108 नाम गिनाये जाते हैं लेकिन नवरात्रों में उनके स्थूल रूप को ध्यान में रखते हुए नौ दुर्गाओं की स्तुति और पूजा पाठ करने का गुप्त मंत्र ब्रह्मा जी ने अपने पौत्र मार्कण्डेय ऋषि को दिया था। इसको देवीकवच भी कहते हैं। देवीकवच का पूरा पाठ दुर्गा सप्तशती के 56 श्लोकों के अन्दर मिलता है। नौ दुर्गाओं के स्वरूप का वर्णन संक्षेप में ब्रह्मा जी ने इस प्रकार से किया है।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रहमचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम।
पंचमं स्क्न्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उपरोक्त नौ दुर्गाओं ने देव दानव युद्ध में विशेष भूमिका निभाई है। इनकी सम्पूर्ण कथा देवी भागवत पुराण और मार्कण्डेय पुराण में लिखित है। शिव पुराण में भी इन दुर्गाओं के उत्पन्न होने की कथा का वर्णन आता है कि कैसे हिमालय राज की पुत्री पार्वती ने अपने भक्तों सुरक्षित रखने के लिए तथा धरती आकाश पाताल में सुख शान्ति स्थापित करने के लिए दानवों राक्षसों और आतंक फैलाने वाले तत्वों को नष्ट करने की प्रतीज्ञा की ओर समस्त नवदुर्गाओं को विस्तारित करके उनके 108 रूप धारण करने से तीनों लोकों में दानव और राक्षस साम्राज्य का अन्त किया। इन नौदुर्गाओं में सबसे प्रथम देवी का नाम है शैल पुत्री, जिसकी पूजा नवरात्र के पहले दिन होती है। दूसरी देवी का नाम है ब्रह्मचारिणी, जिसकी पूजा नवरात्र के दूसरे दिन होती है। तीसरी देवी का नाम है चन्द्रघण्टा, जिसकी पूजा नवरात्र के तीसरे दिन होती है। चौथी देवी का नाम है कूष्माण्डा, जिसकी पूजा नवरात्र के चौथे दिन होती है। पांचवीं देवी का नाम है स्कन्दमाता, जिसकी पूजा नवरात्र के पांचवें दिन होती है। छठीं देवी का नाम है कात्यायनी, जिसकी पूजा नवरात्र के छठे दिन होती है। सातवीं देवी का नाम है कालरात्रि, जिसकी पूजा नवरात्र के सातवें दिन होती है। आठवीं देवी का नाम है महागौरी, जिसकी पूजा नवरात्र के आठवें दिन होती है। नवीं देवी का नाम है सिद्धिदात्री, जिसकी पूजा नवरात्र के अन्तिम दिन होती है। इन सभी दुर्गाओं के प्रकट होने और इनके कार्यक्षेत्र की बहुत लम्बी चौड़ी कथा और फेहरिस्त है। लेकिन यहां हम संक्षेप में ही उनकी पूजा अर्चना का वर्णन कर सकेंगे।
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घट स्थापन और पूजा अर्चना की सामग्री
नवदुर्गा, यानी नवरात्र की नौ देवियां हमारे संस्कार एवं आध्यात्मिक संस्कृति के साथ जुड़ी हुई हैं। इन सभी देवियों को लाल रंग के वस्त्र, रोली, लाल चंदन, सिंदूर, लाल वस्त्र साड़ी, लाल चुनरी, आभूषण तथा खाने-पीने के सभी पदार्थ जो लाल रंग के होते हैं, वहीं अर्पित किए जाते हैं। भगवान शिव ने भी जब अपनी आराध्य शक्ति को प्रणाम किया था और उनकी पूजा की थी, तो उस समय मंगल कामना के लिए निम्नलिखित श्लोक से महागौरी की स्तुति की थी। अतः माता का आशीर्वाद पाने के लिए नवरात्रों के दौरान रोज ही इस श्लोक की स्तुति करना शुभ होता है:
या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
उपरोक्त मंत्र के साथ नवरात्र के पहले दिन अपराह्न में घटस्थापन, यानी पूजा स्थल में तांबे या मिट्टी का कलश स्थापन किया जाता है जो लगातार नौ दिन तक एक ही स्थान पर रखा जाता है। घट स्थापना के लिए दुर्गा जी की स्वर्ण अथवा चांदी की मूर्ति या ताम्र मूर्ति उत्तम है। अगर ये भी उपलब्ध न हो सके तो मिट्टी की मूर्ति अवश्य होनी चाहिए जिसको रंग आदि से चित्रित किया हो।
घट स्थापन हेतु गंगा जल, नारियल, लाल कपड़ा, मौली, रोली, चन्दन, पान, सुपारी, धूपबत्ती, घी का दीपक, ताजे फल, फल माला, बेलपत्रों की माला, एक थाली में साफ चावल चाहिए। घट स्थापन के स्थान में केले का खम्बा, घर के दरवाजे पर बन्दनवार के लिए आम के पत्ते, तांबे या मिट्टी का एक घड़ा, चन्दन की लकड़ी, सयौंषधि, हल्दी की गांठ, 5 प्रकार के रत्न, या आभूषण देवी को स्नान के उपरान्त पहनाने के लिए चाहिए। देवी की मूर्ति के अनुसार लाल कपड़े, मिठाई, बताशा, सुगन्धित तेल, सिन्दूर, कंघा दर्पण आरती के लिए कपूर 5 प्रकार के फल पंचामृत जिसमें दूध दही शहद चीनी और गंगाजल हो, साथ ही पंचगव्य, जिसमें गाय का गोबर गाय का मूत्र गाय का दूध गाय का दही गाय का घी, भी पूजा सामग्री में रखना आवश्यक है। घट स्थापन के दिन ही जौ तिल और नवान्न बीजो बीजनी यानी एक मिट्टी की परात में हरेला भी बोया जाता है, जो कि मां पार्वती यानी शैलपुत्री को अन्नपूर्णा स्वरूप पूजने के विधान से जुडा हैं। अष्टमी अथवा नवमी को इसको काटा जाता और केसर कांपेल को सबके सिर में रखा जाता है।
नवदुर्गाओं को लाल वस्त्र आभूषण और नैवेद्य प्रिय हैं। अतः उनको पहनाने के लिए रोज नए रंगीन रेशम आदि के वस्त्र आभूषण, जिनमें गले का हार, हाथ की चूड़ियां, कंगन, मांग टीका, नथ और कर्णफूल आदि आते हैं, का भी आयोजन करके रखना चाहिए। ये सभी सामग्री नौ दिन नवदुर्गाओं को पूजा के दौरान समर्पित की जाएंगी।
क्या है दैनिक पूजा विधि
नवरात्रों में नौ दिनों तक व्रत और पूजा का विधान है, परन्तु यदि सामर्थ्य न हों तो 7, 5, 3 या 1 दिन का भी व्रत रखा जा सकता है। नवरात्रों में पहले और आखिरी दिन व्रत का भी काफी महत्व है। पूजन स्थल को भली प्रकार साफ कर एक चौकी रखें। चौकी पर लाल रेशमी वस्त्र बिछाएँ। माँ भगवती की चार भुजा वाली, सिंह पर सवारी करते हुए जो मूर्ति हो उसे स्थापित करें। मिट्टी के बर्तन में जौ, गेहूँ, बोयें, तथा एक कलश की स्थापना करें। कलश पर आम के पल्लव व एक नारियल रखें एवं कलश पर स्वास्तिक बनाएं। रोली, कुमकुम, अक्षत, लाल व सुगन्धित फूल, धूप, दीप, आदि से पूजन करें। एक घी का दीपक जलाएं जो नौ दिनों तक लगातार जलता रहें। श्रद्धा पूर्वक माता का पाठ करें। पूजन के बाद श्रद्धा पूर्वक सुबह और शाम आरती करें।
अष्टमी अथवा नवमी के दिन मां दुर्गा की कन्या के रुप में पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार कन्या का पूजन मां का ही पूजन है। इसलिए इस दिन 9 या 11 कन्याओं को श्रद्धा व भक्ति भाव से अपने घर आमंत्रित करते है। कन्याओं के साथ एक लंगूर, अर्थात लड़के को भी आमंत्रित करें। आमंत्रित कन्याओं के पैर धोकर उन्हें आसन पर बैठाया जाता है। उनके हाथों में मौली बांध कर माथे पर रोली का टीका लगाएं, चुन्नी अर्पित करें, उसके बाद सभी की आरती करें। भगवती दुर्गा को चना, हलवा, खीर पूड़ी, पूआ तथा फल आदि का भोग लगाएं। यही प्रसाद कन्याओं को अर्पित करें। इस प्रकार विधि विधान, श्रद्धापूर्ण और विश्वास के साथ पूजन करने से साधक को मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं।
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प्रथम- देवी शैलपुत्री
मां दुर्गा अपने प्रथम स्वरूप में शैलपुत्री के रूप में जानी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण इन्हें शैल पुत्री कहा गया। भगवती का वाहन बैल है। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है। अपने पूर्व जन्म में यह सती नाम से प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं। इनका विवाह भगवान शंकर से हुआ था। पूर्वजन्म की भांति इस जन्म में भी यह भगवान शंकर की अर्द्धांगिनी बनीं। नव दुर्गाओं में शैलपुत्री दुर्गा का महत्त्व और शक्तियां अनन्त हैं। नवरात्र के दौरान प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा व उपासना की जाती है।
- ध्यान
वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्रीयशस्विनीम्घ्
पूणेंदुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा।
पटांबरपरिधानांरत्नकिरीटांनानालंकारभूषिताघ्
प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांतकपोलांतुंग कुचाम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितंबनीम्घ्
- स्तोत्र
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहमघ्
त्रिलोकजननींत्वंहिपरमानंद प्रदीयनाम।
सौभाग्यारोग्यदायनीशैलपुत्रीप्रणमाभ्यहमघ्
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।
भुक्ति, मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहमघ्
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।
भुक्ति, मुक्ति दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहमघ्
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- कवच
हींकार,पातुललाटेबीजरूपामहेश्वरीघ्
श्रीकाररूपातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी।
हूंकाररूपातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृतघ्
फट्काररूपातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा।
- उपासना मंत्र
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम।।
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