Varuthini Ekadashi : वरुथिनी एकादशी पूजा का शुभ समय और महत्व, कथा,Varuthini Ekadashi Pooja Ka Shubh Time Aur Mahatv, Katha

Varuthini Ekadashi : वरुथिनी एकादश का शुभ मुहूर्त और महत्व,कथा

वरुथिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन भगवान विष्णु की उपासना की जाती है. पुराणों के मुताबिक, वरुथिनी एकादशी सभी पापों का नाश करती है. मान्यता है कि जो कोई व्यक्ति वरुथिनी एकादशी व्रत को विधि-विधान से करता है, उस पर श्री हरि की असीम कृपा बरसती है और उसके जीवन के सभी कष्ट पलक झपकते दूर हो जाते हैं 

Varuthini Ekadashi Pooja Ka Shubh Time Aur Mahatv, Katha

वरुथिनी एकादशी का व्रत करने के लिए, ये उपाय किए जा सकते हैं

  • व्रत करने से पहले, सुबह सूर्योदय से पहले उठकर शौच आदि से निवृत्त होकर स्नान करें.
  • इसके बाद व्रत का संकल्प लें.
  • भगवान विष्णु को अक्षत, दीपक, नैवेद्य, आदि सोलह सामग्री से उनकी विधिवत पूजा करें.
  • इस दिन भगवान विष्णु के साथ ही मां लक्ष्मी की भी पूजा करनी चाहिए.
  • भगवान विष्णु के भोग में तुलसी दल को जरूर शामिल करें. 
  • वरुथिनी एकादशी के दिन पूजा करने से साधकों को लक्ष्मी और नारायण दोनों की कृपा प्राप्त होती है.

वरुथिनी एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त

साल 2024 में वरुथिनी एकादशी 4 मई, शनिवार को है. हिंदू धर्म में वरुथिनी एकादशी का व्रत सुख और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है. मान्यता है कि इस व्रत से समस्त पाप दूर होते हैं और शक्ति मिलती है. इस दिन भक्तिभाव से भगवान मधुसूदन की पूजा की जाती है !

शुभ मुहूर्त:

  • एकादशी तिथि शुरू – 11:25 – 3 मई 2024
  • एकादशी तिथि ख़त्म – 8 :40 – 4 मई 2024
  • एकादशी तिथि प्रारंभ: 3 मई 2024, शाम 5:40 बजे
  • एकादशी तिथि समाप्त: 4 मई 2024, शाम 4:24 बजे
  • पारण का समय: 5 मई 2024, सुबह 6:44 बजे से 8:24 बजे तक

वरुथिनी एकादशी का महत्व

एकादशी के दिन का भगवान हरि यानी भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। वरुथिनी एकादशी को बरुथनी एकादशी भी कहा जाता है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा!

एक समय की बात है मान्धाता नाम के राजा का नर्मदा नदी के तट पर राज्य था।  वह अत्यंत दानशील तथा तपस्वी थे। एक दिन जब वह जंगल में तपस्या कर रहे थे, तभी न जाने कहाँ से एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा। राजा पूर्ववत अपनी तपस्या में लीन रहे। कुछ देर बाद पैर चबाते-चबाते भालू राजा को घसीटकर पास के जंगल में ले गया। राजा बहुत घबराया, मगर तापस धर्म अनुकूल उसने क्रोध और हिंसा न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की, करुण भाव से भगवान विष्णु को पुकारा। उसकी पुकार सुनकर भगवान श्रीहरि विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने चक्र से भालू को मार डाला।
राजा का पैर भालू पहले ही खा चुका था। इससे राजा बहुत ही शोकाकुल हुए। उन्हें दुःखी देखकर भगवान विष्णु बोले: हे वत्स! शोक मत करो। तुम मथुरा जाओ और वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो। उसके प्रभाव से पुन: सुदृढ़ अंगों वाले हो जाओगे। इस भालू ने तुम्हें जो काटा है, यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था। भगवान की आज्ञा मानकर राजा मान्धाता ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक वरूथिनी एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से राजा शीघ्र ही पुन: सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया। इसी एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग गये थे। जो भी व्यक्ति भय से पीड़ित है उसे वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। इस व्रत को करने से समस्त पापों का नाश होकर मोक्ष मिलता है। 

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