बृहस्पतिवार व्रत कथा brhaspativaar vrat katha

बृहस्पतिवार व्रत कथा brhaspativaar vrat katha

व्रत गुरुवार के दिन किया जाता है इस व्रत को करने से मन के सारे भय निकल जाते है और पूण्य की प्राप्ति होती है माना जाता है कि इस व्रत को सच्चे मन और श्रद्धा के साथ जो भी करते है, उसे धन की और संतान की प्राप्ति होती है यह व्रत विवाहिक जीवन के लिए लिए कफो उपयोगी है इससे पुरे पविवार में बृहस्पति देव का आशीर्वाद बना हुआ रहता है
बृहस्पतिवार व्रत कथा brhaspativaar vrat katha

यदि आप व्रत को विधि के साथ करते है तो आपको अच्छे कामना मिलते है और वह विधि कुछ इस प्रकार है

  1. बृहस्पतिवार को सुबह-सुबह उठकर स्नान करें नहाने के बाद ही पीले रंग के वस्त्र पहन लें और पूजा के दौरान भी इन्ही वस्त्रों को पहन कर पूजा करें
  2. इसके बाद पूजा घर या केले के पेड़ की नीचे भगवान श्री हरि विष्णु की प्रतिमा या फोटो रखकर उन्हें प्रणाम करें.
  3. कोई नया छोटा सा पीला वस्त्र भगवान को अर्पित करें
  4. हाथ में चावल और पवित्र जल लेकर व्रत का संकल्प लें
  5. भगवान सूर्य व मां तुलसी और शालिग्राम भगवान को जल चढ़ाएं
  6. मंदिर में भगवान विष्णु की विधिवत पूजन करें और पूजन के लिए पीली वस्तुओं का प्रयोग करें. पीले फूल, चने की दाल, पीली मिठाई, पीले चावल, और हल्दी का प्रयोग करें
  7. इसके बाद केले के पेड़ के तने पर चने की दाल के साथ पूजा की जाती है. केले के पेड़ में हल्दी युक्त जल चढ़ाएं.
  8. केले के पेड़ की जड़ो में चने की दाल के साथ ही मुन्नके भी चढ़ाएं
  9. इसके बाद घी का दीपक जलाकर उस पेड़ की आरती करें
  10. केले के पेड़ के पास ही बैठकर व्रत कथा का भी पाठ करें
व्रत के दौरान पुरे दिन उपवास रखा जाता है. दिन में एक बार सूर्य ढलने के बाद भोजन किया जा सकता है. भोजन में पीली वस्तुएं खाएं तो बेहतर. लेकिन गलती से भी नमक का इस्तेमाल ना करें. प्रसाद के रूप में केला को अत्यंत शुभ माना जाता है. लेकिन व्रत रखने वाले को इस दिन केला नहीं खाना चाहिए. केला को दान में दे दें. पूजा के बाद बृहस्पति देव की कथा सुनना आवश्यक है. कहते हैं बिना कथा सुने व्रत सम्पूर्ण नहीं माना जाता और उसका पूर्ण फल नहीं मिलता

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बृहस्पतिवार के कुछ मंत्र ये हैं

  1. ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः
  2. ॐ बृं बृहस्पतये नमः
  3. ॐ ऐं श्रीं बृहस्पतये नम:
  4. ॐ गुं गुरवे नम:
  5. ॐ क्लीं बृहस्पतये नम:

बृहस्पतिवार व्रत कथा प्रारम्भ 

किसी गांव में एक साहूकार रहता था, जिसके घर मे अनन, वस्त्र और धन किसी की कोई कमी नही थी, परन्तु उसकी स्त्री बहुत ही कृपण थी । किसी कसी भिक्षाथी को कुछ नही देती, सारे दिन घर के कामकाज मे लगी रहती । एक समय एक साधु-महात्मा बृहस्पतिवार के दिन उसके द्वार पर आये और भिक्षा की याचना की। स्त्री उस समय घर के आंगन को लीप रही थी, इस कारण साधु महाराज से कहने लगी कि महाराज इस  समय तो मै घर लीप रही हूँ आपको कुछ नही दे सकती, फिर किसी अवकाश समय आना। साधु महात्मा खाली हाथ चले गए। कुछ दिन के पश्चात् वही साधु महात्मा आए उसी तरह भिक्षा मांगी । साहूकारनी उस समय लड़के को खिला रही थी। कहने लगी महाराज मै क्या करूँ अवकाश नही है, इसलिए आपको भिक्षा नही दे सकती । तीसरी बार महात्मा आए तो उसने उन्हें उसी तरह टालना चाहा परन्तु महात्मा जी कहने लगे कि यदि तुमको बिल्कुल ही अवकाश हो जाए तो क्या मुझको दोगी ? साहुकारनी कहने लगी कि हाँ महाराज यदि ऐसा हो जाए तो आपकी बड़ी कृपा होगी। साधु महात्मा जी कहने लगे कि अच्छा मै एक उपाय बताता हूँ । तुम बृहस्पतिवार को दिन चढ़े उठी और सारे घर मे झाडू लगा कर कूड़ा एक कोने में जमा करके रख दो। घर मे चौका इत्यादि मन लगाओ। फिर स्नान आदि करके घर वालो से कह दो, उस  दिन सब हजामत अवश्य बनवाये । रसोई बनाकर चूल्हे के पीछे रखा करो, सामने कभी रक्खो । सांयकाल को अन्धेरा होने के बाद दीपक जलाओ तथा बृहस्पतिवार को पीले वस्त्र मत धारण करो, न पीले रंग की चीजो का भोजन करो। यदि ऐसा करोगे तो तुमको घर का कोई काम नही करना पड़ेगा। साहूकारनी ने ऐसा ही किया। बृहस्पतिवार को दिन चढे उठी, झाडू लगाकर कूड़े को घर के एक कोने में जमा करके ॥ रख दिया । पुरूषो ने हजामत बनवाई । भोजन बनवाकर चूल्हे के पीछे रखा । वह सब बृहस्पतिवारी को ऐसा ही करती रही। अब कुछ काल बाद उसके घर में खाने को दाना न रहा। थोड़े दिनो मे महात्मा फिर आए और भिक्षा मांगी परन्तु सेठानी ने कहा ने कहा महाराज मेरे घर मे खाने को अन्न नही है, आपको क्या दे सकती हूँ। तब महात्मा ने कहा कि जब तुम्हारे घर मे सब कुछ था तब भी कुछ नही देती थी । अब पूरा-पूरा अवकाश है तब भी कुछ नही दे रही हो, तुम क्या चाहती हो वह कहो ? तब सेठानी ने हाथ जोड़ कर कहा की महाराज अब कोई ऐसा उपाय बताओ कि मेरे पहले जैसा धन-धान्य हो जाय । अब मै प्रतिज्ञा करती हूँ कि अवश्यमेव आप जैसा कहेगे वैसा ही करूँगी । तब महात्मा जी बोले "बृहस्पतिवार को प्रातः काल उठकर स्नानादि से निवृत हो घर को गौ के गोबर से लीपो तथा घर के पुरूष हजामत न बनवाये । भूखो को अन्न-जल देती रहा करो । ठीक सांय काल दीपक जलाओ। यदि ऐसा करोगी तो तुम्हारी सब मनोकामनाएं भगवान् बृहस्पति जी की कृपा से पूर्ण होगी । सेठानी ने ऐसा ही किया और उसके घर मे धन-धान्य वैसा ही होगा जैसा पहले था। इस प्रकार भगवान् बृहस्पति जी की कृपा से अनेक प्रकार के सुख भोगकर दीर्घकाल तक जीवित रही !!
समाप्त



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