माता सरस्वती-साधना के कुछ तथ्य,Mata Saraswati Sadhana Ke Kuchh Tathy

माता सरस्वती-साधना के कुछ तथ्य

सरस्वती का जन्म ब्रह्मा के मुँह से हुआ था। श्वेत पुष्प व मोती इनके आभूषण हैं, तथा श्वेत कमल गुच्छ पर ये विराजमान हैं। सरस्वती का पौराणिक इतिहास इन्हें उन धार्मिक कृत्यों से जोड़ता है, जो इन्हीं के नाम वाग्देवी के रूप में की जाती है तथा इनका संबंध बोलने व लिखने, शब्द की उत्पत्ति, दिव्यश्लोक विन्यास तथा संगीत से भी है।
Mata Saraswati Sadhana Ke Kuchh Tathy

सरस्वती-साधना शुद्धि

मंत्र जप शुरु करने से पहले अति आवश्यक सामान्य विधी याने साधना शुद्धि ।
  1. किसी भी प्रकारके देव-देवीयों के मंत्र जप की शुरुआत करने से पहले गुरु म.सा. की आज्ञा या अनुभवी बुजुर्गों की संमती लेवे ।
  2. कोई भी मंत्र की शुरुआत दिनशुद्धी, चंद्रबल आदि देखके श्रेष्ठ समय पर शुरु करें ।
  3. मंत्र साधना हेतू तीर्थभूमी, वनप्रदेश, पर्वत, शिखर, नदीतट अथवा मंदिर-उपाश्रय या घर के एकांत स्थानपर जहाँ शांति, स्वच्छता तथा स्वस्थता हो, वहां जप करें ।
  4. प्रभु या इष्ट देव-देवीयों के प्रतिमा की पूर्व दिशा मे विधीपूर्वक स्थापना करके जप करें ।
  5. जप दरम्यान संपूर्ण मौन रखें और शांत चित्त बनायें ।
  6. जप करने से पहले जगह शुद्ध करें, शुद्ध (कोरा) वस्त्र पहनें।
  7. धूप-दीप तथा सुगंधित वातावरण के बीच जप चालू करें ।
  8. किसी भी मंत्र की शुरुआत करने से पहले कम से कम एक बांधी (१०८) नवकार महामंत्र की माला गिनें ।
  9. माँ सरस्वती देवी की साधना करने से पहले पवित्र स्थान पर भगवान महावीरस्वामी, गौतमस्वामी और माँ सरस्वती देवी की मूर्ती या आकर्षक फोटो सुंदर लगें, इस प्रकार रखें। उनकी स्थापना ऐसी करें कि जहां से वे न गिर जाय और वापस रखना न पडे । देवीकी पीठीका रचें।
  10. मंत्र जप स्फटिक या सूत की माला से करें। इस माला से कोई अन्य मंत्र का जप न करें या किसी अन्य व्यक्ति को वह जप करने न देवे ।
  11. जप की दिशा-पद-आसन-माला-समय एक ही निश्चित रखें । खास कारण विना फेरफार न करें ।
  12. जप की जो भी संख्या निश्चित की हो, उतनी नित्य अखण्ड गिनें। बीच मे एक भी दिन खाली न जायें, इस पर खास ध्यान रखें ।
  13. जप करते वक्त हो सकें तो पद्मासन में, नही तो सुखासन में बैठकर दृष्टी प्रतिमा सन्मुख या नासिकाग्र पर स्थिर कर के जप करें ।
  14. मंत्र जप करते मन मे उद्वेग या खिन्नता न रखें। कलुषित मन से किया हुआ जप निष्फल जाता है।
  15. जप उतावलेपन से या अस्पष्ट उच्चार से न करें, भले ही जप थोडा हो, किन्तु शुद्ध और प्रसन्न मन रहें, इस तरह नियमित करें।
  16.  जप करते बीच मे खण्ड पड़ें, अखंड न होवे तो वह त्रुटित गिना जाता है। इसलिए अखण्ड (कोई दिन जप बिना न जायें ऐसे) गिने। यदि कोई दिन, जप बिना जाय तो दूसरे दिन शुरु से गिनें ।
  17. जप करते वक्त दोनों होंठ बंद रखे, तथापि दांत को दांत न लगें और शरीर सीधा और स्थिर रखें।
  18. मंत्र जप की शुरुआत श्रेष्ठ मुहूर्त पर सूर्य स्वर (अपने दायें नासिका से श्वास चलता हो तब) चलते वक्त प्रबल संकल्प के साथ करें, त्वरित सिद्धी प्राप्त होती है।
  19. कोई भी मंत्र गुरुमहाराज से विधिपूर्वक ग्रहण करने के बाद कम से कम १२,५०० बार उसका जप करें। सवा लाख जप अवश्य फल देता है और उससे ज्यादा हो, तो अधिक ही अच्छा। (यदि उपरोक्त नियम पालनपूर्वक हो तो !
  20. जप काल मे साधा, सात्विक और हलका आहार लेवें। अभक्ष्य, कंद- मूल, तामसी या बाजार के खाद्य चिजों को एवं रात्रि भोजन को अवश्य त्यागे तथा ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  21. आराधना शुरु करने पूर्व 'श्री तीर्थकर गणधर प्रसादात् एषः योगः फलतु मे श्री लब्धिधरगौतम कृपया च' यह पद तीन बार और 'इमं विड्जं पउंजामि सिज्झउ मे पसिज्झउ' यह पद एक बार बोलें, फिर जप शुरु करें। इससे जप सफल होता है। जप पूर्ण होने के बाद क्षमायाचना किजिये ।
साधना सिद्धी के सहायक अंग 
  • दृढ निर्णय 
  • श्रद्धा-स्वजप में विश्वास बाहुल्य 
  • शुद्ध आराधना 
  • निरंतर प्रयत्न
  • निंदावृत्ति त्याग 
  • मित- भाषा 
  • अपरिग्रह वृत्ति 
  • मर्यादा का पूर्ण पालन वगैरे

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