श्री राम स्तुति - भए प्रगट कृपाला दीन दयाला ! अर्थ सहित
'भए प्रगट कृपाला दीन दयाला' रामचरितमानस की स्तुति है, जिसे तुलसीदास जी ने लिखा है. इस स्तुति का भावार्थ है कि दीनों पर दया करने वाले और माता कौशल्या के हितकारी प्रगट हुए हैं. तुलसीदास जी कहते हैं कि जो इस चरित्र का गान करते हैं, वे श्रीहरि का पद पाते हैं और संसार रूपी कूप में नहीं गिरते !
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Shri Ram Stuti - Bhe Pragat Krpaala Deen Dayaala ! Arth Sahit |
भगवान राम की पूजा करने से पहले 'भए प्रगट कृपाला दीन दयाला' स्तुति पढ़नी चाहिए. स्तुति समाप्त होने के बाद भगवान राम की आरती और चालीस का पाठ करना चाहिए. चालीसा का पाठ समाप्त होने के बाद भगवान से अपने जीवन में आ रहे कष्टों को दूर करने की कामना करनी चाहिए. नियमित रूप से 'भए प्रगट कृपाला दीन दयाला' को पढ़ने से आप पर जल्द भगवान राम की कृपा बरसती है
श्री राम स्तुति - Shri Ram Stuti
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला,
कौशल्या हितकारी ।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी,
अद्भुत रूप बिचारी ।
लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा,
निज आयुध भुजचारी ।
भूषन बनमाला, नयन बिसाला,
सोभा सिंधु खरारी ।
कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी,
केहि बिधि करूं अनंता ।
माया गुन ग्यानातीत अमाना,
वेद पुरान भनंता ।
करुना सुख सागर, सब गुन आगर,
जेहि गावहिं श्रुति संता ।
सो मम हित लागी, जन अनुरागी,
भयउ प्रगट श्रीकंता ।
ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया,
रोम रोम प्रति बेद कहै ।
मम उर सो बासी, यह उपहासी,
सुनत धीर मति थिर न रहै ।
उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना,
चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै ।
कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई,
जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ।
माता पुनि बोली, सो मति डोली,
तजहु तात यह रूपा ।
कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला,
यह सुख परम अनूपा ।
सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना,
होइ बालक सुरभूपा ।
यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं,
ते न परहिं भवकूपा ।
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला,
कौशल्या हितकारी ।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी,
अद्भुत रूप बिचारी !
तुलसीदास जी कहते हैं कि दीनों पर दया करने वाले, माता कौशिल्या के हितकारी प्रगट हुए हैं। मुनियों के मन को हरने वाले भगवान के अदभुत रूप का विचार कर माता कौशल्या हर्ष से भर गई।
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुजचारी।
भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभा सिंधु खरारी॥
प्रभु के दर्शन नेत्रों को आनंद देने वाले हैं, उनका शरीर मेघों के समान श्याम रंग का है तथा उन्होंने अपनी चारों भुजाओं में आयुध धारण किए हैं, दिव्य आभूषण और वन माला धारण की हैं। प्रभु के नेत्र बहुत ही सुंदर और विशाल है। इस प्रकार शोभा के समुद्र और खर नामक राक्षक का वध करने वाले भगवान प्रकट हुए हैं।
कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करूं अनंता।
माया गुन ग्यानातीत अमाना बेद पुरान भनंता॥
दोनों हाथ जोड़कर माता कौशल्या कहने लगी- हे अनंत! मैं तुम्हारी स्तुति किस विधि से करूं, क्योंकि वेद, और पुराण ने तुम्हें माया, गुण और ज्ञान से परे और परिमाण रहित बताया है।
करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता।
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीकंता॥
श्रुतियांँ और संतजन ने आपको करुणा,सुख और आनंद के सागर कहकर आपके सभी गुणों का बखान किया हैं। जन-जन पर अपनी प्रीति रखने वाले ऐसे श्री लक्ष्मी पति मेरा कल्याण करने के लिए प्रकट हुए हैं।
राम जन्म कथा
ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै।
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै॥
भावार्थ - वेदों में वर्णन है कि आपके रोम रोम में कई ब्रह्माण्ड समाए हैं और आपने संपूर्ण माया का निर्माण किया है। मां कौशल्या कहती हैं कि आप मेरे गर्भ में रहे, इस आश्चर्य और हास्यास्पद बात को सुनकर धीर ज्ञानी जन की बुद्धि स्थिर नहीं रहती (विचलित हो जाती है)।
उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै।
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै॥
माता को इस प्रकार ज्ञान उत्पन्न हुआ देख प्रभु मुस्कुराने लगे और सोचने लगे कि माता को ज्ञान हो गया है लेकिन प्रभु अवतार लेकर कई प्रकार के चरित्र करना चाहते हैं। अतः प्रभु ने पूर्व जन्म की कथा माता को सुना कर समझाया जिससे वह उन्हें अपने पुत्र के समान प्रेम (वात्सल्य) प्रदान करें।
श्री राम के नाम पर बच्चों के नाम
माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा।
कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा॥
प्रभु की यह बातें सुनकर माता कौशिल्या की बुद्धि में परिवर्तन हो गया और वह कहने लगी कि आप यह रूप छोड़कर अत्यंत प्रिय बाल रूप धारण कर बाल लीला करें। यह सुख सबसे उत्तम और अनुपम होगा कि आप सुंदर बाल रूप में प्रकट हों।
सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा।
यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहिं भवकूपा॥
माता का यह प्रेम भरा भाव सुनकर, देवताओं के स्वामी प्रभु ने बालक रूप में प्रकट होकर बच्चों की तरह रोना शुरू कर दिया। तुलसीदास जी कहते हैं कि जो भगवान के इस चरित्र को भाव से गाता है, उन्हें श्री हरि का परम पद प्राप्त होता है और पुनः इस संसार रूपी कूप में गिरने से मुक्ति मिलती है।
बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार ।
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार।।
भावार्थ - ब्राह्मणों,गो, देवताओं और संतों के हित के लिए प्रभु ने धरती पर मनुष्य रूप में अवतार लिया है । वह माया और उसके गुण और इन्द्रियों से परे है, उनका शरीर अपनी इच्छा से बना है।
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