Sharadiya Navratri : नवदुर्गा का प्रथम रूप मां शैलपुत्री की पूजा विधि,

शारदीय नवरात्रि की पहली देवी मां शैलपुत्री पूजा विधि

शैलपुत्री: नवरात्रि की पहली देवी

नवरात्रि का त्योहार देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा के लिए प्रसिद्ध है। इन नौ रूपों में शैलपुत्री पहले स्थान पर आती हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण उन्हें "शैलपुत्री" नाम से जाना जाता है। शैल का अर्थ हिमालय होता है, और इसलिए इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। इनका दूसरा नाम "उमा" भी है।

Navdurga ka Pratham Roop Maa Shailputri Kee Pooja Vidhi

शैलपुत्री की पूजा के महत्व

शैलपुत्री देवी सती के पुनर्जन्म के रूप में मानी जाती हैं। इन्हें पूजा करने से जीवन में धन, सुख-संपदा, रोजगार, और अच्छे स्वास्थ्य का वरदान मिलता है। इनकी पूजा से जीवन में आने वाली बाधाओं और समस्याओं को दूर किया जा सकता है।

पूजा विधि

  • आवश्यक सामग्री: शैलपुत्री की पूजा में विशेष रूप से गाय के घी और दूध से बनी चीज़ें चढ़ाई जाती हैं। पूजा के दौरान षोड्शोपचार विधि का पालन किया जाता है।
  • पुष्प और कुमकुम: पूजा में सफेद, पीले, या लाल फूल चढ़ाए जाते हैं, और कुमकुम भी लगाया जाता है।
  • धूप और दीप: पूजा में धूप, दीप, और पांच देसी घी के दीपक जलाए जाते हैं। यह वातावरण को शुद्ध और दिव्य बनाता है।
  • स्तोत्र और पाठ: शैलपुत्री की पूजा में पार्वती चालीसा, दुर्गा स्तुति, या दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है।
  • भोग और जयकारे: पूजा के अंत में माता को भोग अर्पित किया जाता है और माता के जयकारे लगाए जाते हैं।

पूजा की विशेषताएँ

  • व्रत और अनुष्ठान: शैलपुत्री की पूजा विशेष ध्यान और श्रद्धा के साथ की जाती है। यह पूजा न केवल धार्मिक, बल्कि मानसिक शांति और सुकून के लिए भी महत्वपूर्ण है।
  • अर्चना और मंत्र: पूजा में विशेष मंत्रों का उच्चारण भी किया जाता है, जो देवी की कृपा प्राप्त करने में सहायक होता है।

निष्कर्ष

शैलपुत्री की पूजा नवरात्रि के पहले दिन की जाती है और यह पूजा देवी के गुणों और उनके आशीर्वाद को प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस दिन की गई पूजा से जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है।

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