Akshaya Tritiya : अक्षय तृतीया महापर्व का महत्व और अक्षय तृतीया की कथा,Importance of Akshaya Tritiya festival and story of Akshaya Tritiya

 Akshaya Tritiya : अक्षय तृतीया महापर्व का महत्व और अक्षय तृतीया की कथा,Akshaya Tritiya: Importance of Akshaya Tritiya festival and story of Akshaya Tritiya.

अक्षय तृतीया पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करना बहुत लाभकारी होता है। इस दिन यदि शुभ कार्य किए जाएं, तो दोगुना फल प्राप्त होता है। इतना ही नहीं, घर में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहती है। 
अक्षय तृतीया महापर्व आज, पुण्य भी अक्षय और पाप भी अक्षय, बाजारवाद ने पर्व को स्वर्ण रजत की खरीद से जोड़ा, आज ही अनंत से प्रगट हुए भगवान विष्णु, प्रारंभ हुई सृष्टि !
हमारी संस्कृति का महान पर्व है अक्षय तृतीया। यही वह दिन है जब अनादि विष्णु अनंत ब्रह्मांड से प्रगट हुए थे और सृष्टि का शुभारंभ हुआ था। अक्षय तृतीया के दिन किए सभी पुण्यकर्म अक्षय रहते हैं। इसी तरह किए गए पाप भी कभी नष्ट नहीं होते, उनका फल भुगतना ही पड़ता है। गंगोत्री मंदिर के कपाट इसी दिन खुलते हैं। यह पावन दिन अनेक महापुरुषों के नामों से भी जुड़ा हुआ है। इस पर्व का सोने चांदी की खरीद से कोई लेना देना नहीं।
Importance of Akshaya Tritiya festival and story of Akshaya Tritiya

शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया पूर्ण तिथि है। भगवान विष्णु के प्रकात्योत्सव के साथ प्रकृति और सृष्टि जन्म लेती हैं। चार युगों में प्रथम सतयुग और द्वितीय त्रेतायुग का आरंभ जिस दिन हुआ, वह अक्षय तृतीया ही थी। अन्नपूर्णा अक्षय तृतीया के दिन जन्मीं और कुबेर के लंबे तप का समापन इसी दिन हुआ। विष्णु पुराण और स्कंद पुराण के अनुसार ऋषि वेदव्यास ने गणेश से पुराण, महाभारत आदि ग्रंथों के लेखन का कार्य अक्षय तृतीया को शुरू कराया।
जैन धर्म के प्रवर्तक राजा ऋषभदेव के तीर्थंकर भगवान आदिनाथ बनने की तिथि भी अक्षय तृतीया है। भगवान परशुराम के अवतरण दिवस दिवस की तिथि यही दिन है। भगवान विष्णु के प्रकट होने के साथ ही महालक्ष्मी का आगमन हुआ और लक्ष्मीनारायण की पूजा प्रारंभ हुई। कालांतर में लक्ष्मीनारायण को सत्यनारायण के स्वरूप की मान्यता इसी वैशाख शुक्ल अक्षय दिवस पर मिली। शास्त्र कहते हैं कि बद्रीनाथ की मूर्ति अलकनंदा से निकालकर शंकराचार्य ने इसी दिन पूजा प्रारंभ कराई थी।
अक्षय पूर्णिमा स्वयं सिद्धि योग में पड़ रही है। कृतिका नक्षत्र में कोई भी कर्म किया जाए तो उसे कर्म सिद्धि योग कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन दारिद्रों की सहायता करने से मनुष्य के अनेक रोग शोक नष्ट हो जाते हैं। इस दिन अच्छा या बुरा जैसा भी कर्म करेंगे वह नष्ट नहीं होगा, अक्षय रहेगा। पशुओं को चारा डालने तथा पक्षियों को दाना खिलाने की शुरुआत इस दिन की जा सकती है।
इस दिन बड़ी संख्या में विवाह होते हैं, जिन्हें सुझाने की जरूरत नहीं है। राजस्थान में इस पर्व को आखातीज कहा जाता है। आखातीज पर पहले बड़ी संख्या में बाल विवाह हुआ करते थे। यह प्रथा अब बंद कराई जा चुकी है। अक्षय तृतीया के दिन भगवान लक्ष्मी नारायण की पूजा विधि विधान से करनी चाहिए। सोने चांदी की खरीद से अक्षय तृतीया को शास्त्रों ने नहीं, आधुनिक बाजारवाद ने जोड़ा है। अक्षय तृतीया धातु खरीद का नहीं, शुभ कर्मों से पुण्य खरीदने का पर्व है। यह पर्व जन जन के लिए शुभ हो यही कामना।

अक्षय तृतीया की कथा (Story of Akshaya Tritiya)

अक्षय तृतीया की एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक धर्मदास नामक वैश्य था। धर्मदास अपने परिवार के साथ एक छोटे से गाँव में रहता था। वह बहुत ही गरीब था। वह हमेशा अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए चिंतित रहता था। उसके परिवार में कई सदस्य थे। धर्मदास बहुत धार्मिक पृव्रत्ति का व्यक्ति था उसका सदाचार तथा देव एवं ब्राह्मणों के प्रति उसकी श्रद्धा अत्यधिक प्रसिद्ध थी। अक्षय तृतीया व्रत के महात्म्य को सुनने के पश्चात उसने अक्षय तृतीया पर्व के आने पर सुबह जल्दी उठकर गंगा में स्नान करके विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की, व्रत के दिन सामर्थ्यानुसार जल से भरे घड़े, पंखे, जौ, सत्तू, चावल, नमक, गेंहू, गुड़, घी, दही, सोना तथा वस्त्र आदि वस्तुएँ भगवान के चरणों में रख कर ब्राह्मणों को अर्पित की।
यह सब दान देखकर धर्मदास के परिवार वाले तथा उसकी पत्नी ने उसे रोकने की कोशिश की। उन्होने कहा कि अगर धर्मदास इतना सब कुछ दान में दे देगा, तो उसके परिवार का पालन-पोषण कैसे होगा। फिर भी धर्मदास अपने दान और पुण्य कर्म से विचलित नहीं हुआ और उसने ब्राह्मणों को कई प्रकार का दान दिया। उसके जीवन में जब भी अक्षय तृतीया का पावन पर्व आया, प्रत्येक बार धर्मदास ने विधि से इस दिन पूजा एवं दान आदि कर्म किया। अनेक रोगों से ग्रस्त तथा वृद्ध होने के उपरांत भी उसने उपवास करके धर्म-कर्म और दान पुण्य किया। यही वैश्य दूसरे अगले जन्म में कुशावती का राजा हुए।
मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए दान-पुण्य व पूजन के कारण वह अपने अगले जन्म में बहुत धनी एवं प्रतापी राजा बना। वह इतना धनी और प्रतापी राजा था कि त्रिदेव तक उसके दरबार में अक्षय तृतीया के दिन ब्राह्मण का वेष धारण करके उसके महायज्ञ में शामिल होते थे।
अपनी श्रद्धा और भक्ति का उसे कभी घमंड नहीं हुआ, वह प्रतापी राजा महान एवं वैभवशाली होने के बावजूद भी धर्म मार्ग से कभी विचलित नहीं हुआ। माना जाता है कि यही राजा आगे के जन्मों में भारत के प्रसिद्ध सम्राट चंद्रगुप्त के रूप में पैदा हुए थे। जैसे भगवान ने धर्मदास पर अपनी कृपा की वैसे ही जो भी व्यक्ति इस अक्षय तृतीया की कथा का महत्त्व सुनता है और विधि विधान से पूजा एवं दान आदि करता है, उसे अक्षय पुण्य एवं यश की प्राप्ति होती है।

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