मकर संक्रांति और पोंगल का महत्त्व मकर संक्रांति का सूर्य से संबंध , Importance of Makar Sankranti and Pongal. Relation of Makar Sankranti with Sun

मकर संक्रांति और पोंगल का महत्त्व मकर संक्रांति का सूर्य से संबंध

मकर संक्रांति हिंदुओं का एक बहुत ही पवित्र त्यौहार है। हिंदू धर्म में मकर संक्रांति त्योहार का विशेष महत्व है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करता है तब मकर संक्रांति का त्यौहार मनाया जाता है इसके अलावा गोकुल शास्त्र के मुताबिक जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की स्थिति में पहुंचता है तब मकर संक्रांति जैसी घटना घटित होती है और उसी समय इस त्यौहार को मनाया जाता है। इस पर्व के बारे में ऐसी मान्यता है कि इस दिन अगर कोई भी पुत्र अपने पिता से मिलने के लिए जाएगा तो उनके बीच के आपसी मतभेद दूर हो जाएंगे। क्योंकि मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि देव से मिलने के लिए जाते हैं और उनके बीच के जो भी आपसी मतभेद थे वह इसी दिन दूर हुए थे।

Importance of Makar Sankranti and Pongal. Relation of Makar Sankranti with Sun

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मकर संक्रांति और पोंगल का महत्त्व

मकर संक्रांति और पोंगल, भारतीय समाज में महत्त्वपूर्ण त्योहार हैं 
मकर संक्रांति का महत्त्व:-
मकर संक्रांति, हिंदू पंचांग के अनुसार मकर राशि में सूर्य के प्रवेश का समय होता है। यह त्योहार हिंदू धर्म में बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इसे उत्तरायण का प्रारंभ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है सूर्य का उत्तर की दिशा में आगमन। इस दिन लोग सूर्य की पूजा करते हैं और खिचड़ी, तिल, गुड़ और खोया बनाते हैं। मकर संक्रांति का महत्त्व है क्योंकि यह शुभ विचारों, प्रार्थनाओं और दान-पुण्य का समय होता है।
पोंगल का महत्त्व:-
पोंगल दक्षिण भारतीय राज्यों में मनाया जाने वाला महत्त्वपूर्ण त्योहार है, जो विशेष रूप से अन्नदाता की पूजा का समय होता है। यह चार दिनों तक चलने वाला त्योहार है, जिसमें पहले दिन भोगी, दूसरे दिन सुर्य पूजा, तीसरे दिन माटु पोंगल (राइस पुद्डिंग) और चौथे दिन कानुम पोंगल मनाया जाता है। इस त्योहार में लोग अपने घरों को सजाते हैं, रंग-बिरंगे वस्त्र पहनते हैं और परिवार और मित्रों के साथ खुशियों का आनंद लेते हैं। ये दोनों ही त्योहार समृद्धि, खुशियाँ, सामाजिक एकता, और धार्मिक उत्साह का प्रतीक हैं। इन्हें मनाने से लोग अपने परंपरागत संस्कृति को जीवंत रखते हैं और साथ ही प्रकृति के साथ भी मेल-जोल बनाए रखने का संदेश देते हैं।

मकर संक्रांति का सूर्य से संबंध 

प्राचीन काल में मकर संक्रांतिका विशेष महत्व था, क्योंकि यह सूर्य के उत्तर दिशा की ओर गमन जिसे संस्कृत में उत्तरायण कहा जाता है, उसके शुरू होने का मुहूर्त था। ये कोई अंधविश्वास नहीं है बल्कि इसकी पुष्टि सूर्य के प्रक्षेपवक्र में दक्षिणी अक्षांश नामकरण से होती है, जिसे आधुनिक वैज्ञानिकों ने मकर राशि के नाम पर ‘ट्रॉपिक ऑफ़ कैप्रिकॉर्न यानी मकर कहा, जिस नक्षत्र में सूर्य उस समय प्रवेश करते थे । यह शुभ काल के प्रारंभ को चिह्नित करता है क्योंकि मकर संक्रांति से दिन अब से दिन लंबे और उज्जवल हो जाते हैं।

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सूर्य का संक्रांति में महत्व

सूर्य एक शक्ति है, जिसका विशेष महत्व है। यह वह ऊर्जा है जो हमारे ग्रह पर जीवन का निर्वाह करती है, इस तथ्य का समर्थन तो आधुनिक विज्ञान भी करता है। सूर्य का तेज एक ऐसा अनुभव है जो हम सभी ने किया है, इतना अलौकिक तेज कि उज्ज्वल सूरज को नग्न आंखों से देखना संभव नहीं होता । प्राचीन काल के ऋषियों ने सूर्य का अनुसरण किया। गीता में बताया गया है कि तुम वही बन जाते हो, जिसका तुम अनुसरण करते हो और इसलिए प्राचीन काल में ऋषि सूर्य की तरह आभाशाली थे और उनके पास सूर्य के समान शक्तियां भी थीं । उदाहरण के लिए, ऋषि विश्वामित्र ने सूर्य का अनुसरण कर गायत्री महामंत्र प्राप्त किया तथा इस मंत्र के बल से एक समांतर ब्रह्मांड रचने में सक्षम हुए।

मकर संक्रांति पूजा विधि:-
  • सूर्य पूजन: सूर्योदय के समय पूजन करना शुभ माना जाता है। सूर्य को जल और फूलों से पूजा किया जाता है।
  • तिल, गुड़, खांड की पूजा: तिल, गुड़ और खांड को पूजने के लिए अलग-अलग थालियों में रखा जाता है। इन्हें सूर्य की दिशा में रखा जाता है और पूजन किया जाता है।
  • दान का महत्त्व: इस दिन दान करने का भी विशेष महत्त्व होता है। धन्य, वस्त्र, खिलौने, खाना-पीना, इत्यादि दान किया जाता है।
  • पूजा के बाद समापन: पूजा के बाद व्रत और पूजा समाप्त करने के लिए मंत्रों का जाप किया जाता है और प्रसाद बाँटा जाता है।
पोंगल पूजा विधि:
  • पोंगल पूजन: इस दिन अन्नदाता पूजन किया जाता है। इसमें पहले सूर्य देवता का पूजन किया जाता है और फिर अन्न की देवी माटुलोकी की पूजा की जाती है।
  • वस्त्र और अलंकरण: धार्मिक अलंकरण के साथ, घर को सजाया जाता है और पूजा स्थल को सजाया जाता है।
  • पूजा के बाद भोजन: पूजन के बाद प्रसाद के रूप में बनाए गए पोंगल और दूसरे व्यंजनों को सभी के साथ बाँटा जाता है। 
  • रंग-बिरंगे उत्सव: इस त्योहार में रंग-बिरंगे उत्सव, नृत्य, गीत और खुशियों का आनंद लिया जाता है।
यह पूजा विधियां विभिन्न स्थानों और परंपराओं के अनुसार थोड़ी भिन्नता दिखा सकती हैं, लेकिन ये मुख्यतः त्योहार के आदर्श पूजनीय तत्व होते हैं।

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