शिव का क्रोध

शिव का क्रोध " Shiva's anger "

  क्रोध शिव का 

शिव के क्रोध के बारे में कई कथाएं हैं, जिनमें उनका क्रोध अलग-अलग परिस्थितियों में प्रकट होता है। एक कथा है जो सती की मृत्यु से जुड़ी है:
एक बार पुरातन काल में भगवान शिव की पत्नी सती का पिता दक्ष एक यज्ञ का आयोजन करने का निर्णय करते हैं। दक्ष ने यज्ञ में सभी देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन उन्होंने शिव और सती को नहीं बुलाया, क्योंकि उनको वह अपने बेटे-बहु शिव-सती की विवाह से असंतोष था।
इस यज्ञ में सती ने भी भाग लेने का निर्णय किया, परन्तु जब वह यज्ञ स्थल पहुंची, तो देखा कि उनके पति शिव को अपमानित किया जा रहा है। इस पर सती ने अपने पिता को समझाया, परंतु दक्ष ने न सिर्फ उनकी बात न सुनी बल्कि उन्हें अपमानित भी किया। इसके परिणामस्वरूप, सती ने अपने शरीर को हवन कुंड में अर्पित कर दिया।
शिव को यह सुनकर बहुत दुःख हुआ और उनका क्रोध उसके अंदर उभर आया। उन्होंने अपने जटाओं से बाल उठाए और उसे पर्वत शिखर पर नृत्य करते हुए विष्णु के धारण किये हुए चक्र को चलाने के लिए कहा। उनका तांडव नृत्य बहुत भयंकर था और वह ब्रह्मांड को हिला देने वाला था।
इस घटना के बाद, शिव ने सती की मृत्यु को लेकर गहरी दुःख और क्रोध महसूस किया, जिससे उनका क्रोध उन्हें संसार के विपरीत प्रतीत होता है।

शिव के क्रोध का स्वरूप

शिव के क्रोध को विभिन्न प्रकारों में व्यक्त किया गया है उनके पौराणिक कथाओं और लोककथाओं में। शिव को विभूतियों और गुणों का प्रतीक माना जाता है, और उनका क्रोध भी उनके विभिन्न स्वरूपों में व्यक्त होता है। 
कई पौराणिक कथाएं बताती हैं कि शिव का क्रोध विनाशकारी और भयंकर होता है। एक कहानी में कहा गया है कि जब शिव का क्रोध प्रकट होता है, तो उनकी तीसरी नेत्र से नागराजा वासुकि को छोड़ते हैं जिससे वह अग्नि का रूप धारण करते हैं। उनका क्रोध भयंकर और प्राकृतिक प्रकोप को दर्शाता है। 
हालांकि, शिव के क्रोध को भी उनकी क्रियाओं के साथ देखा जाता है, जैसे कि उनका क्रोध जरा सा भी स्पष्टीकरण के बिना नहीं होता और वह अक्सर उसके धर्मानुसार होता है। उनका क्रोध धर्म और न्याय की रक्षा के लिए भी होता है। 
यह सब पौराणिक कथाएं हैं और शिव के क्रोध का स्वरूप विभिन्न संस्कृतियों और धार्मिक परंपराओं में भिन्न हो सकता है।
  1. शिव कथा की महत्ता
  2. कई शिव पुराणों में विभिन्न कथाएं हैं, जैसे कि

शिव का क्रोध नियंत्रण

भगवान शिव के क्रोध को नियंत्रित करने के लिए कई तरीके हो सकते हैं। यहां कुछ उपाय हैं जिन्हें अपनाकर आप शिव के क्रोध को नियंत्रित कर सकते हैं:
  • ध्यान और ध्यानाभ्यास: ध्यान और मेधाशक्ति को बढ़ाने के लिए ध्यान योग अत्यंत उपयोगी होता है। इससे मानसिक शांति मिलती है और क्रोध को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है।
  • प्राणायाम: प्राणायाम और श्वासायाम भी शिव के क्रोध को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं। ये शारीरिक और मानसिक स्थिति को संतुलित करने में सहायता करते हैं।
  • भजन और कीर्तन: शिव भजन और कीर्तन करना भी मानसिक शांति और शिव की कृपा प्राप्ति में सहायता कर सकता है।
  • तपस्या और सेवा: शिव के क्रोध को नियंत्रित करने के लिए तपस्या और सेवा भी महत्त्वपूर्ण होती है। अन्यों की सेवा करना और उनकी मदद करना आपको सहायता प्रदान कर सकता है क्रोध को नियंत्रित करने में।
  • विचार शुद्धि: सकारात्मक विचार और मानसिक शुद्धि करने की प्रक्रिया में रहना भी शिव के क्रोध को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है।
शिव की अनुग्रह से और उनके मार्गदर्शन में ये उपाय आपको उनके क्रोध को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं।
  1. भगवान शिव की कथाएं शिव पुराण में बहुतायत में मिलती हैं। इनमें कुछ महत्त्वपूर्ण कथाएं शामिल हैं
  2. शिव पुराण सुनने वालों के लिए जरूरी नियम

शिव का क्रोध नियंत्रण करने के लिए कुछ मंत्र 

शिव का क्रोध नियंत्रण करने के लिए कुछ मंत्र हो सकते हैं जो ध्यान और शांति को प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं। यहां एक मंत्र है जिसे शिव के क्रोध को नियंत्रित करने के लिए जाना जाता है:
  1. "ॐ नमः शिवाय" (Om Namah Shivaya)
  2. ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥ (Om Tryambakam Yajamahe Sugandhim Pushti-Vardhanam Urvarukamiva Bandhanan Mrityor Mukshiya Maamritat): यह महामृत्युंजय मंत्र है जो शिव के रोपण (रक्षाकवच) के रूप में जाना जाता है। यह क्रोध और उग्रता को दूर करने में मदद कर सकता है।
  3. ॐ नमो भगवते रुद्राय (Om Namo Bhagavate Rudraya): यह भी शिव की पूजा और उपासना में उपयोग किया जाता है जो क्रोध को शांत करने में मदद कर सकता है
यह मंत्र शिव को समर्पित है और शांति और स्थिरता को प्राप्त करने में मदद करता है। इसे नियमित ध्यान और जाप के साथ जापा जा सकता है ताकि इंसान अपने अंतर में शांति का अनुभव कर सके और क्रोध को नियंत्रित कर सके।
यदि आप चाहें तो शिव के अन्य मंत्रों को भी अपनाकर उनके क्रोध को नियंत्रित कर सकते हैं, लेकिन ध्यान और नियमितता बहुत महत्वपूर्ण होती है।

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