श्री हनुमान् सहस्रनाम स्तोत्र (पीडीएफ) | Shri Hanuman Sahasranama Stotra (PDF)

श्री हनुमान् सहस्रनाम स्तोत्र PDF

विषय सूची
  • श्री हनुमान् सहस्रनाम स्तोत्र परिचय
  • हनुमान जी के अद्वितीय गुण: 
  • श्री हनुमान् सहस्रनाम स्तोत्र" का पाठ विधि (Path Vidhi)
  • श्री हनुमान् सहस्रनाम का पाठ नियम 
  • श्री हनुमान् सहस्रनाम का पाठ से लाभ 
  • श्री हनुमान् सहस्रनाम स्तोत्रम
  • उपसंहार:
  • श्री हनुमान सहस्रनाम स्तोत्र PDF

श्री हनुमान् सहस्रनाम स्तोत्र परिचय

श्री हनुमान् सहस्रनाम स्तोत्र में भगवान हनुमान के 1008 नामों का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र उन भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र और लाभकारी है जो हनुमान जी को अपना इष्ट देव मानते हैं। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से न केवल मानसिक शांति प्राप्त होती है, बल्कि जीवन में कई संकटों का निवारण भी होता है। हनुमान जी की भक्ति से रोग, शोक, विपत्ति और संकट दूर होते हैं और जीवन में सुख, सम्पत्ति, और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

हनुमान जी के अद्वितीय गुण: हनुमान जी का असंख्य नामों में उल्लिखित गुण उनकी महिमा को प्रकट करते हैं। वे वायुपुत्र, रुद्र, अमर, और अजेय हैं। वे भक्तों के संकटों को हरने वाले, सुख-सम्पत्ति देने वाले और मार्गदर्शक के रूप में भी पूजे जाते हैं। उनके नामों का जप विशेष रूप से लाभकारी होता है क्योंकि यह मानसिक शांति, शारीरिक स्वास्थ्य और आत्मिक उन्नति के लिए सहायक सिद्ध होता है।

"श्री हनुमान् सहस्रनाम स्तोत्र" का पाठ विधि (Path Vidhi)

हनुमान् सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ भगवान हनुमान के हजारों नामों का उच्चारण करने का एक विशेष तरीका है। यह स्तोत्र एक अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावशाली मंत्र है, जो भक्तों को मानसिक शांति, बल, साहस और समृद्धि प्रदान करने में सहायक होता है।

1. प्रारंभिक तैयारी (Preparation):

  • शुद्धता: सबसे पहले शरीर और मन को शुद्ध करें। यदि संभव हो तो स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  • पूजा स्थान: पूजा के लिए एक शांत और पवित्र स्थान का चयन करें। यह जगह आपके घर का पूजा स्थल या कोई अन्य शांत कोना हो सकता है।
  • पूजा सामग्री:
    • दीपक (घी का दीपक या तेल का दीपक), अगरबत्ती, फूल, चंदन, सिंदूर, और प्रसाद (फल या मिठाई) रखें।
    • हनुमान जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। यदि मूर्ति नहीं है तो चित्र का भी प्रयोग किया जा सकता है।

2. हनुमान जी का आह्वान (Invocation):

  • सबसे पहले भगवान हनुमान का ध्यान करें और उन्हें नमन करें।
  • "ॐ श्री हनुमते नमः" इस मंत्र का जाप करें, यह मंत्र भगवान हनुमान का आह्वान करने का तरीका है।
  • आप चाहें तो "हनुमान चालीसा" भी पढ़ सकते हैं ताकि भगवान हनुमान का आशीर्वाद मिल सके।

3. हनुमान् सहस्रनाम का पाठ:

  • अब हनुमान् सहस्रनाम का पाठ शुरू करें। इस स्तोत्र में हनुमान जी के 1000 नामों का उच्चारण होता है।
  • प्रत्येक नाम को श्रद्धा और ध्यान के साथ पढ़ें, ताकि हर नाम का अर्थ आपके हृदय में समाहित हो सके।
  • अगर पूरी 1000 नामों का पाठ एक साथ करना कठिन लगे, तो आप इसे कुछ हिस्सों में बांट कर भी पढ़ सकते हैं।

4. ध्यान और मंत्र जाप:

  • हनुमान् सहस्रनाम का पाठ करते समय, एकाग्रता बनाए रखें और भगवान हनुमान के स्वरूप का ध्यान करें।
  • हर नाम के उच्चारण के दौरान यह सुनिश्चित करें कि आपका मन विचलित न हो।
  • यदि किसी नाम का अर्थ या उच्चारण आपको सही से नहीं आ रहा हो तो उसे सही ढंग से समझने की कोशिश करें।

5. पाठ समाप्ति के बाद (After the Path):

  • पाठ समाप्त होने के बाद, हनुमान जी की आरती गायें या सुनें।
  • फिर भगवान हनुमान के चरणों में श्रद्धा से प्रार्थना करें और उनके आशीर्वाद की कामना करें।
  • "जय हनुमान ज्ञान गुण सागर" या "हनुमान चालीसा" का पाठ भी करें, यह बहुत लाभकारी होता है।

6. प्रसाद अर्पण (Offering Prasad):

  • पाठ समाप्ति के बाद, भगवान हनुमान को प्रसाद अर्पित करें।
  • फूल, फल, सिंदूर, और मिठाई अर्पित करें।
  • फिर प्रसाद का वितरण करें और आशीर्वाद प्राप्त करें।

7. दान और पुण्य कार्य (Charity and Punya):

  • यदि संभव हो तो दान करें। खासकर हनुमान जी के भक्तों को या जरूरतमंदों को भोजन, कपड़े या अन्य सामग्री दान करें। यह पुण्य का कार्य है और हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने का एक उत्तम उपाय है।

श्री हनुमान् सहस्रनाम का पाठ नियम (Shri Hanuman Sahasranama Path Niyam)

श्री हनुमान् सहस्रनाम का पाठ एक अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली साधना है। इसे सही तरीके से और नियमों के साथ करना आवश्यक है, ताकि इसका पूर्ण लाभ मिल सके। यहाँ हम हनुमान् सहस्रनाम पाठ के कुछ महत्वपूर्ण नियमों की चर्चा करेंगे:

1. शुद्धता और पवित्रता (Purity and Cleanliness):

  • शारीरिक और मानसिक शुद्धता का ध्यान रखें। स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। शरीर और मन को शुद्ध करना अत्यंत महत्वपूर्ण है, ताकि आपकी साधना में शक्ति हो।
  • स्वच्छ स्थान पर पूजा करें। यदि घर में पूजा स्थल है तो वहां हनुमान जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। यह स्थान शांत और पवित्र होना चाहिए।

2. समय का ध्यान रखें (Timely Worship):

  • हनुमान् सहस्रनाम का पाठ मंगलवार और शनिवार को विशेष लाभकारी होता है। यह दिन हनुमान जी के लिए विशेष माने जाते हैं।
  • प्रातःकाल (सुबह सूर्योदय से पहले) और संध्याकाल (शाम सूर्योदय के बाद) समय में यह पाठ विशेष फलदायी होता है।

3. एकाग्रता और श्रद्धा (Concentration and Devotion):

  • पाठ करते समय आपका मन पूरी तरह से एकाग्र होना चाहिए। हनुमान जी के नामों का उच्चारण करते समय उनके रूप और गुणों का ध्यान करें।
  • पाठ पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ करें। इस मंत्र में अत्यधिक शक्ति है, और इसे केवल रचनात्मक रूप से नहीं, बल्कि सच्चे मन से करना चाहिए।

4. मंत्र का उच्चारण (Pronunciation of the Mantras):

  • शुद्ध उच्चारण का ध्यान रखें। हनुमान सहस्रनाम में एक-एक नाम का महत्व होता है। सही तरीके से उच्चारण करने से मंत्रों की शक्ति का सही प्रवाह होता है।
  • यदि किसी नाम का उच्चारण सही से नहीं हो पा रहा है, तो उसे ध्यान से समझकर उच्चारित करें। आप हनुमान चालीसा का भी सहारा ले सकते हैं।

5. पाठ की संख्या (Number of Recitations):

  • हनुमान् सहस्रनाम में 1000 नाम होते हैं, लेकिन आपको इसे एक बार, दो बार, या 11 बार पढ़ने का नियम हो सकता है।
  • एक पूर्ण पाठ (सभी 1000 नामों का उच्चारण) एक दिन में किया जा सकता है, या इसे मलयालम, व्रत, या किसी अन्य पूजा के रूप में भी विभाजित किया जा सकता है।
  • अगर शुरुआत में इतने नामों का पाठ करना कठिन हो तो आप प्रथम चरण में 108 या 512 नामों का पाठ कर सकते हैं।

6. मानसिक शांति और संतुलन (Mental Peace and Balance):

  • पाठ करते समय चिंता और तनाव से मुक्त रहें। एकाग्रता के साथ ध्यान केंद्रित करें।
  • यदि आप मानसिक शांति और संतुलन बनाए रखेंगे, तो यह पाठ ज्यादा प्रभावी होगा।

7. संपूर्ण पूजा विधि का पालन (Follow the Complete Worship Procedure):

  • हनुमान सहस्रनाम पाठ से पहले हनुमान जी का आह्वान करें। इसे "ॐ श्री हनुमते नमः" के मंत्र से किया जा सकता है।
  • पाठ समाप्ति के बाद हनुमान जी की आरती करें। आरती के दौरान श्रद्धा से "जय हनुमान ज्ञान गुण सागर" का उच्चारण करें।
  • पाठ के बाद प्रसाद अर्पित करें और किसी जरूरतमंद को दान करें। यह पुण्य का कार्य है और हनुमान जी की कृपा को आकर्षित करता है।

8. नियमितता (Regularity):

  • हनुमान सहस्रनाम का पाठ नियमित रूप से करें। यह निश्चित रूप से जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएगा।
  • तीसरे दिन और सप्ताह में एक दिन इसका पाठ विशेष रूप से करना लाभकारी माना जाता है।

9. पारिवारिक सहयोग (Family Participation):

  • यदि संभव हो तो परिवार के सदस्य भी साथ में पाठ करें। एक साथ पाठ करने से पूजा का प्रभाव बढ़ता है और परिवार में एकता आती है।

10. मानसिक संकल्प (Mental Resolve):

  • पाठ के दौरान सच्ची श्रद्धा और मन की शक्ति का उपयोग करें। पाठ के दौरान अपने संकल्प को लेकर मन में यह भावना रखें कि यह पूजा केवल अपने या किसी प्रियजन के अच्छे स्वास्थ्य, समृद्धि और सफलता के लिए की जा रही है।

श्री हनुमान् सहस्रनाम का पाठ से लाभ (Benefits of Chanting Shri Hanuman Sahasranama)

श्री हनुमान् सहस्रनाम का पाठ अत्यधिक प्रभावशाली और पूज्य माना जाता है। यह केवल एक मंत्र या पूजा नहीं है, बल्कि यह एक शक्ति-संवर्धक साधना है, जो जीवन के सभी पहलुओं में सुधार लाने के लिए किया जाता है। इसके पाठ से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं, जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर होते हैं।

1. मानसिक शांति और संतुलन (Mental Peace and Balance)

  • श्री हनुमान् सहस्रनाम का पाठ मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करता है। यह ध्यान केंद्रित करने और मानसिक अशांति को दूर करने में मदद करता है।
  • नकारात्मक विचार और तनाव को समाप्त करता है, जिससे मन में सुकून और शांति का अनुभव होता है।

2. शारीरिक शक्ति और स्वास्थ्य (Physical Strength and Health)

  • हनुमान जी को शक्ति और साहस के देवता माना जाता है। उनके सहस्रनाम का पाठ शरीर को शारीरिक रूप से बल और ऊर्जा प्रदान करता है।
  • हृदय संबंधी रोगों, शारीरिक थकान, और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं में भी यह लाभकारी होता है।

3. भय और संकटों से मुक्ति (Freedom from Fears and Difficulties)

  • हनुमान जी की कृपा से भय, संकट और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।
  • यह पाठ कष्टों और मुसीबतों से बचाव करता है, और व्यक्ति को किसी भी प्रकार के भूत-प्रेत, शत्रुओं और मानसिक तनाव से मुक्ति दिलाता है।

4. समृद्धि और सुख-समृद्धि (Prosperity and Well-being)

  • हनुमान सहस्रनाम का नियमित पाठ धन, समृद्धि और सुख-शांति को आकर्षित करता है।
  • यह आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने और सम्पत्ति में वृद्धि करने में मदद करता है।

5. शत्रुओं पर विजय (Victory over Enemies)

  • हनुमान जी की पूजा से शत्रुओं की शक्ति नष्ट होती है। यह पाठ विशेष रूप से उन लोगों के लिए फायदेमंद होता है जो किसी प्रतिद्वंद्वी या शत्रु से परेशान हैं।
  • यह शत्रुओं से विजय प्राप्त करने और विरोधियों से बचाव करने का उपाय है।

6. आत्मविश्वास और साहस में वृद्धि (Increase in Confidence and Courage)

  • हनुमान जी की पूजा से आत्मविश्वास और साहस में वृद्धि होती है। यह पाठ उन लोगों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है, जो जीवन में किसी कठिनाई या चुनौती का सामना कर रहे होते हैं।
  • हनुमान जी के नायकत्व से प्रेरणा मिलती है, और आत्मबल में वृद्धि होती है।

7. परिवार और रिश्तों में सुख (Happiness in Family and Relationships)

  • हनुमान सहस्रनाम का पाठ परिवार में सुख, शांति और समृद्धि लाता है।
  • यह रिश्तों में सामंजस्य बनाए रखता है और घर में प्रेम और स्नेह को बढ़ावा देता है।
  • घर में नकारात्मकता, कलह और झगड़ों को समाप्त करता है।

8. आध्यात्मिक उन्नति (Spiritual Advancement)

  • हनुमान सहस्रनाम का पाठ व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत लाभकारी होता है।
  • यह व्यक्ति को आत्मज्ञान की ओर अग्रसर करता है और उसकी भक्ति की शक्ति को मजबूत करता है।
  • हनुमान जी के नाम का जाप करने से भक्ति, ध्यान और योग की दिशा में प्रगति होती है।

9. संकटों से निवारण (Relief from Troubles)

  • हनुमान जी के सहस्रनाम का पाठ जीवन में आने वाली समस्याओं, बाधाओं और संकटों से छुटकारा दिलाता है।
  • यह न केवल मानसिक संकटों को दूर करता है, बल्कि यह जीवन की सामान्य समस्याओं जैसे कार्य में विघ्न, पारिवारिक समस्या, और स्वास्थ्य के संकट को भी दूर करता है।

10. जीवन में उत्साह और ऊर्जा का संचार (Infusion of Enthusiasm and Energy)

  • हनुमान जी का नाम सच्चे उत्साह, ऊर्जा और जोश का प्रतीक है।
  • इस पाठ के प्रभाव से व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और वह जीवन की चुनौतियों का सामना पूरी ताकत और उत्साह से करता है।

श्री हनुमान् सहस्रनाम स्तोत्रम् | Shri Hanuman Sahasranama Stotram

विनियोग

ओं अस्य श्री हनुमत्सहस्रनामस्तोत्र मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्रऋषिः अनुष्टुप्छन्दः श्रीहनुमान्महारुद्रो देवता ह्रीं श्रीं ह्रौं ह्रां बीजं श्रीं इति शक्तिः किलिकिल बुबु कारेण इति कीलकं लङ्का विध्वंस नेति कवचं मम सर्वो पद्रवशान्त्यर्थे मम सर्व कार्य सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।

श्री हनुमान् सहस्रनाम स्तोत्र

हनूमान् श्रीप्रदो वायुपुत्रो रुद्रो नयोऽजरः ।
अमृत्युर्वीरवीरश्च ग्रामवासो जनाश्रयः ॥१॥

धनदो निर्गुणाकारो वीरो निधिपतिर्मुनिः ।
पिङ्गाक्षो वरदो वाग्मी सीताशोकविनाशनः ॥२॥

शिवः शर्वः परोऽव्यक्तो व्यक्ताव्यक्तो धराधरः ।
पिङ्गकेशः पिङ्गरोमा श्रुतिगम्यः सनातनः ॥३॥

अनादिर्भगवान् दिव्यो विश्वहेतुर्नराश्रयः ।
आरोग्यकर्ता विश्वेशो विश्वनाथो हरीश्वरः ॥४॥

भर्गो रामो रामभक्तः कल्याणप्रकृतीश्वरः ।
विश्वम्भरो विश्वमूर्तिर्विश्वाकारोऽथ विश्वपः ॥५॥

विश्वात्मा विश्वसेव्योऽथ विश्वो विश्वधरो रविः ।
विश्वचेष्टो विश्वगम्यो विश्वध्येयः कलाधरः ॥६॥

प्लवङ्गमः कपिश्रेष्ठो ज्येष्ठो वेद्यो वनेचरः ।
बालो वृद्धो युवा तत्त्वं तत्त्वगम्यः सखा ह्यजः ॥७॥

अञ्जनासूनुरव्यग्रो ग्रामस्यान्तो धराधरः ।
भूर्भुवःस्वर्महर्लोको जनोलोकस्तपोऽव्ययः ॥८॥

सत्यमोङ्कारगम्यश्च प्रणवो व्यापकोऽमलः ।
शिवधर्मप्रतिष्ठाता रामेष्टः फल्गुनप्रियः ॥९॥

गोष्पदीकृतवारीशः पूर्णकामो धरापतिः ।
रक्षोघ्नः पुण्डरीकाक्षः शरणागतवत्सलः ॥१०॥

जानकीप्राणदाता च रक्षःप्राणापहारकः ।
पूर्णः सत्यः पीतवासा दिवाकरसमप्रभः ॥११॥

द्रोणहर्ता शक्तिनेता शक्तिराक्षसमारकः ।
अक्षघ्नो रामदूतश्च शाकिनीजीविताहरः ॥१२॥

बुभूकारहतारातिर्गर्वपर्वतमर्दनः ।
हेतुस्त्वहेतुः प्रांशुश्च विश्वकर्ता जगद्गुरुः ॥१३॥

जगन्नाथो जगन्नेता जगदीशो जनेश्वरः ।
जगत्श्रितो हरिः श्रीशो गरुडस्मयभञ्जकः ॥१४॥

पार्थध्वजो वायुपुत्रः सितपुच्छोऽमितप्रभः ।
ब्रह्मपुच्छः परब्रह्मपुच्छो रामेष्टकारकः ॥१५॥

सुग्रीवादियुतो ज्ञानी वानरो वानरेश्वरः ।
कल्पस्थायी चिरञ्जीवी प्रसन्नश्च सदाशिवः ॥१६॥

सन्मतिः सद्गतिर्भुक्तिमुक्तिदः कीर्तिदायकः ।
कीर्तिः कीर्तिप्रदश्चैव समुद्रः श्रीप्रदः शिवः ॥१७॥

उदधिक्रमणो देवः संसारभयनाशनः ।
वालिबन्धनकृद्विश्वजेता विश्वप्रतिष्ठितः ॥१८॥

लङ्कारिः कालपुरुषो लङ्केशगृहभञ्जनः ।
भूतावासो वासुदेवो वसुस्त्रिभुवनेश्वरः॥

श्रीरामरूपः कृष्णस्तु लङ्काप्रासादभञ्जनः ।
कृष्णः कृष्णस्तुतः शान्तः शान्तिदो विश्वभावनः ॥२०॥

विश्वभोक्ताऽथ मारघ्नो ब्रह्मचारी जितेन्द्रियः ।
ऊर्ध्वगो लाङ्गुली माली लाङ्गूलाहतराक्षसः ॥२१॥

समीरतनुजो वीरो वीरमारो जयप्रदः ।
जगन्मङ्गलदः पुण्यः पुण्यश्रवणकीर्तनः ॥२२॥

पुण्यकीर्तिः पुण्यगीतिर्जगत्पावनपावनः ।
देवेशोऽमितरोमाऽथ रामभक्तविधायकः ॥२३॥

ध्याता ध्येयो जगत्साक्षी चेता चैतन्यविग्रहः ।
ज्ञानदः प्राणदः प्राणो जगत्प्राणः समीरणः ॥२४॥

विभीषणप्रियः शूरः पिप्पलाश्रयसिद्धिदः ।
सिद्धः सिद्धाश्रयः कालः कालभक्षकपूजितः ॥२५॥

लङ्केशनिधनस्थायी लङ्कादाहक ईश्वरः ।
चन्द्रसूर्याग्निनेत्रश्च कालाग्निः प्रलयान्तकः ॥२६॥

कपिलः कपिशः पुण्यरातिर्द्वादशराशिगः ।
सर्वाश्रयोऽप्रमेयात्मा रेवत्यादिनिवारकः ॥२७॥

लक्ष्मणप्राणदाता च सीताजीवनहेतुकः ।
रामध्यायी हृषीकेशो विष्णुभक्तो जटी बली ॥२८॥

देवारिदर्पहा होता धाता कर्ता जगत्प्रभुः ।
नगरग्रामपालश्च शुद्धो बुद्धो निरन्तरः ॥२९॥

निरञ्जनो निर्विकल्पो गुणातीतो भयङ्करः ।
हनुमांश्च दुराराध्यस्तपःसाध्यो महेश्वरः ॥३०॥

जानकीघनशोकोत्थतापहर्ता पराशरः ।
वाङ्मयः सदसद्रूपः कारणं प्रकृतेः परः ॥३१॥

भाग्यदो निर्मलो नेता पुच्छलङ्काविदाहकः ।
पुच्छबद्धो यातुधानो यातुधानरिपुप्रियः ॥३२॥

छायापहारी भूतेशो लोकेशः सद्गतिप्रदः ।
प्लवङ्गमेश्वरः क्रोधः क्रोधसंरक्तलोचनः ॥३३॥

क्रोधहर्ता तापहर्ता भक्ताभयवरप्रदः ।
भक्तानुकम्पी विश्वेशः पुरुहूतः पुरन्दरः ॥३४॥

अग्निर्विभावसुर्भास्वान् यमो निरृतिरेव च ।
वरुणो वायुगतिमान् वायुः कुबेर ईश्वरः ॥३५॥

रविश्चन्द्रः कुजः सौम्यो गुरुः काव्यः शनैश्चरः ।
राहुः केतुर्मरुद्दाता धाता हर्ता समीरजः ॥३६॥

मशकीकृतदेवारिर्दैत्यारिर्मधुसूदनः ।
कामः कपिः कामपालः कपिलो विश्वजीवनः ॥३७॥

भागीरथीपदाम्भोजः सेतुबन्धविशारदः ।
स्वाहा स्वधा हविः कव्यं हव्यवाहः प्रकाशकः ॥३८॥

स्वप्रकाशो महावीरो मधुरोऽमितविक्रमः ।
उड्डीनोड्डीनगतिमान् सद्गतिः पुरुषोत्तमः ॥३९॥

जगदात्मा जगद्योनिर्जगदन्तो ह्यनन्तरः ।
विपाप्मा निष्कलङ्कोऽथ महान् महदहङ्कृतिः ॥४०॥

खं वायुः पृथिवी चापो वह्निर्दिक् काल एकलः ।
क्षेत्रज्ञः क्षेत्रपालश्च पल्वलीकृतसागरः ॥४१॥

हिरण्मयः पुराणश्च खेचरो भूचरो मनुः ।
हिरण्यगर्भः सूत्रात्मा राजराजो विशां पतिः ॥४२॥

वेदान्तवेद्य उद्गीथो वेदाङ्गो वेदपारगः ।
प्रतिग्रामस्थितः सद्यः स्फूर्तिदाता गुणाकरः ॥४३॥

नक्षत्रमाली भूतात्मा सुरभिः कल्पपादपः ।
चिन्तामणिर्गुणनिधिः प्रजाद्वारमनुत्तमः ॥४४॥

पुण्यश्लोकः पुरारातिः मतिमान् शर्वरीपतिः ।
किल्किलारावसन्त्रस्तभूतप्रेतपिशाचकः ॥४५॥

ऋणत्रयहरः सूक्ष्मः स्थूलः सर्वगतिः पुमान् ।
अपस्मारहरः स्मर्ता श्रुतिर्गाथा स्मृतिर्मनुः ॥४६॥

स्वर्गद्वारं प्रजाद्वारं मोक्षद्वारं यतीश्वरः ।
नादरूपं परं ब्रह्म ब्रह्म ब्रह्मपुरातनः ॥४७॥

एकोऽनेको जनः शुक्लः स्वयञ्ज्योतिरनाकुलः ।
ज्योतिर्ज्योतिरनादिश्च सात्त्विको राजसस्तमः ॥४८॥

तमोहर्ता निरालम्बो निराकारो गुणाकरः ।
गुणाश्रयो गुणमयो बृहत्कायो बृहद्यशाः॥

बृहद्धनुर्बृहत्पादो बृहन्मूर्धा बृहत्स्वनः ।
बृहत्कर्णो बृहन्नासो बृहद्बाहुर्बृहत्तनुः ॥५०॥

बृहद्गलो बृहत्कायो बृहत्पुच्छो बृहत्करः ।
बृहद्गतिर्बृहत्सेवो बृहल्लोकफलप्रदः ॥५१॥

बृहद्भक्तिर्बृहद्वाञ्छाफलदो बृहदीश्वरः ।
बृहल्लोकनुतो द्रष्टा विद्यादाता जगद्गुरुः ॥५२॥

देवाचार्यः सत्यवादी ब्रह्मवादी कलाधरः ।
सप्तपातालगामी च मलयाचलसंश्रयः ॥५३॥

उत्तराशास्थितः श्रीशो दिव्यौषधिवशः खगः ।
शाखामृगः कपीन्द्रोऽथ पुराणः प्राणचञ्चुरः ॥५४॥

चतुरो ब्राह्मणो योगी योगिगम्यः परोऽवरः ।
अनादिनिधनो व्यासो वैकुण्ठः पृथिवीपतिः ॥५५॥

अपराजितो जितारातिः सदानन्दद ईशिता ।
गोपालो गोपतिर्योद्धा कलिः स्फालः परात्परः ॥५६॥

मनोवेगी सदायोगी संसारभयनाशनः ।
तत्त्वदाताऽथ तत्त्वज्ञस्तत्त्वं तत्त्वप्रकाशकः ॥५७॥

शुद्धो बुद्धो नित्ययुक्तो भक्ताकारो जगद्रथः ।
प्रलयोऽमितमायश्च मायातीतो विमत्सरः ॥५८॥

मायानिर्जितरक्षाश्च मायानिर्मितविष्टपः ।
मायाश्रयश्च निर्लेपो मायानिर्वर्तकः सुखी॥

सुखी सुखप्रदो नागो महेशकृतसंस्तवः ।
महेश्वरः सत्यसन्धः शरभः कलिपावनः ॥६०॥

रसो रसज्ञः सन्मानो रूपं चक्षुः श्रुती रवः ।
घ्राणं गन्धः स्पर्शनं च स्पर्शो हिङ्कारमानगः ॥६१॥

नेति नेतीति गम्यश्च वैकुण्ठभजनप्रियः ।
गिरिशो गिरिजाकान्तो दुर्वासाः कविरङ्गिराः ॥६२॥

भृगुर्वसिष्ठश्च्यवनो नारदस्तुम्बुरुर्हरः ।
विश्वक्षेत्रं विश्वबीजं विश्वनेत्रं च विश्वपः ॥६३॥

याजको यजमानश्च पावकः पितरस्तथा ।
श्रद्धा बुद्धिः क्षमा तन्द्रा मन्त्रो मन्त्रयिता सुरः ॥६४॥

राजेन्द्रो भूपती रूढो माली संसारसारथिः ।
नित्यः सम्पूर्णकामश्च भक्तकामधुगुत्तमः ॥६५॥

गणपः केशवो भ्राता पिता माताऽथ मारुतिः ।
सहस्रमूर्धा सहस्रास्यः सहस्राक्षः सहस्रपात् ॥६६॥

कामजित् कामदहनः कामः काम्यफलप्रदः ।
मुद्रोपहारी रक्षोघ्नः क्षितिभारहरो बलः ॥६७॥

नखदंष्ट्रायुधो विष्णुभक्तो भक्ताभयप्रदः ।
दर्पहा दर्पदो दंष्ट्राशतमूर्तिरमूर्तिमान् ॥६८॥

महानिधिर्महाभागो महाभर्गो महर्धिदः ।
महाकारो महायोगी महातेजा महाद्युतिः॥

महाकर्मा महानादो महामन्त्रो महामतिः ।
महाशमो महोदारो महादेवात्मको विभुः ॥७०॥

रुद्रकर्मा क्रूरकर्मा रत्ननाभः कृतागमः ।
अम्भोधिलङ्घनः सिद्धः सत्यधर्मा प्रमोदनः ॥७१॥

जितामित्रो जयः सोमो विजयो वायुवाहनः ।
जीवो धाता सहस्रांशुर्मुकुन्दो भूरिदक्षिणः ॥७२॥

सिद्धार्थः सिद्धिदः सिद्धः सङ्कल्पः सिद्धिहेतुकः ।
सप्तपातालचरणः सप्तर्षिगणवन्दितः ॥७३॥

सप्ताब्धिलङ्घनो वीरः सप्तद्वीपोरुमण्डलः ।
सप्ताङ्गराज्यसुखदः सप्तमातृनिषेवितः ॥७४॥

सप्तलोकैकमकुटः सप्तहोत्रः स्वराश्रयः ।
सप्तसामोपगीतश्च सप्तपातालसंश्रयः ॥७५॥

सप्तच्छन्दोनिधिः सप्तच्छन्दः सप्तजनाश्रयः ।
मेधादः कीर्तिदः शोकहारी दौर्भाग्यनाशनः ॥७६॥

सर्ववश्यकरो गर्भदोषहा पुत्रपौत्रदः ।
प्रतिवादिमुखस्तम्भो रुष्टचित्तप्रसादनः ॥७७॥

पराभिचारशमनो दुःखहा बन्धमोक्षदः ।
नवद्वारपुराधारो नवद्वारनिकेतनः ॥७८॥

नरनारायणस्तुत्यो नवनाथमहेश्वरः ।
मेखली कवची खड्गी भ्राजिष्णुर्जिष्णुसारथिः॥

बहुयोजनविस्तीर्णपुच्छः पुच्छहतासुरः ।
दुष्टहन्ता नियमिता पिशाचग्रहशातनः ॥८०॥

बालग्रहविनाशी च धर्मनेता कृपाकरः ।
उग्रकृत्यश्चोग्रवेग उग्रनेत्रः शतक्रतुः ॥८१॥

शतमन्युस्तुतः स्तुत्यः स्तुतिः स्तोता महाबलः ।
समग्रगुणशाली च व्यग्रो रक्षोविनाशनः ॥८२॥

रक्षोऽग्निदावो ब्रह्मेशः श्रीधरो भक्तवत्सलः ।
मेघनादो मेघरूपो मेघवृष्टिनिवारणः ॥८३॥

मेघजीवनहेतुश्च मेघश्यामः परात्मकः ।
समीरतनयो धाता तत्त्वविद्याविशारदः ॥८४॥

अमोघोऽमोघवृष्टिश्चाभीष्टदोऽनिष्टनाशनः ।
अर्थोऽनर्थापहारी च समर्थो रामसेवकः ॥८५॥

अर्थी धन्योऽसुरारातिः पुण्डरीकाक्ष आत्मभूः ।
सङ्कर्षणो विशुद्धात्मा विद्याराशिः सुरेश्वरः ॥८६॥

अचलोद्धारको नित्यः सेतुकृद्रामसारथिः ।
आनन्दः परमानन्दो मत्स्यः कूर्मो निधिः शयः ॥८७॥

वराहो नारसिंहश्च वामनो जमदग्निजः ।
रामः कृष्णः शिवो बुद्धः कल्की रामाश्रयो हरिः ॥८८॥

नन्दी भृङ्गी च चण्डी च गणेशो गणसेवितः ।
कर्माध्यक्षः सुरारामो विश्रामो जगतीपतिः॥

जगन्नाथः कपीशश्च सर्वावासः सदाश्रयः ।
सुग्रीवादिस्तुतो दान्तः सर्वकर्मा प्लवङ्गमः ॥९०॥

नखदारितरक्षश्च नखयुद्धविशारदः ।
कुशलः सुधनः शेषो वासुकिस्तक्षकस्तथा ॥९१॥

स्वर्णवर्णो बलाढ्यश्च पुरुजेताऽघनाशनः ।
कैवल्यदीपः कैवल्यो गरुडः पन्नगो गुरुः ॥९२॥

क्लीक्लीरावहतारातिगर्वः पर्वतभेदनः ।
वज्राङ्गो वज्रवक्त्रश्च भक्तवज्रनिवारकः ॥९३॥

नखायुधो मणिग्रीवो ज्वालामाली च भास्करः ।
प्रौढप्रतापस्तपनो भक्ततापनिवारकः ॥९४॥

शरणं जीवनं भोक्ता नानाचेष्टोऽथ चञ्चलः ।
स्वस्थस्त्वस्वास्थ्यहा दुःखशातनः पवनात्मजः ॥९५॥

पवनः पावनः कान्तो भक्ताङ्गः सहनो बलः ।
मेघनादरिपुर्मेघनादसंहृतराक्षसः ॥९६॥

क्षरोऽक्षरो विनीतात्मा वानरेशः सताङ्गतिः ।
श्रीकण्ठः शितिकण्ठश्च सहायः सहनायकः ॥९७॥

अस्थूलस्त्वनणुर्भर्गो देवसंसृतिनाशनः ।
अध्यात्मविद्यासारश्चाप्यध्यात्मकुशलः सुधीः ॥९८॥

अकल्मषः सत्यहेतुः सत्यदः सत्यगोचरः ।
सत्यगर्भः सत्यरूपः सत्यः सत्यपराक्रमः ॥९९॥

अञ्जनाप्राणलिङ्गं च वायुवंशोद्भवः श्रुतिः ।
भद्ररूपो रुद्ररूपः सुरूपश्चित्ररूपधृक् ॥१००॥

मैनाकवन्दितः सूक्ष्मदर्शनो विजयो जयः ।
क्रान्तदिङ्मण्डलो रुद्रः प्रकटीकृतविक्रमः ॥१०१॥

कम्बुकण्ठः प्रसन्नात्मा ह्रस्वनासो वृकोदरः ।
लम्बोष्ठः कुण्डली चित्रमाली योगविदां वरः ॥१०२॥

विपश्चित् कविरानन्दविग्रहोऽनल्पनाशनः ।
फाल्गुनीसूनुरव्यग्रो योगात्मा योगतत्परः ॥१०३॥

योगविद्योगकर्ता च योगयोनिर्दिगम्बरः ।
अकारादिक्षकारान्तवर्णनिर्मितविग्रहः ॥१०४॥

उलूखलमुखः सिद्धसंस्तुतः परमेश्वरः ।
श्लिष्टजङ्घः श्लिष्टजानुः श्लिष्टपाणिः शिखाधरः ॥१०५॥

सुशर्माऽमितधर्मा च नारायणपरायणः ।
जिष्णुर्भविष्णू रोचिष्णुर्ग्रसिष्णुः स्थाणुरेव च ॥१०६॥

हरी रुद्रानुकृद्वृक्षकम्पनो भूमिकम्पनः ।
गुणप्रवाहः सूत्रात्मा वीतरागः स्तुतिप्रियः ॥१०७॥

नागकन्याभयध्वंसी कृतपूर्णः कपालभृत् ।
अनुकूलोऽक्षयोऽपायोऽनपायो वेदपारगः ॥१०८॥

अक्षरः पुरुषो लोकनाथस्त्र्यक्षः प्रभुर्दृढः ।
अष्टाङ्गयोगफलभूः सत्यसन्धः पुरुष्टुतः ॥१०९॥

श्मशानस्थाननिलयः प्रेतविद्रावणक्षमः ।
पञ्चाक्षरपरः पञ्चमातृको रञ्जनो ध्वजः ॥११०॥

योगिनीवृन्दवन्द्यश्रीः शत्रुघ्नोऽनन्तविक्रमः ।
ब्रह्मचारीन्द्रियवपुर्धृतदण्डो दशात्मकः ॥१११॥

अप्रपञ्चः सदाचारः शूरसेनो विदारकः ।
बुद्धः प्रमोद आनन्दः सप्तजिह्वपतिर्धरः ॥११२॥

नवद्वारपुराधारः प्रत्यग्रः सामगायनः ।
षट्चक्रधामा स्वर्लोकभयहृन्मानदो मदः ॥११३॥

सर्ववश्यकरः शक्तिरनन्तोऽनन्तमङ्गलः ।
अष्टमूर्तिधरो नेता विरूपः स्वरसुन्दरः ॥११४॥

धूमकेतुर्महाकेतुः सत्यकेतुर्महारथः ।
नन्दीप्रियः स्वतन्त्रश्च मेखली डमरुप्रियः ॥११५॥

लोहिताङ्गः समिद्वह्निः षडृतुः शर्व ईश्वरः ।
फलभुक् फलहस्तश्च सर्वकर्मफलप्रदः ॥११६॥

धर्माध्यक्षो धर्मफलो धर्मो धर्मप्रदोऽर्थदः ।
पञ्चविंशतितत्त्वज्ञस्तारको ब्रह्मतत्परः ॥११७॥

त्रिमार्गवसतिर्भीमः सर्वदुष्टनिबर्हणः ।
ऊर्जःस्वामी जलस्वामी शूली माली निशाकरः ॥११८॥

रक्ताम्बरधरो रक्तो रक्तमाल्यविभूषणः ।
वनमाली शुभाङ्गश्च श्वेतः श्वेताम्बरो युवा ॥११९॥

जयोऽजेयपरीवारः सहस्रवदनः कविः ।
शाकिनीडाकिनीयक्षरक्षोभूतप्रभञ्जनः ॥१२०॥

सद्योजातः कामगतिर्ज्ञानमूर्तिर्यशस्करः ।
शम्भुतेजाः सार्वभौमो विष्णुभक्तः प्लवङ्गमः ॥१२१॥

चतुर्णवतिमन्त्रज्ञः पौलस्त्यबलदर्पहा ।
सर्वलक्ष्मीप्रदः श्रीमानङ्गदप्रियवर्धनः ॥१२२॥

स्मृतिबीजं सुरेशानः संसारभयनाशनः ।
उत्तमः श्रीपरीवारः श्रीभूरुग्रश्च कामधुक् ॥१२३॥

सदागतिर्मातरिश्वा रामपादाब्जषट्पदः ।
नीलप्रियो नीलवर्णो नीलवर्णप्रियः सुहृत् ॥१२४॥

रामदूतो लोकबन्धुरन्तरात्मा मनोरमः ।
श्रीरामध्यानकृद्वीरः सदा किम्पुरुषस्तुतः ॥१२५॥

रामकार्यान्तरङ्गश्च शुद्धिर्गतिरनामयः ।
पुण्यश्लोकः परानन्दः परेशप्रियसारथिः ॥१२६॥

लोकस्वामी मुक्तिदाता सर्वकारणकारणः ।
महाबलो महावीरः पारावारगतिर्गुरुः ॥१२७॥

तारको भगवांस्त्राता स्वस्तिदाता सुमङ्गलः ।
समस्तलोकसाक्षी च समस्तसुरवन्दितः ॥१२८॥

सीतासमेतश्रीरामपादसेवाधुरन्धरः ।
इदं नामसहस्रं तु योऽधीते प्रत्यहं नरः ।

दुःखौघो नश्यते क्षिप्रं सम्पत्तिर्वर्धते चिरम् ।
वश्यं चतुर्विधं तस्य भवत्येव न संशयः ॥१२९॥

राजानो राजपुत्राश्च राजकीयाश्च मन्त्रिणः ।
त्रिकालं पठनादस्य दृश्यन्ते च त्रिपक्षतः ॥१३०॥

अश्वत्थमूले जपतां नास्ति वैरिकृतं भयम् ।
त्रिकालपठनादस्य सिद्धिः स्यात् करसंस्थिता ॥१३१॥

ब्राह्मे मुहूर्ते चोत्थाय प्रत्यहं यः पठेन्नरः ।
ऐहिकामुष्मिकान् सोऽपि लभते नात्र संशयः ॥१३२॥

सङ्ग्रामे सन्निविष्टानां वैरिविद्रावणं भवेत् ।
ज्वरापस्मारशमनं गुल्मादिव्याधिवारणम् ॥१३३॥

साम्राज्यसुखसम्पत्तिदायकं जपतां नृणाम् ।
य इदं पठते नित्यं पाठयेद्वा समाहितः ॥१३४॥

सर्वान् कामानवाप्नोति वायुपुत्रप्रसादतः ।

इति श्री हनुमान् सहस्रनाम स्तोत्रम् ।


उपसंहार:

श्री हनुमान् सहस्रनाम का पाठ एक अत्यंत शक्तिशाली साधना है, जो जीवन को सभी दृष्टिकोणों से समृद्ध और सफल बनाने में मदद करता है। इसके पाठ से न केवल शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ होते हैं, बल्कि यह व्यक्ति की समग्र उन्नति और सुख-शांति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यदि आप नियमित रूप से इसका जाप करते हैं, तो हनुमान जी की कृपा से आप हर समस्या से उबर सकते हैं और जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
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