Shri Ram Stuti : श्री राम स्तुति श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन अर्थ सहित,Shri Ram Stuti Shri Ramchandra Kripalu Bhajuman with meaning

 श्री राम स्तुति श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन अर्थ सहित

श्रीरामचंद्र कृपालु भज मन अथवा राम स्तुति गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित १६वीं शताब्दी का एक भजन है। ईसमे श्रीराम प्रभु के अदभुत गुण एवं शौर्य का वर्णन है। मनुष्य के मन को नियंत्रित करनेवाली ये यह स्तुति संस्कृतमय अवधी में है। नीचे की तीन पंक्तियाँ अवधी में लिखी गयी है।
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, भगवान राम की स्तुति करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है. तुलसीदास जी द्वारा लिखी गई स्तुति 'श्री राम चंद्र कृपालु भजमन' में भगवान के स्वरूप और गुणों का वर्णन है. इस स्तुति को नियमित रूप से करने से संस्कार शुद्ध होते हैं और व्यक्ति को ईश्वरीय कृपा का अनुभव होता है. ऐसा माना जाता है कि इस स्तुति को करने से:-
  • जीवन पर आने वाले बड़े संकट टल जाते हैं
  • सौभाग्य और सुख की प्राप्ति होती है
  • अकाल मृत्यु से छुटकारा मिलता है
  • घर, दफ़्तर, और कारोबार में कामयाबी मिलती है
  • हनुमान जी की कृपा मिलती है
  • सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं

Shri Ram Stuti Shri Ramchandra Kripalu Bhajuman with meaning

श्री राम स्तुति श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन

श्री रामचंद्र कृपालु भजमन हरण भवभय दारुणं ।
नव कञ्ज लोचन कञ्ज मुख कर कञ्ज पद कञ्जारुणं ॥ 1 ॥
कन्दर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरं ।
पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं ॥ 2 ॥
भजु दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनं ।
रघुनन्द आनन्द कन्द कोसल चंद्र दशरथ नन्दनं ॥ 3 ॥
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदार अङ्ग विभूषणं ।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणं ॥ 4 ॥
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं ।
मम हृदय कंज निवास कुरु कामादि खलदल गंजनं ॥ 5 ॥
मनु जाहि राचेयु मिलहि सो वरु सहज सुन्दर सांवरो ।
करुणा निधान सुजान शीलु स्नेह जानत रावरो ॥ 6 ॥
एहि भांति गौरी असीस सुन सिय सहित हिय हरषित अली।
तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली ॥ 7 ॥
॥ सोरठा ॥
जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि ।
मंजुल मंगल मूल वाम अङ्ग फरकन लगे || 8 ||

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Shri Ram Stuti अर्थ सहित

हे मन! कृपालु श्रीरामचंद्रजी का भजन कर. वे संसार के जन्म-मरण रूप दारुण भय को दूर करने वाले है. उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान है. मुख-हाथ और चरण भी लालकमल के सदृश हैं ॥ 1 ॥
उनके सौंदर्य की छ्टा अगणित कामदेवो से बढ्कर है. उनके शरीर का नवीन नील-सजल मेघ के जैसा सुंदर वर्ण है. पीताम्बर मेघरूप शरीर मे मानो बिजली के समान चमक रहा है. ऐसे पावनरूप जानकीपति श्रीरामजी को मै नमस्कार करता हू ॥ 2 ॥
हे मन! दीनो के बंधू, सुर्य के समान तेजस्वी , दानव और दैत्यो के वंश का समूल नाश करने वाले,आनन्दकंद, कोशल-देशरूपी आकाश मे निर्मल चंद्र्मा के समान, दशरथनंदन श्रीराम का भजन कर ॥ 3 ॥
जिनके मस्तक पर रत्नजडित मुकुट, कानो मे कुण्डल, भाल पर तिलक और प्रत्येक अंग मे सुंदर आभूषण सुशोभित हो रहे है. जिनकी भुजाए घुटनो तक लम्बी है. जो धनुष-बाण लिये हुए है. जिन्होने संग्राम मे खर-दूषण को जीत लिया है ॥ 4 ॥
जो शिव, शेष और मुनियो के मन को प्रसन्न करने वाले और काम,क्रोध,लोभादि शत्रुओ का नाश करने वाले है. तुलसीदास प्रार्थना करते है कि वे श्रीरघुनाथजी मेरे ह्रदय कमल मे सदा निवास करे ॥ 5 ॥
जिसमे तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है, वही स्वभाव से ही सुंदर सावला वर (श्रीरामचंद्रजी) तुमको मिलेगा. वह दया का खजाना और सुजान (सर्वग्य) है. तुम्हारे शील और स्नेह को जानता है ॥ 6 ॥
इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशीर्वाद सुनकर जानकीजी समेत सभी सखिया ह्रदय मे हर्सित हुई. तुलसीदासजी कहते है-भवानीजी को बार-बार पूजकर सीताजी प्रसन्न मन से राजमहल को लौट चली ॥ 7 ॥
गौरीजी को अनुकूल जानकर सीताजी के ह्रदय मे जो हरष हुआ वह कहा नही जा सकता. सुंदर मंगलो के मूल उनके बाये अंग फडकने लगे ॥ 8 ॥
इस स्तुति को रोज़ाना विधि-विधान से करने से हनुमान जी भी बहुत खुश होते हैं. शाम के समय, संध्या काल में भी राम स्तुति पढ़ना शुभ माना जाता है. विशेष पर्व और तिथियों पर भी राम स्तुति पढ़ना शुभ माना जाता है, जैसे रामनवमी और श्रीरामनवमी !

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